दिव्या जीवन दिव्यतम, दो वर्षों का ब्लॉग ।
लोहा लेती लोक से, पिघलाई ना आग ।
पिघलाई ना आग, शर्त पे अपने जीती ।
जीती खुद के युद्ध, गरल भी खुद से पीती ।
लिखते रहो सटीक, देश हित रविकर हव्या ।
मानव का कल्याण, बधाई डाक्टर दिव्या ।।
मुर्दे भी जिन्दा-दिल होते, सुनिए प्यारे पाठकों -
इक दिन तो सबको जाना है, छोड़ जगत के हाट को ||
बिन पानी है दंग, ढूंढता शीतल छाया ।
कवि पूरे पागल हुवे, यही सही एहसास ।
घूरे के दिन बहुरते, रविकर के भी काश ।
रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
बिगड़े अब ''ईमान'', चलो अब "तो आ जाओ"।
बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे ।
करके कर्म अभूत, करें कविवर दिन पूरे ।।
नहीं रहे मेहँदी हसन (चर्चा -910 )
श्रृद्धा-सुमन समर्पित सादर, गजलों के सम्राट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को |
मुर्दे भी जिन्दा-दिल होते, सुनिए प्यारे पाठकों -
इक दिन तो सबको जाना है, छोड़ जगत के हाट को ||
"खरबूजों का मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खरबूजे को देखकर, बदले रविकर रंग ।
पर पानी-पानी हुआ, बिन पानी है दंग।
उत्तरांचल कोयल, कोयला इत गर्माया ।
करिए खुब आनंद, सदा किलकारी गूंजे ।
सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।
रहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।
रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।
करिए कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।
दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।
करते क्यूँकर सफ़र, नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।कवि पूरे पागल हुवे, यही सही एहसास ।
घूरे के दिन बहुरते, रविकर के भी काश ।
रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
बिगड़े अब ''ईमान'', चलो अब "तो आ जाओ"।
बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे ।
करके कर्म अभूत, करें कविवर दिन पूरे ।।
बहुत सही...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteब्लॉग-जगत में रविकर ने, किये हैं ऐसे काज |
ReplyDeleteमठाधीश भी काँपते,नहीं सुरक्षित ताज|
नहीं सुरक्षित ताज,लगे छुटभैये डरने|
पुरस्कार सब आज,उसी पर लगे बरसने|
कह'चंचल कविराय',पुरनिया हैं आफत में |
हम देते आशीष ,चमकिये ब्लॉग-जगत में ||
संतोष जी का आशु कवि को आशीष...वह भी कमाल की कविताई से.... भई वाह!... आनंद आया.
Deleteकृपा आपकी जो हुई, करे अधेला गर्व |
Deleteरविकर जी,
ReplyDeleteसर्वप्रथम आपका दर्शन अब जाकर स्पष्ट हुआ... आपके ब्लॉग पर.
जब भी हम किसी से काल्पनिक वार्ता करते हैं.... उसकी छवि मानस में बैठाते हैं फिर बतियाते हैं.
अब मुझे लग रहा है कि आप सामने ही हैं. मन की बात कहता हूँ.
— यह सत्य है कि आप ब्लॉग जगत में ऐसा मुकाम हासिल कर चुके हैं...जो शायद बहुत कम लोगों को मिलता है. इसे लगभग सभी स्वीकारते हैं. सरल मन से सभी के पास जाना और उसकी कृति को महत्व देकर उसपर काव्यात्मक टिप्पणी देना .... रचना (पोस्ट) लिखने से कमतर नहीं आँका जा सकता.
— आपका इस दृष्टि से भी सम्मान (महत्व) बनता है कि आपने सामयिक विषयों पर भी अपनी काव्य-प्रतिभा का परिचय दिया है.... कवि यदि वास्तव में संवेदनशील है तो वह एकरसी होकर नहीं रहता....
सभी की कृतियों में नवीनता खोज लेना, उसे नये कोण से देखना, उसे अपने शब्दों में बाँधना .... न केवल कृति को अपितु कृतिकार को भी.... यह आपकी अहंकारशून्यता ही तो है.
नवोदित कवियों के लिये ... आप वर्तमान के ही नहीं भविष्य के भी आदर्श हैं, प्रेरक हैं.
आपका व्यक्तित्व जितना भी जान पाया हूँ, अनुकरणीय है.
अगस्त में होने वाले 'परिकल्पना सम्मान समारोह' में यदि आपका विशेष सम्मान हुआ तो मुझे ही नहीं बहुतों को प्रसन्नता होगी.
मेरे पठनीय घेरे में जितने चमकते पिंड (ब्लोगर) हैं.... उनमें सबसे अधिक चमकने वाले पर आपकी कुण्डली खुली तो मुझे हर्ष हुआ.
दुनिया मुट्ठी में करे, सिद्ध होंय हित सर्व |
Deleteकृपा आपकी जो हुई, करे अधेला गर्व |
करे अधेला गर्व, हुआ आभारी आतुर |
स्नेह आत्मिक पाय, फूटते जाते बक्कुर |
प्रथम हुई पहचान, गोंद रविकर है चुनिया |
रहूँ चिपक श्रीमान, मस्त ब्लॉगर की दुनिया ||
टिप्पणी के रूप में बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति।
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