Wednesday 13 June 2012

इक दिन तो सबको जाना है-

नहीं रहे मेहँदी हसन (चर्चा -910 )


श्रृद्धा-सुमन समर्पित सादर, गजलों के सम्राट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को  |

मुर्दे भी जिन्दा-दिल होते, सुनिए प्यारे पाठकों -
इक दिन तो सबको जाना है, छोड़ जगत के हाट को || 

"खरबूजों का मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

खरबूजे को देखकर, बदले रविकर रंग ।
पर पानी-पानी हुआ, बिन पानी है दंग।

बिन पानी है दंग, ढूंढता शीतल छाया ।
उत्तरांचल कोयल, कोयला इत गर्माया ।
 
करिए खुब आनंद, सदा किलकारी गूंजे ।
भेजो झोंके चंद, रंग बदले खरबूजे ।।


कुछ नहीं सीख पा रहे सुशील कुमार जोशी जी
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 सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।
रहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।

रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।
करिए  कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।

दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।
करते क्यूँकर सफ़र,  नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।

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दिव्या जीवन दिव्यतम, दो वर्षों का ब्लॉग ।
लोहा लेती लोक से, पिघलाई ना आग । 

पिघलाई ना आग, शर्त पे अपने जीती ।
जीती खुद के युद्ध, गरल भी खुद से पीती ।

लिखते रहो सटीक, देश हित रविकर हव्या ।
मानव का कल्याण, बधाई डाक्टर दिव्या ।।

1 comment:

  1. रविकर जब टिपियाये
    मरती पोस्ट में जान
    जान भर जाये ।

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