नहीं रहे मेहँदी हसन (चर्चा -910 )
श्रृद्धा-सुमन समर्पित सादर, गजलों के सम्राट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को |
मुर्दे भी जिन्दा-दिल होते, सुनिए प्यारे पाठकों -
इक दिन तो सबको जाना है, छोड़ जगत के हाट को ||
"खरबूजों का मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खरबूजे को देखकर, बदले रविकर रंग ।
पर पानी-पानी हुआ, बिन पानी है दंग।
उत्तरांचल कोयल, कोयला इत गर्माया ।
करिए खुब आनंद, सदा किलकारी गूंजे ।
सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।
रहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।
रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।
करिए कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।
दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।
करते क्यूँकर सफ़र, नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।
दिव्या जीवन दिव्यतम, दो वर्षों का ब्लॉग ।
लोहा लेती लोक से, पिघलाई ना आग ।
पिघलाई ना आग, शर्त पे अपने जीती ।
जीती खुद के युद्ध, गरल भी खुद से पीती ।
लिखते रहो सटीक, देश हित रविकर हव्या ।
मानव का कल्याण, बधाई डाक्टर दिव्या ।।
रविकर जब टिपियाये
ReplyDeleteमरती पोस्ट में जान
जान भर जाये ।