Wednesday, 20 June 2012

हँसुवा की शादी लगी, पर नितीश की रीत-

DR. ANWER JAMAL
Blog News
 
 हँसुवा की शादी लगी, पर नितीश की रीत ।
आ'मोदी मद में रहे, गा खुरपी के गीत ।

गा खुरपी के गीत, स्वार्थ का भैया चक्कर ।
युद्ध-काल यह शीत, डाल इंजन में शक्कर ।

करते खेल खराब, तीर से कई निशाने ।
कीचड़ का चर कमल, बड़े गहरे हैं माने ।।

ये है मेरा इंडिया

veerubhai at ram ram bhai
टापा भारत ने सही, अब है नम्बर एक |
मधुमेह कैंसर भ्रष्टता, हुई मार्केट ब्लैक |

हुई मार्केट ब्लैक, रसोई माँ की रोई |
रोटी सरसों साग, आग चूल्हे की खोई |

जारी भागमभाग, रास्ता कितना  नापा |
सब रोगों का बाप, किन्तु है यही मुटापा ||

सखी बरखा

भीषण गर्मी से थका, मन-चंचल तन-तेज |
भीग पसीने से रही, मानसून अब भेज |


मानसून अब भेज, धरा धारे जल-धारा |
जीव-जंतु अकुलान, सरस कर सहज सहारा |


पद के सुन्दर भाव, दिखाओ प्रभु जी नरमी |
यह तीखी सी धूप, थामिए भीषण गरमी ||

"जवान के साथ जा जवान हो जा "

Sushil
"उल्लूक टाईम्स "


अपने अपने दर्द की, रहे दवा सब खोज ।
कुछ तो दुआ-भभूत में, कुछ कसरत से रोज ।

कुछ कसरत से रोज, पोज लख ओज बढाते ।
पर बीबी के  डोज, जुल्म कुछ ऐसा ढाते ।

भीगी बिल्ली भूख, देखती चूहे सपने ।
गेंहू और गुलाब, छांटते खूसट अपने ।।

कासे कहे...

डॉ. जेन्नी शबनम 
 लम्हों का सफ़र
 दो शब्दों की पंक्तियाँ, ढाती जुल्म अपार ।
पीर पराई कर रही, शब्दों का व्यापार । 

शब्दों का व्यापार, सफ़र लम्हों का चालू ।
सावन मोती प्यार, सीप-मन श्रृद्धा पा लूं ।

पर तडपे मन-व्यग्र, ढूँढ़ता सच्चा हमदम ।
ताप लगे अति तेज, बचा ले बिखरी शबनम ।।

यहाँ, ऐसा ही होता है ...(संस्मरण)

अदा 
 काव्य मंजूषा
सरल कनाडा पुलिस है, विकट-काल में शांत ।
आलोकित परिसर करे, स्वत: शांत हर भ्रांत ।

स्वत: शांत हर भ्रांत, प्रांत भारत के लेकिन ।
रहे सशंकित साधु , हेल्प लगती नामुमकिन ।

चढ़ा चढावा ढेर, करो फिर हेरा-फेरी ।
आँखे रहें तरेर, किन्तु दुर्जन की चेरी ।।

हिलोर

  (पुरुषोत्तम पाण्डेय)
जाले
 
मीता ने जीता हृदय, जो टूटा दो बार |
प्रथम मौत साजिश करे, दूजा पुत्र विचार |


दूजा पुत्र विचार, जिया इतिहास दुबारा |
दे जाता वह दर्द, पुत्र पर जीवन वारा |  


कंप्यूटर जन-जाल, पुन: दे गया सुबीता |
चमत्कार परनाम, मिला मीता मनमीता ||

फिर कली बना दो

कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |


पर रहती चुपचाप, अश्रु-धारा को धारा |
रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा |

प्रीति नहीं अपनाय, गुजारिश ठुकराते हो  |
पोता भाई पुत्र, इन्हें ही अपनाते हो | 

"आज विनीत चाचा का जन्मदिन है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


बाबा-दादी का मिला, पावन आशिर्वाद |
माँ-बापू करते सदा, भोले से फ़रियाद |


भोले से फ़रियाद, यशस्वी नाम कमाओ |
प्राची-प्रांजल सरिस, शीघ्र ही बच्चे पाओ |


रविकर का आशीष, जिए जुग-जुग यह जोड़ी |
बढ़ो लक्ष्य की ओर, हटें रस्ते की रोड़ी ||





9 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  3. पद के सुन्दर भाव, दिखाओ प्रभु जी नरमी |
    यह तीखी सी धूप, थामिए भीषण गरमी ||
    दुबकी लगाके लिखते हैं आप गहरी रचना के मर्म तक जा पहुँचते हैं .शुक्रिया 'ये है मेरा इंडिया '.पर आपकी लयात्मक टिपण्णी का .

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  4. महती किरपा आपकी, हमरी पोस्ट योग्य पाय
    भाँति-भाँति के छंद से, सबकी पोस्ट सजाय
    सबकी पोस्ट सजाय, हमरी टिप्पणी बलिहारी
    धन्यवाद स्वीकारिये, हैं बहुत आभारी

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  5. सारे के सारे पद्य अच्छे और रोचक लगे।

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  6. आपकी शुभकामनाओं को काव्य में देखकर अच्छा लगा!
    सभी कवित्त बहुत बढ़िया हैं।

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!

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