मौलाना मुलायम और दिग्गी राजा पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद के मजबूत उम्मीदवार
अच्छा भला विचार है, प्यारे मित्र हरेश ।
ममता इस प्रस्ताव को, करवाएगी पेश ।
करवाएगी पेश, देश फिर बने अखंडित ।
मिटिहै झंझट क्लेश, आप भी महिमा मंडित ।
जागे देश अखंड, सुबह फिर इक अजान पर ।
बचता रक्षा फंड, भरोसा तालिबान पर ।।
लिएंडर मोदी !!!
गत भूपति नीतीश की, मोदी पेस विशेष |
जोड़ीदारों की खड़ी, खटिया सम्मुख रेस |
जोड़ीदारों की खड़ी, खटिया सम्मुख रेस |
खटिया सम्मुख रेस, स्वार्थ मद अहंकार है |
जाय भाड़ में देश, जीभ में बड़ी धार है |
रविकर करिए गर्व, बनो न किन्तु घमण्डी |
तुलोगे कौड़ी मोल, अगर प्रभु मारा डंडी ||
तेरे मेरे बीच की .....
देखें सुन्दर चित्र तो, लगता बड़ा विचित्र ।
ताक रहा अपलक झलक, मनसा किन्तु पवित्र ।
मनसा किन्तु पवित्र, झलकती कैंडिल लाइट ।
किरणें स्वर्ण बिखेर, करे हैं फ्यूचर ब्राइट ।
दूर बसे सौ मील, मीत कर्मों के लेखे ।
ऋतु आये जो शरद, साल हो जाए देखे ।।
रिश्तों से रिसता रहे, दंभ स्वार्थ शठ-नीत ।
दोनों मन विश्वास हो, श्रृद्धा प्रेम पुनीत ।
श्रृद्धा प्रेम पुनीत, बड़ी भंगुरता इनमे ।
लगे कांच जो ठेस, बिखर जाता है छिन में ।
आये मुश्किल काल, चाल न चलिए भैया ।
हाथ पकड़ हर हाल, चलो तुम चढ़ा घुडैया ।।
देश काल की चाल का, सही निरूपण मित्र ।
अक्षरश: हैं खींचते, चिड़िया चित्र विचित्र ।
चिड़िया चित्र विचित्र, गई अब चिड़िया सोने ।
सोने की उस काल, आज भी देख नमूने ।
रविकर धरिये धीर, पीर यह बढती जाए ।
जो मारे सो मीर, कहावत डाकू गाये ।।
रिश्तों को निभाना सीखो
रिश्तों से रिसता रहे, दंभ स्वार्थ शठ-नीत ।
दोनों मन विश्वास हो, श्रृद्धा प्रेम पुनीत ।
श्रृद्धा प्रेम पुनीत, बड़ी भंगुरता इनमे ।
लगे कांच जो ठेस, बिखर जाता है छिन में ।
आये मुश्किल काल, चाल न चलिए भैया ।
हाथ पकड़ हर हाल, चलो तुम चढ़ा घुडैया ।।
यह स्वर्ण पंछी था कभी...
dheerendra
काव्यान्जलि ...
काव्यान्जलि ...
देश काल की चाल का, सही निरूपण मित्र ।
अक्षरश: हैं खींचते, चिड़िया चित्र विचित्र ।
चिड़िया चित्र विचित्र, गई अब चिड़िया सोने ।
सोने की उस काल, आज भी देख नमूने ।
रविकर धरिये धीर, पीर यह बढती जाए ।
जो मारे सो मीर, कहावत डाकू गाये ।।
ज़लने में कितना दर्द होता है ???
सदा
बाँट रहा आन्नद मिट, रहा जिन्दगी तौल ।
रहा जिन्दगी तौल, उधर जलते हैं कैसे ।
दूजे की सामृद्धि, हर्ष वेतन के पैसे ।
उसकी शर्ट सफ़ेद, भेद क्या इसमें भाई ।
"उल्लूक टाईम्स "
कुआं बीच में छेंक, अधर्मी खोजो सेक्युलर |
जात-पांत से दूर, काटता जाए चक्कर |
पांच साल का वक्त, बुढ़ायेगा वो जैसे |
उसको करूँ विरक्त, ढूँढ़ कर दूजे भैंसे ||
खोजा खाजी कर रहे, रहट-हटी पति एक |
गोल गोल घूमा करे, कुआं बीच में छेंक |
गोल गोल घूमा करे, कुआं बीच में छेंक |
कुआं बीच में छेंक, अधर्मी खोजो सेक्युलर |
जात-पांत से दूर, काटता जाए चक्कर |
पांच साल का वक्त, बुढ़ायेगा वो जैसे |
उसको करूँ विरक्त, ढूँढ़ कर दूजे भैंसे ||
मूल रचना के भाव में डुबकी लगा गए है रविकर जी ,कितना मन भा गए हैं रविकर जी .. . अच्छी प्रस्तुति .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteबुधवार, 20 जून 2012
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
http://veerubhai1947.blogspot.in/
मेरी रचना पर काव्य मय टिप्पणी के लिये आभार,,,,,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ!
ReplyDeleteआपने किसी को नहीं छोड़ा।
इनको साझा करने के लिए आभार!
बहुत खूब !!
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी बहुत सुन्दर जहां भी पहुंचे धर लपेटा ...
ReplyDeleteसरस्वती बैठी लगें सदा आप की जिह्वा
अजब कारनामे दिखें बने रहो हे ! मितवा !
भ्रमर ५