Thursday, 21 June 2012

प्रेमालापी विदग्धा, चाट जाय सब धात-

प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन 


 आचार्य परशुराम राय जी का इस बार का पाठ यहाँ 
पढ़कर जानिये....कि काव्य में किन परिस्थितयों में अश्लील दोष भी गुण हो जाता है.
और वह शृंगार 'रस' के घर में न जाकर 'रसाभास' की दीवारें लांघता हुआ दिखायी देता है.  
  अरी अप्सरे अनल अवदात 
शिथिल कर देने वाली वात 
आपके अंगों का आकार 
ध्यान आते ही गिरता धात।
पाठकों से अनुरोध : यदि शृंगार विषयक साहित्यिक चर्चा का मन हो तो जिज्ञासा भाव से ही शिष्ट और व्यंजना युक्त शब्दावली का प्रयोगकर प्रश्न करें या विस्तार दें.
पिछली कविता पर प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियाँ आने वाले कल में की जायेंगी। काव्यात्मक टिप्पणियाँ मेरे लिए प्रसाद तुल्य हैं। उनको रचना से कमतर आँकना मेरे लिए सहज नहीं।

रविकर की टिप्पणी  

 (1)
स्वर्ण-शिखा सी सज संवर, लगती जलती आग ।
छद्म रूप मोहित करे, कन्या-नाग सुभाग ।
कन्या-नाग सुभाग, हिस्स रति का रमझोला ।
झूले रमण दिमाग, भूल के बम बम भोला ।
नाग रहा वो जाग, ज़रा सी आई खांसी ।
कामदेव गा भाग, ताक  के स्वर्ण शिखा सी ।।

(2)
नींद नाग की भंग हो, हिस्स-फिस्स सम शोर। 
भंग नशे में शिव दिखे, जगा काम का चोर ।
जगा काम का चोर, समाधी शिव की छोड़े ।
सरक गया पट खोल, बदन दनदना मरोड़े ।
संभोगी आनीत, नीत में कमी राग की ।
आसक्त पड़ा आसिक्त , टूटती नींद नाग की ।।

(3)
मांसाहारी मन-मचा, मदन मना महमंत ।
पाऊं-खाऊं छोड़ दूँ, शंका जन्म अनंत ।
शंका जन्म अनंत, फटाफट पट पर पैनी ।
नजर चीरती चंट, सहे न मन बेचैनी ।
चला मारने दन्त, मगर जागा व्यभिचारी ।
फिर जीवन-पर्यंत, चूमता मांसाहारी ।।

(4)
प्रेमालापी विदग्धा, चाट जाय सब धात ।
खनिज-मनुज घट-मिट रहे, नष्ट प्रपात प्रभात ।
नष्ट प्रपात प्रभात, शांत मनसा ना होवे ।
असमय रही नहात, दुपहरी पूरी सोवे ।
चंचु चोप चिपकाय, नहीं पिक हुई प्रलापी ।
चूतक ना बौराय, चैत्य-चर प्रेमालापी ।।
 महोदय !!
अंतिम पंक्ति में यदि ना के स्थान पर नहीं का प्रयोग करूँ और मात्रा पूरी करने के लिए चूत (आम) का एक अक्षर कम कर दूँ - तो क्या अश्लील - दोष होगा ??


7 comments:

  1. बहुत बढ़िया सुंदर प्रस्तुति,

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  2. किसी भी शब्द से छेड़छाड़ मत करना,अनर्थ हो जायेगा !

    ...संकेत देते ही क्यों हो ?

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    1. यह विषय अश्लीलता वाले काव्य पर है |
      लिंक देखिये -
      आचार्य परशुराम राय जी का इस बार का पाठ यहाँ http://manojiofs.blogspot.in/2012/06/116.html पढ़कर जानिये....कि काव्य में किन परिस्थितयों में अश्लील दोष भी गुण हो जाता है.
      और वह शृंगार 'रस' के घर में न जाकर 'रसाभास' की दीवारें लांघता हुआ दिखायी देता है.

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  3. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  4. आपके अंगों का आकार
    ध्यान आते ही गिरता धात।, .कृपया यहाँ भी पधारें -
    क्या बात है सर .बेहतरीन प्रस्तुति .

    बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
    सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
    सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन

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  5. मांसाहारी मन-मचा, मदन मना महमंत ।
    पाऊं-खाऊं छोड़ दूँ, शंका जन्म अनंत ।
    शंका जन्म अनंत, फटाफट पट पर पैनी ।
    नजर चीरती चंट, सहे न मन बेचैनी ।
    चला मारने दन्त, मगर जागा व्यभिचारी ।
    फिर जीवन-पर्यंत, चूमता मांसाहारी ।।क्या बात है भाई साहब आनुप्रासिक छटा और रति वर्रण को साहित्यिक तेवर दिए हैं आपने ...

    .

    बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
    सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
    सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन

    वाह क्या बात है .बढ़िया छायांकन .

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  6. अटकना ठीक
    सटकना नहीं ।

    बाकी दौड़ते रहिये ।

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