मुनव्वर राना की शायरी और हम लोग !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
बैसवारी baiswari
राय बरेली का जमा, दिल्ली में जो रंग |
जमी मुनौव्वर शायरी, एन डी टी वी दंग |
एन डी टी वी दंग, अजी संतोष त्रिवेदी |
आया किसके संग, इंटरी किसने दे दी |
कहाँ मित्र अविनाश, स्वास्थ्य कैसा है भाई ?
श्रेष्ठ कलम का दास, स्वस्थ हो, बजे बधाई ||
जमी मुनौव्वर शायरी, एन डी टी वी दंग |
एन डी टी वी दंग, अजी संतोष त्रिवेदी |
आया किसके संग, इंटरी किसने दे दी |
कहाँ मित्र अविनाश, स्वास्थ्य कैसा है भाई ?
श्रेष्ठ कलम का दास, स्वस्थ हो, बजे बधाई ||
याद हैं मुझे वो सारी बातें
नाज प्यार पर है हमें, नजर नहीं लग जाय |
काला टीका लूँ लगा, सीधा सरल उपाय |
सीधा सरल उपाय, भीग छतरी में आधा |
कंधे-मन रगड़ाय, बाढ़ बन जाती बाधा |
थाम परस्पर पृष्ट, बढे हम तीक्ष्ण धार पर |
संतुष्टी संदृष्ट, हमें है नाज प्यार पर ||
काला टीका लूँ लगा, सीधा सरल उपाय |
सीधा सरल उपाय, भीग छतरी में आधा |
कंधे-मन रगड़ाय, बाढ़ बन जाती बाधा |
थाम परस्पर पृष्ट, बढे हम तीक्ष्ण धार पर |
संतुष्टी संदृष्ट, हमें है नाज प्यार पर ||
बंदरों की कैद में....
देवेन्द्र पाण्डेय
बबलू को अति-प्यार से, दुग्ध पिलाती धाय ।
दुग्ध पिलाती धाय, प्रणव इस्तीफा लिखते ।
खाईं कुआं निहार, संगमा नीचे दिखते ।
राजा पाया बेल, जेल को ताक रहा है ।
भागे बन्दर तीन, कटाता नाक रहा है ।।
अगर झरोखे में दिखे, गजल गजब उत्कृष्ट ।
ताक-झाँक नियमित करूँ, नहीं हटाऊं दृष्ट ।
नहीं हटाऊं दृष्ट , गरीबी बड़ी नियामत ।
जिन्दा वह इंसान, झेल के बड़ी क़यामत ।
स्नेह दीप को बार, चुने चेहरे वह चोखे ।
बाइस्कोप संवार, ताकता उसी झरोखे ।।
इन्तहां प्यार की---
JHAROKHA
JHAROKHA
JHAROKHA
अगर झरोखे में दिखे, गजल गजब उत्कृष्ट ।
ताक-झाँक नियमित करूँ, नहीं हटाऊं दृष्ट ।
नहीं हटाऊं दृष्ट , गरीबी बड़ी नियामत ।
जिन्दा वह इंसान, झेल के बड़ी क़यामत ।
स्नेह दीप को बार, चुने चेहरे वह चोखे ।
बाइस्कोप संवार, ताकता उसी झरोखे ।।
"कार ला दो एक उधार ला दो"
Sushil
"उल्लूक टाईम्स "
गृहणी की चिक-चिक ख़तम, ले आया इक कार |
कार्यालय अतिशय निकट, बंद हुई तकरार |
बंद हुई तकरार, हुआ कम पैदल चलना |
वजनदार अंदाज, सुबह नित पड़े टहलना |
बढ़ा पेट मधुमेह, दाब भी ऊंचा होया |
पैदल दौरे बंद, हार्ट-दौरे से सोया ||
सुरबाला ही धर सके, सर पर आला फूल |
खुर वाला खुरपेंच से, झोंके अंखियन धूल |
झोंके अंखियन धूल, हजारों रची कुंडली |
आलोचक हैं मूक, दीखती नहीं मंडली |
अहमक भाव अनूप, अहम् का पीकर हाला |
लांछित करके लेख, पूजता है सुरबाला ||
क्षणिकाएं देती सजा, निशा करे आराम ।
लो पाठक इनका मजा, यात्रा बाद विराम ।
यात्रा बाद विराम, तोड़ वृत्तांत लिखूँगी ।
कल से फिर अविराम, आपके संग दिखूंगी ।
छल-पर्वत संगीत, रात दिन दुःख भरमाये ।
बहुत बहुत आभार, बड़ी सुन्दर क्षणिकाएं ।
(भारत का सिरमौर काश्मीर) श्री नगर में दूसरा दिन परीमहल ,चश्मे शाही ,शालीमार गार्डन ,हजरत बल और डल लेक -
चित्रों की खुबसूरती, शब्दों का भावार्थ |
कृष्ण हांकते रथ चले, आनंदित यह पार्थ |
आनंदित यह पार्थ, वादियाँ काश्मीर की |
हजरत बल डल झील, पुराने महल पीर की |
रविकर टिकट बगैर, घूमता जाए मित्रों |
कर लो सब दीदार, आभार अनोखे चित्रों ||
गृहणी की चिक-चिक ख़तम, ले आया इक कार |
कार्यालय अतिशय निकट, बंद हुई तकरार |
बंद हुई तकरार, हुआ कम पैदल चलना |
वजनदार अंदाज, सुबह नित पड़े टहलना |
बढ़ा पेट मधुमेह, दाब भी ऊंचा होया |
पैदल दौरे बंद, हार्ट-दौरे से सोया ||
खुरपेंचिया ब्लॉगर अनूप शुक्ल जी !
संतोष त्रिवेदी
खुर वाला खुरपेंच से, झोंके अंखियन धूल |
झोंके अंखियन धूल, हजारों रची कुंडली |
आलोचक हैं मूक, दीखती नहीं मंडली |
अहमक भाव अनूप, अहम् का पीकर हाला |
लांछित करके लेख, पूजता है सुरबाला ||
क्षणिकाएँ
Dr.NISHA MAHARANA
क्षणिकाएं देती सजा, निशा करे आराम ।
लो पाठक इनका मजा, यात्रा बाद विराम ।
यात्रा बाद विराम, तोड़ वृत्तांत लिखूँगी ।
कल से फिर अविराम, आपके संग दिखूंगी ।
छल-पर्वत संगीत, रात दिन दुःख भरमाये ।
बहुत बहुत आभार, बड़ी सुन्दर क्षणिकाएं ।
(भारत का सिरमौर काश्मीर) श्री नगर में दूसरा दिन परीमहल ,चश्मे शाही ,शालीमार गार्डन ,हजरत बल और डल लेक -
चित्रों की खुबसूरती, शब्दों का भावार्थ |
कृष्ण हांकते रथ चले, आनंदित यह पार्थ |
आनंदित यह पार्थ, वादियाँ काश्मीर की |
हजरत बल डल झील, पुराने महल पीर की |
रविकर टिकट बगैर, घूमता जाए मित्रों |
कर लो सब दीदार, आभार अनोखे चित्रों ||
...पीछे वाले दरवाजे से घुसे थे...वहाँ एंट्री का यही तरीका है !
ReplyDeleteएंट्री कही से मिली हो,राना जी के साथ आखिर फोटू खिचवा ही लिया,,,
Deleteवाह जी वाह ।
ReplyDeleteआभार आप सभी का |
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