इक पुराना पेड़, है अभी तक गाँव में...
दाना -पानी पा जाती हैं, जड़ें पेड़ की गहरी हैं |
हर साल कोंपलें आ जाती, "यादें" अहा सुनहरी हैं |
लच्छी-लौ बच्चे खेल रहे, पेंग मारते झूलों पर-
लो गाँव इकट्ठा आ बैठा, आई जेठ दुपहरी है |
कल सुबह डाल इक काट गया, पत्ते कोई छांट गया
जो केबुल कई लपेट गया, वो बन्दा कोई शहरी है |
साथी संगी सब चले गए, राम खिलावन भैया भी -
मंजूर हुई इक सड़क इधर, लगता साजिश गहरी है |
कुछ वर्षों में कमजोर हुआ, हो जाये गर दवा-दुआ
दस-बीस बरस तक और रहूँ, "रब" से सीधे ठहरी है ||
विज्ञान कथाएं सामाजिक और वैज्ञानिक युक्तियों के कोष हैं- डॉ0 अरविंद मिश्र
कुम्भकर्ण की नींद हो, या पुष्पक सा यान |संजय की हो दूर दृष्ट, या नियोग संतान |
या नियोग संतान, कल्पना बनें हकीकत |
होते अनुसंधान, नहीं वैज्ञानिक दिक्कत |
धर्म दिखाए राह, उसी युगकाल स्वर्ण की |
खोजो चाभी जाग, नींद से कुम्भकर्ण की ||
गाफिल जी की कृपा के, इन्तजार में लोग |
मानसून का जून में, ज्यों मिलता संयोग |
ज्यों मिलता संयोग, छपे चुन चुन कर रचना |
पड़े प्रेम बौछार, बड़ा मुश्किल है बचना |
सुन्दर चर्चा साज, मोहते मन हैं सबका |
होता खूब प्रसन्न, पाठकों का हर तबका ||
मानसून का जून में, ज्यों मिलता संयोग |
ज्यों मिलता संयोग, छपे चुन चुन कर रचना |
पड़े प्रेम बौछार, बड़ा मुश्किल है बचना |
सुन्दर चर्चा साज, मोहते मन हैं सबका |
होता खूब प्रसन्न, पाठकों का हर तबका ||
...अच्छी चर्चा,बढ़िया टीप !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteप्रशंसनीय है आपके कवित्त!
ReplyDeleteजय हो रविकर बाबा की |
ReplyDeleteमूल रचना पढ़ी |
टिप्पड़ी
जबरदस्त हैं-
कैसे रच देते हैं इतनी सहजता से ??
सादर वन्दना -
बहुत ही खूबसूरत !!
ReplyDeletewaah bahut accha...
ReplyDeleteअशोक जी सलूजा की मनभावन टिप्पणी |
ReplyDeleteरविकर जी , नमस्कार और आभार !
आपने मेरे साधारण शब्दों को समझा ,और अपनी सुंदर कविता से उसमें मेरे भाव
संजो दीये जोकि मेरे लिए असंभव थे....आपकी कविता से गाँव की सोंधी मिटटी
की महक सी छा गई है ......
एक बार फिर ....
आभार !
अशोक सलूजा !
arvind mishra drarvind3@gmail.com
ReplyDelete7:41 AM (20 hours ago)
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Vah kya kahane!
arvind mishra drarvind3@gmail.com
Delete4:59 AM (17 minutes ago)
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आपकी यह काव्यात्मक टिपण्णी तो इस विषय पर मेरी धरोहर बन गयी है ..
आभार सर जी ||
Deleteकुम्भकर्ण की नींद हो, या पुष्पक सा यान |
ReplyDeleteसंजय की हो दूर दृष्ट, या नियोग संतान |
या नियोग संतान, कल्पना बनें हकीकत |
होते अनुसंधान, नहीं वैज्ञानिक दिक्कत |
धर्म दिखाए राह, उसी युगकाल स्वर्ण की |
खोजो चाभी जाग, नींद से कुम्भकर्ण की ||
बहुत सुन्दर निचोड़ प्रस्तुत किया है आपने शुक्रिया .
बहुत सुन्दर रचा है..ख़ास...
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