तारों की घर वापसी
तारे होते बेदखल, सूरज आँखे मूंद |
अद्वितीय अनुकल्पना, आंसू शबनम बूंद |
अद्वितीय अनुकल्पना, आंसू शबनम बूंद |
आंसू शबनम बूंद, सूर्य को तपना भाये |
किन्तु वियोगी चाँद, अकेला रह न पाए |
उतर धरा पर चाँद, इकट्ठा करे संभारे |
छूकर प्रभु के चरण, गगन पुनि चमकें तारे ||
कमल का तालाब
देवेन्द्र पाण्डेय
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
मीन चुकाती दाम, बिगाड़े काई कीचड़ ।
रहे फिसलते रोज, काईंया पापी लीचड़ ।
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
भौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
ऋषभ देव शर्मा
ऋषभ उवाच
ऋषभ उवाच
साधुवाद शुभकामना, हे ! मन की दीवार ।
सुषमा सुश्री मुक्तकें, चाँद लगाते चार ।
चाँद लगाते चार, कहें प्रोफ़ेसर गोपी ।
कवि रविकर चालाक, भाव पर चाक़ू घोपी ।
बहुत बहुत आभार, ऋषभ जो हमें जोड़ते ।
प्रांत हैदराबाद, बड़ी बंदिशें तोड़ते ।।
धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र |
चींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र |
खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई |
हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई |
पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे |
कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे ||
वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल ।
आँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल ।
फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे ।
सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे ।
अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी ।
आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।।
पी सी गोदियाल
दुखद मार्मिक कष्टप्रद, दुर्घटना गंभीर |
पूँछों उन माँ बाप से, असहनीय यह पीर |
असहनीय यह पीर, चीर कर डिंगो खाए |
भोगी जोड़ी जेल, अंत निर्दोष कहाए |
यहाँ बोरवेल साल, गिराता रहता बच्चा |
रहे खोद के डाल, दे रहे दोषी गच्चा ||
पर रविकर के फूल, मूल में याद तुम्हारी |
इन यादों में झूल, भूलता विपदा सारी |
रविकर रखे सहेज, प्यार की अमित-निशानी |
अमिट याद का तेज, पलट कर देखो रानी ||
आप मुड़ कर न देखते
नीरज गोस्वामी
धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र |
चींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र |
खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई |
हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई |
पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे |
कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे ||
हवन का ...प्रयोजन.....!!
Anupama Tripathi
anupama's sukrity.
anupama's sukrity.
वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल ।
आँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल ।
फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे ।
सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे ।
अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी ।
आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।।
पी सी गोदियाल
दुखद मार्मिक कष्टप्रद, दुर्घटना गंभीर |
पूँछों उन माँ बाप से, असहनीय यह पीर |
असहनीय यह पीर, चीर कर डिंगो खाए |
भोगी जोड़ी जेल, अंत निर्दोष कहाए |
यहाँ बोरवेल साल, गिराता रहता बच्चा |
रहे खोद के डाल, दे रहे दोषी गच्चा ||
Suresh Kumar
मेरी कल्पनायें
मेरी कल्पनायें
गम का सौदा कर चले, दामन में भर शूल |
दूजा भय से देखता, पर रविकर के फूल |
दूजा भय से देखता, पर रविकर के फूल |
पर रविकर के फूल, मूल में याद तुम्हारी |
इन यादों में झूल, भूलता विपदा सारी |
रविकर रखे सहेज, प्यार की अमित-निशानी |
अमिट याद का तेज, पलट कर देखो रानी ||
सुन्दर टिप्पणी से हमारी रचना का श्रृंगार करने का शुक्रिया रविकर जी.
ReplyDeleteसादर
अनु
अरे वाह प्रभु इसका तो हमें पता ही नहीं था...आपके इस प्रयास की प्रशंशा शब्दों में करना असंभव है...आप निश्चित रूप से विलक्षण हैं...साधू वाद स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeletegajab ki tippaniyan...Awesome !
ReplyDeleteहमेशा की तरह लाजवाब तरीके से ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!