Monday, 25 June 2012

बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता -

एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिश्ते को अंसतुलित करती है

bhuneshwari malot 
(1)
खर्चा पूरा पड़े क्या, जब बच्चा अतिरिक्त |
व्यर्थ व्यस्तता भी बढे, पुन: रक्त से सिक्त |

पुन: रक्त से सिक्त, रिक्त  बटुवा हो जाता |
बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता |

माँ का बदला रूप, पार्टी होटल चर्चा | 
लैप-टॉप सेल कार, निकल न पावे खर्चा ||  

(2)
इक बच्चे से ही निकल, जाती अपनी फूंक ।
दो बच्चों का पालना, बड़ी भयंकर चूक ।

 बड़ी भयंकर चूक, अवज्ञा मात-पिता की ।
बात कहूँ दो टूक, तैयारी करें चिता की ।

हाथ हमेशा तंग, गुप्त कुछ अपने खर्चे ।
कर न रविकर व्यंग, पाल ले इक इक बच्चे ।। 
(3) 
होटलबाजी करूँ नित, शाम रहूँ मदहोश ।
कार्यालय में दिन सकल, शेष बचे न होश ।

शेष बचे न होश , कैरियर कौन सँवारे ।
रविकर किसका दोष, समय के दोनों मारे ।

जीते हम चुपचाप, पराई दखलंदाजी ।
बंद करें अब आप, करें अब होटल बाजी ।।
(4)
एकांतवास का युग अहम्, कलयुग इसका नाम ।
दो बच्चों का है वहम, बनते श्रेष्ठ तमाम ।

बनते श्रेष्ठ तमाम, तीन भाई हैं मेरे ।
आते हैं क्या काम, अलग सब लेकर डेरे ।

मात-पिता असहाय, उदाहरण बहुत पास का ।
बड़ी विरोधी राय, मजा एकांतवास का ।।

5 comments:

  1. प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,

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  2. सामाजिक सन्दर्भों पर अच्छी प्रस्तुति . वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन -४८ १८८ ,यू एस ए .

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. बेहद सुन्दर प्रस्तुति SIR

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