तुम्हारे जाने के बाद !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
बैसवारी baiswari
आया ऊंट पहाड़ के, नीचे गया दबाय ।
दुःख के दिनवा गिन रहा, नानक देव सहाय ।
नानक देव सहाय, कृपा हो जाये जम के ।
ऊंट उठा बलबला, घूँट कडुवे हैं गम के ।
खाना पीना छूट, नहीं सप्ताह नहाया ।
सपने देखे रोज, लौट सारा घर आया ।।
दुःख के दिनवा गिन रहा, नानक देव सहाय ।
नानक देव सहाय, कृपा हो जाये जम के ।
ऊंट उठा बलबला, घूँट कडुवे हैं गम के ।
खाना पीना छूट, नहीं सप्ताह नहाया ।
सपने देखे रोज, लौट सारा घर आया ।।
विरह का यह दंश है, रिक्त सब्र के कोष।
तृषा में अनुरक्त हुआ, आज स्वयं संतोष |
तृषा में अनुरक्त हुआ, आज स्वयं संतोष |
जिन्दगी सा कुछ...!
लिएंडर मोदी !!!
गत भूपति नीतीश की, मोदी पेस विशेष |
जोड़ीदारों की खड़ी, खटिया सम्मुख रेस |
जोड़ीदारों की खड़ी, खटिया सम्मुख रेस |
खटिया सम्मुख रेस, स्वार्थ मद अहंकार है |
जाय भाड़ में देश, जीभ में बड़ी धार है |
रविकर करिए गर्व, बनो न किन्तु घमण्डी |
तुलोगे कौड़ी मोल, अगर प्रभु मारा डंडी ||
तेरे मेरे बीच की .....
देखें सुन्दर चित्र तो, लगता बड़ा विचित्र ।
ताक रहा अपलक झलक, मनसा किन्तु पवित्र ।
मनसा किन्तु पवित्र, झलकती कैंडिल लाइट ।
किरणें स्वर्ण बिखेर, करे हैं फ्यूचर ब्राइट ।
दूर बसे सौ मील, मीत कर्मों के लेखे ।
ऋतु आये जो शरद, साल हो जाए देखे ।।
डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
अंजुमन
अंजुमन
यह दर्द कहाँ से आया है, क्या है यह दूजा तल्ला |
रहते हैं ताबूत सजाये, बंद पड़ा क्या उसका पल्ला |
किसने चाय बनाई होगी, पत्ती सुगर बचाई होगी -
किसको कथा सुनाती हो तुम, मचा रही क्यूँ हल्ला-गुल्ला ??
रहते हैं ताबूत सजाये, बंद पड़ा क्या उसका पल्ला |
किसने चाय बनाई होगी, पत्ती सुगर बचाई होगी -
किसको कथा सुनाती हो तुम, मचा रही क्यूँ हल्ला-गुल्ला ??
रविकर करे धमाल,रोज़ की बात हो गई,
ReplyDeleteबुरा हमारा हाल ,खड़ी अब खाट हो गई :-)
सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे |
Deleteबिन बीबी के मात भैया धीरे धीरे |
विकट मर्द की जात भैया धीरे धीरे |
दिखलाए औकात भैया धीरे धीरे |
खा लो बासी भात भैया धीरे धीरे |
खाकर के फै'लात भैया धीरे धीरे |
चार दिनन की बात भैया धीरे धीरे |
सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे ||
मैं समझा था कविवर छंद का तीसरा दोहा पूर्ण करेंगे
ReplyDeleteआप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !
मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!
?
लूटा संग आनंद, आज तड़पन है भारी |
Deleteहै विछोह से तंग, जंग है भारी जारी ||
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Deleteआप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
Deleteअली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !
मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!
कब तक सहता रहूँगा,मैं विरही का ताप,
मन को ठंडक तब मिले,घर आयें जब आप !!
आपकी दिल्लगी भी मन को भाती है।
ReplyDeleteकहीं पढ़ा था --- अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे -- बधाई देना तो बनता है।
बेहतरीन .......
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteशेअर करने के लिए आभार!