Wednesday, 20 June 2012

परम मित्र हे सुज्ञ, वियोगी बात बनाता-

तुम्हारे जाने के बाद !

संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari  
आया ऊंट पहाड़ के, नीचे गया दबाय ।
दुःख के दिनवा गिन रहा, नानक देव सहाय ।

 
नानक देव सहाय, कृपा हो जाये जम के  ।
 ऊंट उठा बलबला, घूँट कडुवे हैं गम के ।

 
खाना पीना छूट, नहीं सप्ताह नहाया ।
सपने देखे रोज, लौट सारा घर आया ।। 
विरह का यह दंश है, रिक्त सब्र के कोष।
तृषा में अनुरक्त हुआ, आज स्वयं संतोष |




  1. आज स्वयं संतोष, होश में आया बच्चा |
    आँगन को दे दोष, खा रहा खाना कच्चा |
    वैसे तो है विज्ञ, मगर मूरख बन जाता |
    परम मित्र हे सुज्ञ, वियोगी बात बनाता ||
  2. वाह!! कविवर, हम निरुत्तर!! 
  3. आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
    अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !




    1. wah wah.....kamal
      pranam.
    2. मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
      साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!
    3. टूटा फूटा क्षीण बल, खल अब रहा विशेष ।
      दीदी जल्दी जाइये, ताकत भी नि:शेष ।
      ताकत भी नि:शेष, केस यह टेढा-मेढ़ा ।
      मित्र दे रहे क्लेश, सभी ने मिलकर छेड़ा ।
      खींच रहे सब टांग, तोड़ कर भगा खूंटा ।
      है भाई की मांग, जोड़िये टूटा-फूटा ।।
      रविकर करे धमाल,रोज़ की बात हो गई,
      बुरा हमारा हाल ,खड़ी अब खाट हो गई :-)





      1. सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे |
        बिन बीबी के मात भैया धीरे धीरे |
        विकट मर्द की जात भैया धीरे धीरे |
        दिखलाए औकात भैया धीरे धीरे |
        खा लो बासी भात भैया धीरे धीरे |
        खाकर के फै'लात भैया धीरे धीरे |
        चार दिनन की बात भैया धीरे धीरे |
        सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे ||




      1. बहुत दिनों के बाद , मज़ा आया था बच्चा !
        उस दिन तो मन बड़ा प्रफुल्लित लगता बच्चा
        कपडे धोले, उठ बिस्तर से , लंच बना ले !
        पढ़ ले अब अखबार,किचिन में चाय बनाकर !
      2. चार दिनों से खा रहा,खिचड़ी और दही,
        अब क्या और कराओगे,अँसुवन-धार बही !

        1. आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
          अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !


          मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
          साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!


          कब तक सहता रहूँगा,मैं विरही का ताप,
          मन को ठंडक तब मिले,घर आयें जब आप !
        2. मंगल भावों का उदय, छाये परमानंद |
          शुभ शुभ योगायोग है, विरह अग्नि हो मंद |
          विरह अग्नि हो मंद, चंद दिन ही तो बाकी |
          महके मधु मकरंद, मस्त महिमा अम्बा की |
          मैया का आशीष, ख़त्म हो मन के दंगल |
          मिटे विरह की टीस, होय सब मंगल मंगल ||

जिन्दगी सा कुछ...!

लिएंडर मोदी !!!

गत भूपति नीतीश की, मोदी पेस विशेष |
जोड़ीदारों की खड़ी, खटिया सम्मुख रेस |

खटिया सम्मुख रेस, स्वार्थ मद अहंकार है |
जाय भाड़ में देश, जीभ में बड़ी धार है |

रविकर करिए गर्व, बनो न किन्तु घमण्डी |
तुलोगे कौड़ी मोल, अगर प्रभु मारा डंडी ||

तेरे मेरे बीच की .....


देखें सुन्दर चित्र तो, लगता बड़ा विचित्र ।
ताक रहा अपलक झलक, मनसा किन्तु पवित्र ।

मनसा किन्तु पवित्र, झलकती कैंडिल लाइट ।
किरणें स्वर्ण बिखेर, करे हैं फ्यूचर ब्राइट ।

दूर बसे सौ मील, मीत कर्मों के लेखे ।
ऋतु आये जो शरद, साल हो जाए देखे ।।

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
अंजुमन 
यह दर्द कहाँ से आया है, क्या है यह दूजा तल्ला |
रहते हैं ताबूत सजाये, बंद पड़ा क्या उसका पल्ला |
किसने चाय बनाई होगी, पत्ती सुगर बचाई होगी -
किसको कथा सुनाती हो तुम, मचा रही क्यूँ हल्ला-गुल्ला ??

9 comments:

  1. रविकर करे धमाल,रोज़ की बात हो गई,
    बुरा हमारा हाल ,खड़ी अब खाट हो गई :-)

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    1. सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे |
      बिन बीबी के मात भैया धीरे धीरे |

      विकट मर्द की जात भैया धीरे धीरे |
      दिखलाए औकात भैया धीरे धीरे |

      खा लो बासी भात भैया धीरे धीरे |
      खाकर के फै'लात भैया धीरे धीरे |

      चार दिनन की बात भैया धीरे धीरे |
      सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे ||

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  2. मैं समझा था कविवर छंद का तीसरा दोहा पूर्ण करेंगे

    आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
    अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !
    मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
    साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!

    ?

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    1. लूटा संग आनंद, आज तड़पन है भारी |
      है विछोह से तंग, जंग है भारी जारी ||

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    2. आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
      अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !

      मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
      साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!

      कब तक सहता रहूँगा,मैं विरही का ताप,
      मन को ठंडक तब मिले,घर आयें जब आप !!

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  3. आपकी दिल्लगी भी मन को भाती है।
    कहीं पढ़ा था --- अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे -- बधाई देना तो बनता है।

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  4. बहुत उम्दा!
    शेअर करने के लिए आभार!

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