Wednesday, 13 June 2012

पुतली से रखते सटा, सब अपने जंजाल

बड़ा मदारी है वही,  जिसका इंगित मात्र   |
जीरो से हीरो करे, जीरो करे सुपात्र  |
जीरो करे सुपात्र , नचावै बन्दर सारे ।
भिक्षाटन का कर्म, घुमाए द्वारे द्वारे ।
परिकल्पन पर कलप, रोइये  बारी बारी ।
ब्लॉगर की यह झड़प, देखता बड़ा मदारी ।। 

बेटियाँ

Kailash Sharma  

जिम्मेदारी का वहन, करती बहन सटीक |
मौके पर मिलती खड़ी, बेटी सबसे नीक |
बेटी सबसे नीक, पिता की गुड़िया रानी |
चले पकड़ के लीक, बेटियां बड़ी सयानी |
रविकर का आशीष, बेटियाँ बढ़ें हमारी |
मातु-पिता जा चेत, समझ निज जिम्मेदारी ||

G.N.SHAW 

अपने गम में लिप्त सब,  दूजे का ना ख्याल |
पुतली से रखते सटा, सब अपने जंजाल |


सब अपने जंजाल, कोसते रहते सबको |
खुद की टेढ़ी चाल, उलाहन देते रब को |


डाक्टर घर वीरान, मिटे जीवन के सपने |
कर कर्तव्य महान, जलाता शव को अपने ||


हवा में झूमते लहलहाते वे परस्पर संवाद करते हैं


पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |

7 comments:

  1. वाह...
    बहुत खूब!
    लगता है आप किसी को भी टिपियाने से नहीं छोड़ेंगे।

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  2. बहुत सुन्दर...

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  3. भाई रविकर जी फैजाबादी लेखन के प्रति आपके समर्पण और प्रति -बढता को सलाम बड़ा मदारी है वही, जिसका इंगित मात्र |
    जीरो से हीरो करे, जीरो करे सुपात्र |
    जीरो करे सुपात्र , नचावै बन्दर सारे ।
    भिक्षाटन का कर्म, घुमाए द्वारे द्वारे ।
    परिकल्पन पर कलप, रोइये बारी बारी ।
    ब्लॉगर की यह झड़प, देखता बड़ा मदारी ।। बहुत सटीक शब्द बान है वागीश की अकाट्य मिसाइल है ,क्या बात है व्यंग्य व्यंजना की .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
    गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |
    ram ram bhai
    बुधवार, 13 जून 2012
    हवा में झूमते लहलहाते वे परस्पर संवाद करते हैं
    हवा में झूमते लहलहाते वे परस्पर संवाद करते हैं


    पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात ,गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात --|-भाई रविकर जी फैजाबादी
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  4. अरे अगर टिपियाना ही छोड़ देगा रविकर
    तो फिर लिखने का मजा क्या रह जायेगा।
    टिपयाते रहो डरना नहीं शास्त्री जी को मैं समझा लूंगा ।

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  5. आपकी पोस्ट कल 14/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा - 902 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  6. सदाबहार हो रविकर...!

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  7. Awesome, matchless comments...

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