Thursday, 28 June 2012

बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया-


बाई-सेक्सुयल मैन गे, करिए इन्हें सेलेक्ट- चर्चा मंच 925

अरुण निगम जी की रचना पर  
नारद जी की टिप्पणी 
पर  
नारद झगड़ा दे लगा, करे अरुण से प्रीत |
व्यंग-कमल देता खिला, बढ़िया इसकी रीत |

बढ़िया इसकी रीत, हास्य की महिमा गाता |
फिफ्टी-फिफ्टी गीत, राय अपनी रख जाता |

रविकर कर आभार, कृपा करना हे शारद |
है बढ़िया इंसान, लोकहित करता नारद ||
अरुण निगम जी की टिप्पणी पर 
(1) 
संतोष त्रिवेदी की रचना पर  
अरुणोदय होते हृदय, मिला परम संतोष |
आगम-निगम की स्तुति, बजा शंख-शुभ घोष |

बजा शंख-शुभ घोष, रचे दोहे मन-भावन |

सूख रहे थे ग्राम, बरसता झमझम सावन |

माँ की कृपा अपार, करें सेवा साहित्यिक |
दोनों का आभार, क्रमश:करूँ वैयक्तिक ||

अरुण निगम जी की टिप्पणी पर 
(2)
संगीता स्वरूप जी की रचना पर  
 दीदी की रचना सभी, भाव पूर्ण अति-गूढ ।
लेकिन अल्प प्रयास से, समझे रविकर मूढ़ ।

समझे रविकर मूढ़, टिप्पणी बढ़िया भाई ।
अरुण-निगम आभार, समझ में पूरी आई । 

मन की चादर चार, अगर हो जाती बोलो ।
 दाग दार बेकार,  नई वाली लो खोलो ।।

काव्यांजलि / धीर जी की टिप्पणी पर 
रहें सलामत मित्र-गण, सेवें नित साहित्य |
दुनिया खूब सराहती, कवियों के शुभ कृत्य |


कवियों के शुभ कृत्य, अरुण संतोष धीर जी |
नारद का आभार, खींचे बड़ी लकीर जी |


बढ़िया छपे कवित्त, नहीं आई है सामत |
रचें सदा उत्कृष्ट, रहें सब मित्र सलामत || 


उमाशंकर जी का स्वागत चर्चा-मंच पर  
चर्चा मंथन कर सभी, करते अमृत पान |
विश्लेषण आलोचना, बांटे मंगल ज्ञान |


बांटे मंगल ज्ञान, कभी विष भी तो निकले |
विषपायी श्रीमान, ख़ुशी से सारा निगले |


शंकर का आभार, करे रविकर अभिनन्दन |
करें कृपा हर बार, कीजिये चर्चा मंथन ||

M VERMA
जज़्बात  

वर-माँ का मिल जाय तो, जीवन सुफल कहाय |
वर्मा जी की कवितई, दिल गहरे छू जाय |

दिल गहरे छू जाय, खाय के इन्नर मीठा |
रोप रहे हैं धान, चमकते बारिस दीठा |

बापू को इस बार, घुमाना दिल्ली भैया  |
बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया ||


My Image
हुभाषी कवि-गण मिले, जले हृदय अंगार ।
डाल रहे बारूद अब, अन्तरिक्ष के पार ।

अन्तरिक्ष के पार, बड़ी मस्ती है छाई ।
खाए रविकर खार, किन्तु है बहुत बधाई ।

एक मंच पर ढेर, मिला पर सारा बासी ।
होवे ऐक्य प्रगाढ़, मिले नियमित बहुभाषी ।। 

बारिश में धूप

रजनीश तिवारी
रजनीश का ब्लॉग

उलाहना देता रहा, सदियों से इंसान |
मिले यहाँ प्रत्यक्ष जो, कम उसका सम्मान |


कम उसका सम्मान, कहीं की बाढ़ हकीक़त  |
सूखा रहा निचोड़, कहीं पर खून मुसीबत |


रविकर धोबीघाट, धूप की सदा वन्दना |
लेकिन कृषक समाज, कभी दे रहा उलहना | 


सुगम-दुर्गम !

पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !  

उभरी सुथरी भूमि पर, देते नजर गड़ाय |
चौकी चुप्पे डालते, देते रंग जमाय |


देते रंग जमाय, हाय पहले ना समझी  |
बुलडोजर मंगवाय, आज अब उलझी सुलझी |


नीति-नियत में खोट, चोट हरदिन है खाई |
रहते करके ओट, नोट से प्रीति बढ़ाई ||


चर्चा-मंच पर 
Blogger रविकर फैजाबादी said...

    @अरुण कुमार निगम


    महाभयंकर रोग है, ढूँढो नीम हकीम |
    जान निकाले कवितई, ऐसी वैसी नीम ||

Blogger रविकर फैजाबादी said...

    सादर स्वागत आपका, मिला आपका स्नेह |
    श्रीमन के ये दो वचन,करे सिक्त ज्यूँ मेह ||

    July 1, 2012 4:58 PM
    Delete
Blogger रविकर फैजाबादी said...

    शास्त्री जी से

    करूँ निवेदन आपसे, गुरुवर दीजे ध्यान |
    रिप्लाई के आप्शन, करें काम आसान |
    करें काम आसान, टिप्पणी का प्रत्युत्तर |
    एक साथ स्थान, चमक फैले वृहत्तर |
    उमा, धीर सर अरुण, पुराने जोशी आदिक |
    विश्लेषण कर मस्त, प्यार फैलाय चतुर्दिक ||

5 comments:

  1. इस त्वरितता से चकित
    लाजवाब

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  2. आपकी बराबरी हम तो कर नहीं सकते सो हमसे ज़्यादा उम्मीद ना रखना....आपकी कुंडलियों ने बड़े-बड़ों को लपेट लिया है !

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  3. हमेशा की तरह नि:शब्‍द करती पोस्‍ट ... आभार

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  4. लपेटते रहिये।
    अच्छा लपेट रहे हैं।

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