बाई-सेक्सुयल मैन गे, करिए इन्हें सेलेक्ट- चर्चा मंच 925
अरुण निगम जी की रचना पर
नारद जी की टिप्पणी
पर
नारद झगड़ा दे लगा, करे अरुण से प्रीत |नारद जी की टिप्पणी
पर
व्यंग-कमल देता खिला, बढ़िया इसकी रीत |
बढ़िया इसकी रीत, हास्य की महिमा गाता |
फिफ्टी-फिफ्टी गीत, राय अपनी रख जाता |
रविकर कर आभार, कृपा करना हे शारद |
है बढ़िया इंसान, लोकहित करता नारद ||
अरुण निगम जी की टिप्पणी पर
(1)
संतोष त्रिवेदी की रचना पर
अरुणोदय होते हृदय, मिला परम संतोष |(1)
संतोष त्रिवेदी की रचना पर
आगम-निगम की स्तुति, बजा शंख-शुभ घोष |
बजा शंख-शुभ घोष, रचे दोहे मन-भावन |
सूख रहे थे ग्राम, बरसता झमझम सावन |
माँ की कृपा अपार, करें सेवा साहित्यिक |
दोनों का आभार, क्रमश:करूँ वैयक्तिक ||
अरुण निगम जी की टिप्पणी पर
(2)संगीता स्वरूप जी की रचना पर
दीदी की रचना सभी, भाव पूर्ण अति-गूढ ।
लेकिन अल्प प्रयास से, समझे रविकर मूढ़ ।
समझे रविकर मूढ़, टिप्पणी बढ़िया भाई ।
अरुण-निगम आभार, समझ में पूरी आई ।
मन की चादर चार, अगर हो जाती बोलो ।
दाग दार बेकार, नई वाली लो खोलो ।।
काव्यांजलि / धीर जी की टिप्पणी पर
रहें सलामत मित्र-गण, सेवें नित साहित्य |
दुनिया खूब सराहती, कवियों के शुभ कृत्य |
कवियों के शुभ कृत्य, अरुण संतोष धीर जी |
नारद का आभार, खींचे बड़ी लकीर जी |
बढ़िया छपे कवित्त, नहीं आई है सामत |
रचें सदा उत्कृष्ट, रहें सब मित्र सलामत ||
उमाशंकर जी का स्वागत चर्चा-मंच पर
चर्चा मंथन कर सभी, करते अमृत पान |विश्लेषण आलोचना, बांटे मंगल ज्ञान |
बांटे मंगल ज्ञान, कभी विष भी तो निकले |
विषपायी श्रीमान, ख़ुशी से सारा निगले |
शंकर का आभार, करे रविकर अभिनन्दन |
करें कृपा हर बार, कीजिये चर्चा मंथन ||
M VERMA
जज़्बात
जज़्बात
वर-माँ का मिल जाय तो, जीवन सुफल कहाय |
वर्मा जी की कवितई, दिल गहरे छू जाय |
वर्मा जी की कवितई, दिल गहरे छू जाय |
दिल गहरे छू जाय, खाय के इन्नर मीठा |
रोप रहे हैं धान, चमकते बारिस दीठा |
बापू को इस बार, घुमाना दिल्ली भैया |
बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया ||
बहुभाषी कवि-गण मिले, जले हृदय अंगार ।
डाल रहे बारूद अब, अन्तरिक्ष के पार ।
अन्तरिक्ष के पार, बड़ी मस्ती है छाई ।
खाए रविकर खार, किन्तु है बहुत बधाई ।
एक मंच पर ढेर, मिला पर सारा बासी ।
होवे ऐक्य प्रगाढ़, मिले नियमित बहुभाषी ।।
बारिश में धूप
रजनीश तिवारीरजनीश का ब्लॉग
उलाहना देता रहा, सदियों से इंसान |
मिले यहाँ प्रत्यक्ष जो, कम उसका सम्मान |
कम उसका सम्मान, कहीं की बाढ़ हकीक़त |
सूखा रहा निचोड़, कहीं पर खून मुसीबत |
रविकर धोबीघाट, धूप की सदा वन्दना |
लेकिन कृषक समाज, कभी दे रहा उलहना |
सुगम-दुर्गम !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !
अंधड़ !
उभरी सुथरी भूमि पर, देते नजर गड़ाय |
चौकी चुप्पे डालते, देते रंग जमाय |
देते रंग जमाय, हाय पहले ना समझी |
बुलडोजर मंगवाय, आज अब उलझी सुलझी |
नीति-नियत में खोट, चोट हरदिन है खाई |
रहते करके ओट, नोट से प्रीति बढ़ाई ||
चर्चा-मंच पर
Blogger रविकर फैजाबादी said...@अरुण कुमार निगम
महाभयंकर रोग है, ढूँढो नीम हकीम |
जान निकाले कवितई, ऐसी वैसी नीम ||
Blogger रविकर फैजाबादी said...
सादर स्वागत आपका, मिला आपका स्नेह |
श्रीमन के ये दो वचन,करे सिक्त ज्यूँ मेह ||
July 1, 2012 4:58 PM
Delete
Blogger रविकर फैजाबादी said...
शास्त्री जी से
करूँ निवेदन आपसे, गुरुवर दीजे ध्यान |
रिप्लाई के आप्शन, करें काम आसान |
करें काम आसान, टिप्पणी का प्रत्युत्तर |
एक साथ स्थान, चमक फैले वृहत्तर |
उमा, धीर सर अरुण, पुराने जोशी आदिक |
विश्लेषण कर मस्त, प्यार फैलाय चतुर्दिक ||
इस त्वरितता से चकित
ReplyDeleteलाजवाब
आपकी बराबरी हम तो कर नहीं सकते सो हमसे ज़्यादा उम्मीद ना रखना....आपकी कुंडलियों ने बड़े-बड़ों को लपेट लिया है !
ReplyDeleteहमेशा की तरह नि:शब्द करती पोस्ट ... आभार
ReplyDeleteवाह:लाजवाब ...
ReplyDeleteलपेटते रहिये।
ReplyDeleteअच्छा लपेट रहे हैं।