हाई कमान को खुश करने के लिए मुंह से मल
Virendra Kumar Sharma
गुदा-नाम मुख ते फिरे, छी मसले जयराम |
होता शौचालय मुखर, श्रद्धा केंद्र तमाम |
श्रद्धा केंद्र तमाम, खुदा के घर में नाली |
फिर आसन सी सीट, उसी पर बैठ सवाली |
प्राप्त करे सुख चैन, इसी से सत्ता पाना |
मन की शुचिता छोड़, देह पर नाम गुदाना ||
चित की शुचिता के लिए, नित्य कर्म निबटाय |
ध्यान मग्न हो जाइये, पड़े अनंत उपाय |
पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला |
पढ़ देवा का अर्थ, हमेशा देनेवाला |
रविकर जीवन व्यस्त, करे कविता जनहित की |
आत्मोत्थान उपाय, करेगी शुचिता चित की |
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सागर की लहरें
Manav Mehta 'मन'
सागर की लहरें ललक, लहर लहर लहराय |
जिए चार पल शान से, मनवांछित गति पाय ||
'देवालय'बनाम 'शौचालय'
Akanksha Yadav
देवा रे देवा गजब, हिन्दू हृदय सम्राट |
शुचिता पर की टिप्पणी, जोह शौच की बाट |
जोह शौच की बाट, नहीं मिलता शौचालय |
खड़ी हो गई खाट, खफा करते देवालय |
जन्म भूमि पर चोट, करें जयराम *कुटेवा |
मोदी के भी वोट, काट लेंगे अब देवा ||
*बुरी आदत वाला
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पंगत हित पत्तल पड़े, रहे परोस *सुआर |
किन्तु सुअर घुस कर करे, भोज-भाज बेकार |
भोज-भाज बेकार, कहे बकवास बनाया |
लालू यहाँ रसीद, वहाँ अन्दर करवाया |
न्यायोचित यह कर्म, राज की बदले रंगत |
पर पी एम् का मर्म, भूख से व्याकुल पंगत ||
इस देश को कुछ लोग चला रहे है : राहुल गांधी (मगरपिटाई क्यू हुई ? )मार कुटाई फाड़ा फाड़ी, की क्या करते बात | नेता बुड्ढा मार खा रहा, इसकी जो औकात | युवा युवा युवराज हमारे, हो हाथों में खाज | अध्या ही क्या देश फाड़ दे, क्यूँ कर आयें बाज | दिखते हैं इकलौते वारिस, मनमोहन का ताज |
जब चाहेंगे रख लें सिर पर, समझ बाप का राज ||
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अध्यादेश वापिस लेनें में राजनितिक नौटंकी के सिवा क्या था !!
पूरण खण्डेलवाल
"किचन कैबिनट" तोड़ के, देता बाप रूलाय | देता बाप रूलाय, हमारे बबलू भोले | नौटंकी के पात्र, तनिक सा ज्यादा बोले | रही मात्र इक चाह, किस तरह मुद्दा *मूसू | खेद-खाद बकवास, कहीं भी करता सू सू || *चुराकर ले भागना |
शान्त *चित्ति के फैसले, करें लोक कल्यान-
शान्त *चित्ति के फैसले, करें लोक कल्यान |
चिदानन्द संदोह से, होय आत्म-उत्थान |
होय आत्म-उत्थान, स्वर्ग धरती पर उतरे |
लेकिन चित्त अशान्त, सदा ही काया कुतरे |
चित्ति करे जो शांत, फैसले नहीं *कित्ति के |
करते नहीं अनर्थ, फैसले शान्त चित्ति के ||
चित्ति = बुद्धि
कित्ति = कीर्ति / यश
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सू सू करके क्लास में, ले मम्मी की राय |
ReplyDelete"किचन कैबिनट" तोड़ के, देता बाप रूलाय |
देता बाप रूलाय, हमारे बबलू भोले |
नौटंकी के पात्र, तनिक सा ज्यादा बोले |
रही मात्र इक चाह, किस तरह मुद्दा *मूसू |
खेद-खाद बकवास, करें ये यूँ ही सू सू ||
क्या बात है रविकर जी। ये मंद मति ऐसी हरकतें करता है जैसे लौकिक में पंगत बैठ गई हो ब्राह्मण जीम रहें हों और अचानक कोई शैतान लड़का आये और सारी पत्तलें फैंक दे।
जैसे स्कूल में बीच क्लास में कोई बालक शु शु कर दे घर आये मम्मी को बतलाये ,माम्मी जी समझाए - न बेटा न ,बीच क्लास में शू शू नहीं करते हैं। बच्चा पलट के स्कूल आये मास्टर जी से कहे -मम्मी कह रहीं हैं ये बुरी बात होती है खुले में यूं शू शू करना। मास्टर जी शू शू अब नहीं करूंगा सारी सर झुकाए कहे।
देखो देखो भारत देश ऐसे ही मंदमति को प्रधानमन्त्री बनाना चाहता है जो कैबनेट के हस्ताक्षरित पत्र को यूं फाड़के फैंक देने की बेहूदा बात बे -सलीका करे।
बात के मर्म को सही पकड़ा है दोस्त आपने .कंडेंस किया है भाव को .पढ़के भाव शांति हुई .आभार आपका हमारे ब्लॉग के शीर्ष पर यह काव्यात्मक रचना .
ReplyDeleteगुदा-नाम मुख ते फिरे, छी मसले जयराम |
होता शौचालय मुखर, श्रद्धा केंद्र तमाम |
श्रद्धा केंद्र तमाम, खुदा के घर में नाली |
फिर आसन सी सीट, उसी पर बैठ सवाली |
प्राप्त करे सुख चैन, इसी से सत्ता पाना |
मन की शुचिता छोड़, देह पर नाम गुदाना ||
वाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति.!
ReplyDeleteनवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
RECENT POST : पाँच दोहे,
sunder.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.!नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
ReplyDeleteताजातरीन राजनैतिक घटनाक्रम पर तीखा व्यंग्य .. अतिशय सुन्दर। आभार रविकर जी।
ReplyDeleteसुंदर टिप्पणी !
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का। प्रेरण उत्प्रेरण काम आता है।
ReplyDeleteपंगत हित पत्तल पड़े, रहे परोस *सुआर |
ReplyDeleteकिन्तु सुअर घुस कर करे, भोज-भाज बेकार |
भोज-भाज बेकार, कहे बकवास बनाया |
लालू यहाँ रसीद, वहाँ अन्दर करवाया |
न्यायोचित यह कर्म, राज की बदले रंगत |
पर पी एम् का मर्म, भूख से व्याकुल पंगत ||
शुक्रिया आपकी बेहद सटीक सद्य टिपण्णी का। प्रेरण उत्प्रेरण काम आता है।पंगत शब्द का कमाल का इस्तेमाल किया है आपने।
क्या बात पूरी बखिया उधेड़ दी इन बिगडेल ढ़ेडों की बधाई।
ReplyDeleteइस देश को कुछ लोग चला रहे है : राहुल गांधी (मगर
पिटाई क्यू हुई ? )
मार कुटाई फाड़ा फाड़ी, की क्या करते बात |
नेता बुड्ढा मार खा रहा, इसकी जो औकात |
युवा युवा युवराज हमारे, हो हाथों में खाज |
अध्या ही क्या देश फाड़ दे, क्यूँ कर आयें बाज |
दिखते हैं इकलौते वारिस, मनमोहन का ताज |
जब चाहेंगे रख लें सिर पर, समझ बाप का राज ||