नवरात्रि और विजयादशमी की शुभकामनायें
१२ से फ़ैजाबाद / लखनऊ प्रवास पर-
१९-२० को दिल्ली में-
२३ को वापसी-रविकर
हवस में अंधे नारी और पुरुष:एक ही रथ के सवार
koushal
डंका बाजे हवश का, बढे-चढ़े नर-नारि |
देह हुई परवश अगर, होय सबल कुविचार |
होय सबल कुविचार, बुद्धि पर लगते ताले |
घटित होय व्यभिचारि, मिटाते घर मतवाले |
सूर्पनखा की चाह, दाह देती कुल-लंका |
संयम नियम सलाह, धर्म का बाजे डंका ||
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लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला-
तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी से दो कौर |
नानी से दो कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला | |
भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का |
कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका || |
चित्र के विचारों से कैसे करोगे मुकाबला (कविता) दादाभाई
नुक्कड़
दादा दादी को मिली, इक नन्हीं सी जान |
इक नन्हीं सी जान, जान लो माता आई |
माता के गुणगान, करो मुन्ना पहुनाई |
रविकर का आशीष, बुद्धि बल विद्या पाओ |
रहो स्वस्थ सानन्द, विराजो गुड़िया आओ ||
लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहारः जब कांप उठा था देश
Jai Sudhir
बाथे-नरसंहार का, मिट जाता कुल दोष |
उलट गया अब फैसला, इत खुशियाँ उत रोष |
इत खुशियाँ उत रोष, बिछी अट्ठावन लाशें |
तड़प रहीं दिन रात, कातिलों तुम्हें तलाशें |
माना तुम निर्दोष, क़त्ल फिर किसके माथे |
मांग रहा इन्साफ, पुन: लक्ष्मण पुर बाथे |
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हाँ से खेलें देह दो, वर्षों कामुक खेल-
हाँ से खेलें देह दो, वर्षों कामुक खेल |
दर्ज शिकायत इक करे, हो दूजे को जेल |
हो दूजे को जेल, नौकरी शादी झाँसा |
यह सिद्धांत अपेल, बना अब अच्छा-खाँसा |
हुई मौज वह झूठ, कौन अब किसको फाँसे
रिश्ते की शुरुवात, हुई थी लेकिन हाँ से |
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मस्त सूत्र आपने निराले अंदाज़ में ...
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