Wednesday, 9 October 2013

देह हुई परवश अगर, होय सबल कुविचार-

नवरात्रि और विजयादशमी की शुभकामनायें 
१२ से फ़ैजाबाद / लखनऊ प्रवास पर-
१९-२० को दिल्ली में-
२३ को वापसी-रविकर  

हवस में अंधे नारी और पुरुष:एक ही रथ के सवार


koushal  

 डंका बाजे हवश का, बढे-चढ़े नर-नारि |
देह हुई परवश अगर, होय सबल कुविचार |

होय सबल कुविचार, बुद्धि पर लगते ताले |
घटित होय व्यभिचारि, मिटाते घर मतवाले |

सूर्पनखा की चाह, दाह देती कुल-लंका |
संयम नियम सलाह, धर्म का बाजे डंका ||

लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला-

तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी से दो कौर |


नानी से दो कौर, दौर वह मस्ती वाला | 
लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला | |


भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का |
कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||

चित्र के विचारों से कैसे करोगे मुकाबला (कविता) दादाभाई

नुक्‍कड़ 
आओ मिल स्वागत करें, सोहर मंगल गान |
दादा दादी को मिली, इक नन्हीं सी जान |

इक नन्हीं सी जान, जान लो माता आई |
माता के गुणगान, करो मुन्ना पहुनाई |

रविकर का आशीष, बुद्धि बल विद्या पाओ |
रहो स्वस्थ सानन्द, विराजो गुड़िया आओ ||

 

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहारः जब कांप उठा था देश

Jai Sudhir 
बाथे-नरसंहार का, मिट जाता कुल दोष |
उलट गया अब फैसला, इत खुशियाँ उत रोष |

इत खुशियाँ उत रोष, बिछी अट्ठावन लाशें |
तड़प रहीं दिन रात, कातिलों तुम्हें तलाशें |

माना तुम निर्दोष, क़त्ल फिर किसके माथे |
मांग रहा इन्साफ, पुन: लक्ष्मण पुर बाथे |

हाँ से खेलें देह दो, वर्षों कामुक खेल-

हाँ से खेलें देह दो, वर्षों कामुक खेल |
दर्ज शिकायत इक करे, हो दूजे को जेल |

हो दूजे को जेल, नौकरी शादी झाँसा |
यह सिद्धांत अपेल, बना अब अच्छा-खाँसा |

हुई मौज वह झूठ, कौन अब किसको फाँसे 
रिश्ते की शुरुवात, हुई थी लेकिन हाँ से |




नैना साहनी हत्याकांड -उच्चतम न्यायालय अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे .




Supreme Court

तन्दूरी में दे पका, जिससे रहा सनेह |
टोटे-टोटे दिल किया, बोटी बोटी देह |

बोटी बोटी देह, उसे तड़पाया काटा |
लगा लगा अवलेह, दुष्ट हर टुकड़ा चाटा |

फाँसी करती मुक्त, सजा होती ना पूरी  |
अब आजीवन कैद, खाय खुद की तन्दूरी |


दुरवाणी ही याद रहेगी यूँ आखिर -सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना 
लगे लड़ाका लड़कियां, निश्चय होवे भोर |
सुनता सुरवाणी सरस, हरस रहा मन मोर |

हरस रहा मन मोर, बात दिल की कह देती |
मैया दिखे प्रसन्न, बलैयाँ सौ सौ लेती |

कह रविकर आशीष, मिले नित दुर्गे माँ का |
पाती वे अधिकार, आज जो लगे लड़ाका || 

अपनी राम कहानी में.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया

दिल के दौर तीन पड़े पर, गति समुचित है नाड़ी की |

लश्कर बिन हथियार दिखे अब, धार तेज पर वाणी की |


शब्दों के व्यवहार बदलते, जब से जग में देखा है-
भावों पर विश्वास करें नहिं-बातें समझ अनाड़ी की | 




दे लालू पर दाग, दगा दे दहुँदिश दरजी-

दरजी दहुँदिश दर्जनों, कैंची सरिस जुबान |
काट-छाँट में रत मगर, मुखड़े पर मुस्कान |

मुखड़े पर मुस्कान, दिखी खुदगर्जी घातक |
रविकर नाक घुसेड, थोपते मर्जी पातक |

सी बी आई तेज, मुलायम माया गरजी |
दे लालू पर दाग, दगा दे दहुँदिश दरजी ||


सुन्दर मन के भाव अति, सधे सधाए वर्ण |
सुनकर के संतृप्त हुवे,, परिणीता के कर्ण |
परिणीता के कर्ण, युगल को बहुत बधाई |
शुद्ध समर्पण देख, ख़ुशी घर आँगन छाई |

ठुमुक ठुमुक शिशु देख, खिले रविकर का अन्तर |
यही आज आशीष, बने जीवन यह सुन्दर || 





1 comment:

  1. मस्त सूत्र आपने निराले अंदाज़ में ...

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