कार्टून :- भरत से खड़ाऊँ वसूलने के दिन आए ?
noreply@blogger.com (काजल कुमार Kajal Kumar)
आता जाता क्रोध है, खाता देता फाड़ |
खड़ा खडाऊं के लिए, चला झोंकने भाड़ |
चला झोंकने भाड़, इकट्ठा करता ईंधन |
ऊ धन का उपयोग, जिताए महा इलेक्शन |
मोहन सत्ता सौंप, नहीं अब तुझको भाता |
शहजादे का कोप, इसी से आता जाता ||
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गांधीजी के नहाने का दिन
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दायें बीयर बार जब, बाएं बिकता गोश्त | बाएं बिकता गोश्त, पार्क में अनाचार है | उधम मचाएं लोग, तडपती दिखे नारि है | इत मोदी का जोर, बड़ी जोरों की आँधी | उत उठता तूफ़ान, बड़े गुस्से में गाँधी || पट्टे टें टें कर उठा, राम-राम को भूल |
मिर्ची से कडुवे लगे, पुन: सुपुत्र उसूल |
पुन: सुपुत्र उसूल, तूल ना देते बप्पा |
पोता रहे खिलाय, वंश का जिस पर ठप्पा |
पुत्र बसा परदेश, करें क्यूँ रिश्ते खट्टे |
माता देती डांट, करे चुप अपना *पट्टे |
*तोता
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जीवन की संजीवनी, है हौंसला अदम्य | दूर-दृष्टि हो प्रभु कृपा, पाए लक्ष्य अगम्य ||
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गांधी जयन्ती बधाई हो...महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को नमन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आभार
धन्यवाद रविकर जी , कार्टून को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए
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