नैना साहनी हत्याकांड -उच्चतम न्यायालय अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे .
तन्दूरी में दे पका, जिससे रहा सनेह |
टोटे-टोटे दिल किया, बोटी बोटी देह |
बोटी बोटी देह, उसे तड़पाया काटा |
लगा लगा अवलेह, दुष्ट हर टुकड़ा चाटा |
फाँसी करती मुक्त, सजा होती ना पूरी |
अब आजीवन कैद, खाय खुद की तन्दूरी |
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अपने-अपने ज़माने का .....ये बचपन !!!
बचपन तब का और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |
नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |
आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |
कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||
दौरे दिल का दर्द इत, उत दौरे पर पूत |
सुतके दौरे बेधड़क, *पिउ बे-धड़कन *सूत ||
*पिता
*सो गया
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दुरवाणी ही याद रहेगी यूँ आखिर -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना
सुनता सुरवाणी सरस, हरस रहा मन मोर | हरस रहा मन मोर, बात दिल की कह देती | मैया दिखे प्रसन्न, बलैयाँ सौ सौ लेती | कह रविकर आशीष, मिले नित दुर्गे माँ का |
पाती वे अधिकार, आज जो लगे लड़ाका ||
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अपनी राम कहानी में.
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
दिल के दौर तीन पड़े पर, गति समुचित है नाड़ी की | लश्कर बिन हथियार दिखे अब, धार तेज पर वाणी की |शब्दों के व्यवहार बदलते, जब से जग में देखा है-
भावों पर विश्वास करें नहिं-बातें समझ अनाड़ी की |
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दे लालू पर दाग, दगा दे दहुँदिश दरजी-
दरजी दहुँदिश दर्जनों, कैंची सरिस जुबान |
काट-छाँट में रत मगर, मुखड़े पर मुस्कान |
मुखड़े पर मुस्कान, दिखी खुदगर्जी घातक |
रविकर नाक घुसेड, थोपते मर्जी पातक |
सी बी आई तेज, मुलायम माया गरजी |
दे लालू पर दाग, दगा दे दहुँदिश दरजी ||
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सुन्दर मन के भाव अति, सधे सधाए वर्ण |
सुनकर के संतृप्त हुवे,, परिणीता के कर्ण |
परिणीता के कर्ण, युगल को बहुत बधाई |
शुद्ध समर्पण देख, ख़ुशी घर आँगन छाई |
ठुमुक ठुमुक शिशु देख, खिले रविकर का अन्तर |
यही आज आशीष, बने जीवन यह सुन्दर ||
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बढ़िया सूत्र और कमाल की कुण्डलियाँ ।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहतरीन !
ReplyDeleteबढ़िया सूत्र ..
ReplyDeleteअच्छे सूत्रों के साथ लिंक लिखाड़ !!
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteमार्मिक प्रसंग .कर्म भोगना बाकी है अभी तंदूरी लाल की .
ReplyDeleteरविकर जी आपकी लेखनी को नमस्कार ......
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