Saturday, 5 October 2013

बहन राम की सगी, उपेक्षित त्रेता द्वापर-रविकर

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता

 कुंडली 
रविकर नीमर नीमटर, वन्दे हनुमत नाँह ।
विषद विषय पर थामती, कलम वापुरी बाँह ।

कलम वापुरी बाँह, राह दिखलाओ स्वामी ।

शांता का दृष्टांत, मिले नहिं अन्तर्यामी ।

बहन राम की श्रेष्ठ, उपेक्षित त्रेता द्वापर ।
रचवा दो शुभ-काव्य, क्षमा मांगे अघ-रविकर ।
नीमटर=किसी विद्या को कम जानने वाला 
नीमर=कमजोर ) 
सर्ग-1
भाग-1 
अयोध्या  
Om
सोरठा  

वन्दऊँ पूज्य गणेश, एकदंत हे गजबदन  |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||

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वन्दौं गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़-मति,
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

गोधन-गोठ प्रणाम, कल्प-वृक्ष गौ-नंदिनी |
गोकुल चारो धाम, गोवर्धन-गिरि पूजता ||3||

वेद-काल का साथ, गंगा सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, है सरयू समकालिनी ||4||

राम-भक्त हनुमान,  सदा विराजे अवधपुर |
सरयू होय नहान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||

 करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर अति-निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||

क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||

सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
हरि-हर ब्रह्म सँदेश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||

पूज्य अयुध  भूपाल, रामचंद्र के पित्र-गण |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ।। 9।।
कार्टून :- कवि‍ता तेरे खेल नि‍राले
My Image Kajal Kumar 


भूसा भरा दिमाग में, रविकर फांके धूल |
पढ़िए कुण्डलियाँ मगर, कार्टून करूं क़ुबूल |

कार्टून करूं क़ुबूल, मस्त यह दाँव सिखाया |
काजल नयनन डाल, आज बच्चा गुर्राया |

दिया कवित्त सुनाय, खाय के दो ठो घूसा |
हुआ शत्रु बेहोश, भरा था किंवा भूसा ||

रविकर जीवन व्यस्त, करे कविता जनहित की-

चित की शुचिता के लिए, नित्य कर्म निबटाय |
ध्यान मग्न हो जाइये, पड़े अनंत उपाय |

पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला |
पढ़ देवा का अर्थ, हमेशा देनेवाला |

रविकर जीवन व्यस्त, करे कविता जनहित की |
आत्मोत्थान उपाय, करेगी शुचिता चित की | 

हक़ अव्वल निर्दोष, उठा तू मोटा कर्जा-

-दिल्ली कल,कर्नाटक आज -

कर्जा खाए पार्टियाँ, रही चुकाय उधार |
मंत्री गृह-मंत्री कभी, कभी सकल सरकार |

कभी सकल सरकार, तुम्हे दे सकल संपदा |
तुम ही तारण-हार, हरोगे तुम ही विपदा |

खोवे रविकर होश, पाय के दोयम दर्जा |
हक़ अव्वल निर्दोष, उठा तू मोटा कर्जा |

बढे धरा की शान, बने रविकर सद्कर्मी-

सद्कर्मी रचता रहे, हितकारी साहित्य |
प्राणि-जगत को दे जगा, करे श्रेष्ठतम कृत्य |

करे श्रेष्ठतम कृत्य, धर्म जब हो बेचारा |
होय भोग का भृत्य, चरण चौथा भी वारा |

होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी |
बढे धरा की शान, बने रविकर सद्कर्मी || 

उमड़ घुमड़ के बादल बरसे, फिर भी धरती तरसे |
ताजा बासी जो भी मिलता, पा रविकर मन हरसे-

लालू यहाँ रसीद, वहाँ अन्दर करवाया-

पंगत हित पत्तल पड़े, रहे परोस *सुआर |
किन्तु सुअर घुस कर करे, भोज-भाज बेकार |

भोज-भाज बेकार, कहे बकवास बनाया |
लालू यहाँ रसीद, वहाँ अन्दर करवाया |

न्यायोचित यह कर्म, राज की बदले रंगत |
पर पी एम् का मर्म, भूख से व्याकुल पंगत || 

5 comments:

  1. आपको नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ !

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  2. बहुत ख़ूब! नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ .नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
    latest post: कुछ एह्सासें !

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  4. वाह एक से बढ़्कर एक सुंदर !

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