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रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
फगवाड़ा भी मस्त है, छिंदवाड़ा भी मस्त | कहीं अकाली लड़ रहे, कहीं कमल अभ्यस्त | कहीं कमल अभ्यस्त, कहीं हो रहे धमाके | देते गलत बयान, दुलारे अपनी माँ के | जाती नीति बिलाय, धर्म हो जाता अगवा | रही दुष्टता जीत, खेलती घर घर फगवा || |
इसीलिए तो कमल को, तोप रही कांग्रेस |
बेमतलब क्यूँ तोप से, जगा रहे यह देश | जगा रहे यह देश, लोक हित नारद घूमे | लेकिन दारुबाज, पिए बिन संसद झूमे | असली सिंडिकेट, दफ़न कब का हो जाती | आई की कांगरेस, व्यर्थ ही रेस लगाती || |
रावण के क्षत्रप : भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन
प्रबंध काव्य का लिंक:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता
भाग-5
सोरठा
रास रंग उत्साह, अवधपुरी में खुब जमा |
उत्सुक देखे राह, कनक महल सजकर खड़ा ||
चौरासी विस्तार, अवध नगर का कोस में |
अक्षय धन-भण्डार, हृदय कोष सन्तोष धन |
पाँच कोस विस्तार, कनक भवन के अष्ट कुञ्ज |
इतने ही थे द्वार, वन-उपवन बारह सजे ||
शयन-केलि-श्रृंगार, भोजन-कुञ्ज-स्नान-कुञ्ज |
झूलन-कुञ्ज-बहार, अष्ट कुञ्ज में थे प्रमुख ||
चम्पक-विपिन-रसाल, पारिजात-चन्दन महक |
केसर-कदम-तमाल, नाग्केसरी-वन विचित्र ||
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कर नारायण ना नुकुर, गर है नारा ढील -
नारा से नाराजगी, नौ सौ चूहे लील |
कर नारायण ना-नुकुर, गर है नारा ढील |
गर है नारा ढील, नहीं हज-हाजत जाना |
जा बाबा को भूल, स्वयं की जान बचाना |
नेता नारा भक्त, नहीं अब कोई चारा |
दाढ़ी बाल बनाय, पकड़ के भाग किनारा ||
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सुरेश स्वप्निल की प्रकाशित, अप्रकाशित हिन्दी कविताओं का संग्रह्
अति-नायक के हाथ सत्ता
अति नायक को छोड़िये, आया पाक विचार |
धाक धमाके सब जगह, अंदर बाहर मार |
अंदर बाहर मार, धार्मिक जेहादी का |
करते खुला प्रचार, मिला दुनिया का ठीका |
शुतुरमुर्ग सा बंद, आँख रविकर कर लेगा |
नहीं दिखे उन्माद, दिखाओ ऐसे ठेंगा ||
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वाह...।
ReplyDeleteकमाल है।
बहुत बढ़िया ढंग से टिपिया दिया आपने तो।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-10-2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
बहुत खूब यहां भी और वहां भी :)
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