सांत्वना (लघु कथा) : अरुण निगम
पैसा बप्पा से बड़ा, पैसा करे इलाज | लाज नहीं आती दिखी, आई पर आवाज | आई पर आवाज, हमी ने था सिखलाया | चाचा मामा बुआ, कई रिश्ते छुड़वाया | सदा पढ़ाया पाठ, आज जैसे को तैसा | सोलह दूनी आठ, मँगा लो रविकर पैसा || |
अपनी राम कहानी में.
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
लश्कर बिन हथियार दिखे अब, धार तेज पर वाणी की |
शब्दों के व्यवहार बदलते, जब से जग में देखा है-
भावों पर विश्वास करें नहिं-बातें समझ अनाड़ी की |
दे लालू पर दाग, दगा दे दहुँदिश दरजी-
दरजी दहुँदिश दर्जनों, कैंची सरिस जुबान |
काट-छाँट में रत मगर, मुखड़े पर मुस्कान |
मुखड़े पर मुस्कान, दिखी खुदगर्जी घातक |
रविकर नाक घुसेड, थोपते मर्जी पातक |
सी बी आई तेज, मुलायम माया गरजी |
दे लालू पर दाग, दगा दे दहुँदिश दरजी ||
|
अपने-अपने ज़माने का .....ये बचपन !!!
बचपन तब का और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |
नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |
आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |
कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||
....
दौरे दिल का दर्द इत, उत दौरे पर पूत |
सुतके दौरे बेधड़क, *पिउ बे-धड़कन *सूत ||
*पिता
*सो गया
*सो गया
.
ये दिल मांगत मोर-
दुर्मिल सवैया
पुरबी उर-*उंचन खोल गई, खुट खाट खड़ी मन खिन्न हुआ |
कुछ मत्कुण मच्छर काट रहे तन रेंगत जूँ इक कान छुआ |
भडकावत रेंग गया जब ये दिल मांगत मोर सदैव मुआ |
फिर नारि सुलोचन ब्याह लियो शुभचिंतक मांगत किन्तु दुआ |
उंचन=खटिया कसने वाली रस्सी , उरदावन
मत्कुण=खटमल
|
दुरवाणी ही याद रहेगी यूँ आखिर -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना
सुनता सुरवाणी सरस, हरस रहा मन मोर |
हरस रहा मन मोर, बात दिल की कह देती |
मैया दिखे प्रसन्न, बलैयाँ सौ सौ लेती |
कह रविकर आशीष, मिले नित दुर्गे माँ का |
पाती वे अधिकार, आज जो लगे लड़ाका ||
|
सुन्दर मन के भाव अति, सधे सधाए वर्ण |
सुनकर के संतृप्त हुवे,, परिणीता के कर्ण |
परिणीता के कर्ण, युगल को बहुत बधाई |
शुद्ध समर्पण देख, ख़ुशी घर आँगन छाई |
ठुमुक ठुमुक शिशु देख, खिले रविकर का अन्तर |
यही आज आशीष, बने जीवन यह सुन्दर ||
उठाओ कुदाल !
Amrita Tanmay
जीवन यात्रा क्यूँ रुके, प्रेषित गीता मर्म | प्रेषित गीता मर्म, धर्म अपना अपनाओ | खिले धूप से चर्म, हाथ फावड़ा उठाओ | हल से हल हो प्रश्न, छोड़ मत धरती परती |
मनें रोज ही जश्न, जाति जब कोशिश करती ||
|
सदा पढ़ाया पाठ, आज जैसे को तैसा |
ReplyDeleteसोलह दूनी आठ, मँगा लो रविकर पैसा ||
क्या बात है .
सदा पढ़ाया पाठ, आज जैसे को तैसा |
ReplyDeleteसोलह दूनी आठ, मँगा लो रविकर पैसा ||
सुंदर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
काफी दिनों बाद मेरे पोस्ट पर काव्यमय टिप्प्णी करने के लिए आभार,,,रविकर जी,,,
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'