काजल कुमार के कार्टून
प्रणव नाद से मुखर जी, रोके अनुचित चाह |
वाह वाह युवराज की, देता कुटिल सलाह |
देता कुटिल सलाह, मानती किचन कैबिनट |
हो जाते सब चित्त, करा दे बबलू नटखट |
झेल रही सरकार, रोज ही विकट हादसे |
रविकर करता ध्यान, हमेशा प्रणव नाद से ||
कार्टून :- भरत से खड़ाऊँ वसूलने के दिन आए ?
noreply@blogger.com (काजल कुमार Kajal Kumar)
आता जाता क्रोध है, खाता देता फाड़ |
खड़ा खडाऊं के लिए, चला झोंकने भाड़ |
चला झोंकने भाड़, इकट्ठा करता ईंधन |
ऊ धन का उपयोग, जिताए महा इलेक्शन |
मोहन सत्ता सौंप, नहीं अब तुझको भाता |
शहजादे का कोप, इसी से आता जाता ||
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जरूरी नहीं सब सबकुछ समझ ले जायें
Sushil Kumar Joshi
सेकुलर साम्प्रदायिक सही, बन जाओ तुम एक |
डुबो जा मझधार में, देंगे नहिं तो फेंक ||
गांधीजी के नहाने का दिन
Bamulahija dot Com
गाँधी कब का भूलते, दो अक्तूबर दोस्त | दायें बीयर बार पब, बाएं बिकता गोश्त | बाएं बिकता गोश्त, पार्क में अनाचार है | उधम मचे बाजार, तडपती दिखे नार है | इत मोदी का जोर, बड़ी जोरों की आँधी | उत उठता तूफ़ान, दिखा गुस्से में गाँधी || पट्टे टें टें कर उठा, राम-राम को भूल |
मिर्ची से कडुवे लगे, पुन: सुपुत्र उसूल |
पुन: सुपुत्र उसूल, तूल ना देते बप्पा |
पोता रहे खिलाय, वंश का जिस पर ठप्पा |
पुत्र बसा परदेश, करें क्यूँ रिश्ते खट्टे |
माता देती डांट, करे चुप अपना *पट्टे |
*तोता
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धन्यवाद रविकर जी.
ReplyDeleteचारा खाके भैंस का जो डकार न लेय ,
ReplyDeleteनीति ऐसे राज की खूब बलइयां लेय।
बढ़िया व्यंग्य विडंबन।
ReplyDeleteगाँधी कब का भूलते, दो अक्तूबर दोस्त |
दायें बीयर बार जब, बाएं बिकता गोश्त |
बाएं बिकता गोश्त, पार्क में अनाचार है |
उधम मचाएं लोग, तडपती दिखे नारि है |
इत मोदी का जोर, बड़ी जोरों की आँधी |
उत उठता तूफ़ान, बड़े गुस्से में गाँधी ||
दाएं बीअर बार पब ,बाएँ बिकता गोश्त
ऊधम मचे बज़ार ,तड़ पती दिखे नार है।
आभार
ReplyDeleteसुंदर चर्चा आभार !
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ReplyDeleteआता जाता क्रोध है, खाता देता फाड़ |
खड़ा खडाऊं के लिए, चला झोंकने भाड़ |
चला झोंकने भाड़, इकट्ठा करता ईंधन |
ऊ धन का उपयोग, जिताए महा इलेक्शन |
मोहन सत्ता सौंप, नहीं अब तुझको भाता |
शहजादे का कोप, इसी से आता जाता ||
नहीं देगा तो सर पे खायेगा .