Thursday, 31 October 2013

करना क्या बदलाव, लाज लुटने दो दीदी-


 दीदी तो संतुष्ट हैं, मुतमईन है भाय |
मँहगाई गाई गई, भ्रष्टाचार अघाय |

भ्रष्टाचार अघाय, व्यवस्था विधि के हाथे |
नेहरू-गाँधी भक्त, मस्त सत्ता के साथे |

रखी ताक़ पर बुद्धि, सोच भी गई खरीदी |
करना क्या बदलाव, लाज लुटने दो दीदी ||

रावण का गुप्तचर ;

प्रबंध काव्य का लिंक:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता
  घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।

पानी पानी काम, केलि कर काई कीचड़ ।
रहे नोचते *पाम, काइयाँ  पापी लीचड़ ।

भौरों की बारात, पतंगे जलते मोघे  ।। 
श्रेष्ठ विदेही पात, नहीं बन जाते घोंघे ।
  (*किनारी की छोर पर लगी गोटी)

सरदार पर सियासत


S.N SHUKLA 


लोहा है हर देह में, भरा अंग-प्रत्यंग |
मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग |

मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता |
नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता |

लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||

हवा बदलने स्वर्ग, चले के पी सक्सेना-

Photo: लखनऊ से अट्हास पत्रिका के संपादक और चर्चित रचनाकार अनूप श्रीवास्तव ने दुखद समाचार दिया कि आज सुबह ७ बजे हिंदी व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर के पी सक्सेना का स्वर्गवास हो गया। हिंदी व्यंग्य को विशाल पाठक वर्ग से जोड़ने एवं उसे लोकप्रिय विधा बनाने में के पी भाई का महत्वपूर्ण योगदान है ,

क्या फक्फेना फाहब, फ़ेंचुरी तो हो जाने देते - ब्लॉग 

बुलेटिन

सेनापति तुम हास्य के, व्यंग अंग प्रत्यंग |
लखनौवा तहजीब के, जीवित मल्ल- मलंग |

जीवित मल्ल- मलंग, अमीना हजरत बदले |
बदले बदले रंग, ढंग पर पश्चिम लद ले |

हुआ बड़ा बदलाव, नहीं अब ठेना देना |
हवा बदलने स्वर्ग, चले के पी सक्सेना ||

देहात

दीप एक : रंग अनेक













विविध रंग के दीप ये, फैला धवल प्रकाश |
लोचन दो राजीव में, जगा रहे हैं आस ||

हथेली में तिनका छूटने का अहसास

प्रकृति के साथ

बोझिल यह जीवन दिखे, अलस पसरता गेह |
खोटी दिनचर्या हुई, मोटी होती देह |

मोटी होती देह, मेह से भीगे धरती |
प्राणदायिनी वायु, देख ले दृश्य कुदरती |

करले रविकर ध्यान, मोक्ष ही अंतिम मंजिल |
बढ़िया यह आख्यान, लेख बिलकुल नहिं बोझिल ||

पारा-पारी ब्लास्ट, महज छह जान गई है-

रविकर-पुंज
*फेलिन करता फेल जब, मनसूबे आतंक |
बिना आर.डी.एक्स के, हल्का होता डंक |

हल्का होता डंक, सुपारी फेल हुई है |
पारा-पारी ब्लास्ट, महज छह जान गई है |

कृपा ईश की पाय, कहाँ फिर मोदी मरता -
आई एस आई चाल, फेल यह फेलिन करता ||

WEDNESDAY, 30 OCTOBER 2013


देता शौचालय बचा, मोदी जी की जान-



रविकर लखनऊ में २०-१०-१३ : फ़ोटो मनु
देता शौचालय बचा, मोदी जी की जान |
अभी अभी जो दिया था, तगड़ा बड़ा बयान |

तगड़ा बड़ा बयान, प्रथम शौचालय आये |
पीछे देवस्थान, गाँव आदर्श बनाये |

मानव-बम फट जाय, और बच जाता नेता |
शौचालय जय जयतु, बधाई रविकर देता ||

मोदी मोधू में छिड़ी, जब वासंतिक जंग-


मोदी मोधू में छिड़ी, जब वासंतिक जंग |
तब परचून दूकान से, मोधू *किने पतंग |

मोधू किने पतंग, मँगा माँझा लाहौरी |
रहा विरासत बाँध, चढ़ाये बाहें-त्योरी |

बहुत उड़ रहा किन्तु, तेज बरसात भिगो दी |
इधर लगाए ढेर, बेचता जाये मोदी ||
*ख़रीदे

गलतियां गिनाने के बजाय अपनी गलतियां सुधारियें, नीतीश जी !

S.K. Jha 

घटनाएं जब यकबयक, होंय खड़ी मुँह फाड़ |
असमंजस में आदमी, काँप जाय दिल-हाड़ |

काँप जाय दिल-हाड़, बचाना लेकिन जीवन |
आये  लाखों लोग, जहाँ सुनने को भाषण |

कर तथ्यों की बात, गलतियां ढूंढे पटना |
सह मोदी आघात, सँभाले प्रति-दुर्घटना ||


 डरे सुपारी से अगर, कैसे होय सुपार |

आज मरे या कल मरे, ये तो देंगे मार |


ये तो देंगे मार, जमाना दुश्मन माना |

शायद टूटे तार, किन्तु छोड़े क्यूँ गाना |


दीवाना यह देश, देखता राह तुम्हारी |

जीतोगे तुम रेस, आप से डरे सुपारी ||



5 comments:

  1. बढ़िया सामयिक चिंतनशील चर्चा प्रस्तुति

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  2. बहुत सुंदर चर्चा .

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  3. बढ़िया, सुन्‍दर। शुभकामनाएं दीपोत्‍सव की। धन्‍यवाद।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति .. दाढ़ी मुड़वा कर दिवाली पर स्मार्ट लग रहे हैं .. :) :) दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं ..

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