दीदी तो संतुष्ट हैं, मुतमईन है भाय |
मँहगाई गाई गई, भ्रष्टाचार अघाय |
भ्रष्टाचार अघाय, व्यवस्था विधि के हाथे |
नेहरू-गाँधी भक्त, मस्त सत्ता के साथे |
रखी ताक़ पर बुद्धि, सोच भी गई खरीदी |
करना क्या बदलाव, लाज लुटने दो दीदी ||
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रावण का गुप्तचर ;
प्रबंध काव्य का लिंक:- मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता
घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
पानी पानी काम, केलि कर काई कीचड़ ।
रहे नोचते *पाम, काइयाँ पापी लीचड़ ।
भौरों की बारात, पतंगे जलते मोघे ।।
श्रेष्ठ विदेही पात, नहीं बन जाते घोंघे ।
(*किनारी की छोर पर लगी गोटी)
सरदार पर सियासत
S.N SHUKLA
मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग | मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता | नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता | लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा | किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा || |
हवा बदलने स्वर्ग, चले के पी सक्सेना-
क्या फक्फेना फाहब, फ़ेंचुरी तो हो जाने देते - ब्लॉग
बुलेटिन
सेनापति तुम हास्य के, व्यंग अंग प्रत्यंग |
लखनौवा तहजीब के, जीवित मल्ल- मलंग |
जीवित मल्ल- मलंग, अमीना हजरत बदले |
बदले बदले रंग, ढंग पर पश्चिम लद ले |
हुआ बड़ा बदलाव, नहीं अब ठेना देना |
हवा बदलने स्वर्ग, चले के पी सक्सेना ||
हथेली में तिनका छूटने का अहसास
बोझिल यह जीवन दिखे, अलस पसरता गेह |
खोटी दिनचर्या हुई, मोटी होती देह |
मोटी होती देह, मेह से भीगे धरती |
प्राणदायिनी वायु, देख ले दृश्य कुदरती |
करले रविकर ध्यान, मोक्ष ही अंतिम मंजिल |
बढ़िया यह आख्यान, लेख बिलकुल नहिं बोझिल ||
पारा-पारी ब्लास्ट, महज छह जान गई है- रविकर-पुंज
*फेलिन करता फेल जब, मनसूबे आतंक |
बिना आर.डी.एक्स के, हल्का होता डंक |
हल्का होता डंक, सुपारी फेल हुई है |
पारा-पारी ब्लास्ट, महज छह जान गई है |
कृपा ईश की पाय, कहाँ फिर मोदी मरता -
आई एस आई चाल, फेल यह फेलिन करता ||
WEDNESDAY, 30 OCTOBER 2013मोदी मोधू में छिड़ी, जब वासंतिक जंग-
मोदी मोधू में छिड़ी, जब वासंतिक जंग |
तब परचून दूकान से, मोधू *किने पतंग |
मोधू किने पतंग, मँगा माँझा लाहौरी |
रहा विरासत बाँध, चढ़ाये बाहें-त्योरी |
बहुत उड़ रहा किन्तु, तेज बरसात भिगो दी |
इधर लगाए ढेर, बेचता जाये मोदी ||
*ख़रीदे
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गलतियां गिनाने के बजाय अपनी गलतियां सुधारियें, नीतीश जी !
S.K. Jha
घटनाएं जब यकबयक, होंय खड़ी मुँह फाड़ | असमंजस में आदमी, काँप जाय दिल-हाड़ | काँप जाय दिल-हाड़, बचाना लेकिन जीवन | आये लाखों लोग, जहाँ सुनने को भाषण | कर तथ्यों की बात, गलतियां ढूंढे पटना | सह मोदी आघात, सँभाले प्रति-दुर्घटना || |
डरे सुपारी से अगर, कैसे होय सुपार |आज मरे या कल मरे, ये तो देंगे मार |ये तो देंगे मार, जमाना दुश्मन माना |शायद टूटे तार, किन्तु छोड़े क्यूँ गाना |दीवाना यह देश, देखता राह तुम्हारी |जीतोगे तुम रेस, आप से डरे सुपारी || |
बढ़िया सामयिक चिंतनशील चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन चर्चा !
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा .
ReplyDeleteबढ़िया, सुन्दर। शुभकामनाएं दीपोत्सव की। धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .. दाढ़ी मुड़वा कर दिवाली पर स्मार्ट लग रहे हैं .. :) :) दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं ..
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