Tuesday 3 April 2012

अति-जोखिम का काम, करे जो वही सयाना-



खोंजें होती जा रहीं, बने नक़ल नव-धाम ।
नक़ल विधा छूती गई, नए नए आयाम । 

नए नए आयाम, नक़ल ना फ़िल्मी गाना।
अति-जोखिम का काम, करे जो वही सयाना ।

झोंक सामने झूल, फूल सा खिलता मुखड़ा ।
अगर शख्त हो रूल, सुनाता घूमे दुखड़ा ।।


चावल एक्स्ट्रा वाईट और ब्राउन ,मिथ और यथार्थ  

  ram ram bhai 
पालिश करत कबाड़ा, बदल पालिसी मील ।
पौष्टिकता टिकती रहे, छिलके उतने छील । 

छिलके उतने छील, छिलाती जैसे पब्लिक ।
असहनीय संताप,  नहीं सत्ता के माफिक । 

पर भूखा पा जाय, अगर कुछ मोटा-माड़ा ।
नहीं भूख से मौत, करे ना व्यर्थ कबाड़ा ।। 




NAINITAL LAKE नैनीताल झील

   जाट देवता का सफ़र

मृगया करते फिर रहा, मृग नयनी के नैन ।
नैनी नोनी नयन ने, किया जाट बेचैन ।

किया जाट बेचैन, छलें अति-महंगे जामुन ।
नाविक पंडा सरिस, दिखाए अपने अवगुन ।

लेकर पैडल बोट, ताकिये नीले बादल ।
नीला हरित सफ़ेद, बदलता ऋतु से यह जल ।।

 

भूख

babanpandey at मेरी बात

क्षुधा मिटे ते कामना, बढ़ें ह्रदय अभिलाख ।
बढे लालसा वासना, हो बकवादी भाख ।

हो बकवादी भाख, भाड़ में जाए इज्जत ।
समझाए धी लाख, चाबता पापड लिज्जत । 

मिटा सका जो भूख, आदमी भूखा तब भी ।
हो दानव या देव, झेल जाएगा रब भी ।


"बात करते हैं हम पत्थरों से..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

  उच्चारण
पत्थर के परिवार में, शंकर जल कोहनूर ।
तरह-तरह के अयस्क से, हैं  पत्थर भरपूर ।

हैं  पत्थर भरपूर, मानिए लगें देवता ।
करते इच्छा पूर, ध्यान कर भक्त सेवता ।

पत्थर दिल था प्यार, ज़माना गया अठहत्तर ।
समझे पिछले साल, बने जब जीवन पत्थर  ।। 


सफलता ही सब कुछ है....चाहे डर्टी बनें .. डा श्याम गुप्त...

डा. श्याम गुप्त / एक ब्लॉग सबका
करो परीक्षा पास तुम, नक़ल शकल दम घूस ।
खड़ी व्यवस्था राज की,  नक्सल बनकर चूस ।

नक्सल बनकर चूस, अधिकतर लोग उपेक्षित ।
किस्मत जो मनहूस, लूट लो चीजें इच्छित ।

चहकें झंडे गाड़, कैरिअर गुरु की दीक्षा ।
लाव सफलता पास, पास ना करो परीक्षा ।।

अभिव्यंजना का जन्मदिन

Maheshwari kaneri at अभिव्यंजना 

चली घुटुरवन बहुत दिन, झेले हर्ष विषाद ।
हस्पताल में गुम गई, जश्न जन्म के बाद ।

जश्न जन्म के बाद, मिले यशवंत पाबला ।
तब से पल पल याद, हुआ था ह्रदय बावला ।

अब तो पायल बाँध, घूमती करती रुनझुन ।
प्रभु का है आभार, बढाते जाएँ सदगुन ।  


तब और अब ...कविता , कवि और नायक / महानायक की इच्छा.......डा श्याम गुप्त..

दन्त हीन जब हो गया, ख्वाहिश गन्ना खाय ।
जब तक नाडी दम रहे, तब तक नहीं बुझाय ।

तब तक नहीं बुझाय, कैरियर खूब बनाया ।
लम्बी रेखा खीँच, जया-विजया तब पाया ।

बड़ी प्रीमियर लीग, नहीं घाटे का सौदा ।
बनिया बच्चन रीझ, बनाने चला घरौंदा ।। 

भोली गाय

Patali-The-Village at Patali
 इसीलिए वो शेर है, दिल है वीर दिलेर ।
स्वयं भूख से तड़पता, गाय छोड़ता घेर ।

गाय छोड़ता घेर, बड़ी गैया है मैया ।
दूध सहित दे प्यार, लौट कर आती गैया ।

सज्जन का व्यवहार, सुधारे दुर्जन भारी ।
आज होय पर हार,  बड़े बाढ़े व्यभिचारी ।।   


कविताई

संगीता स्वरुप ( गीत ) at गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
 किलकारी में हैं छुपे, जीवन के सब रंग ।
सबसे अच्छा समय वो, जो बच्चों के संग ।

जो बच्चों के संग, खिलाएं पोता पोती ।
दीपक प्रति अनुराग, प्यार से ताकें ज्योती ।

दीदी दादी होय, दीखती दमकी दृष्टी ।
ईश्वर का आभार, गोद में खेले सृष्टी ।  




माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा....

Vishaal Charchchit at विशाल चर्चित 

इक अति छोटे शब्द पर, बड़े बड़े विद्वान ।
युगों युगों से कर रहे, टीका व व्याख्यान ।

टीका व व्याख्यान,  सृष्टि को देती जीवन
न्योछावर मन प्राण, सँवारे जिसका बचपन ।
हो जाता वो दूर,  सभी सिक्के हों खोटे ।
कितनी वो मजबूर, कलेजा टोटे टोटे ।।






 

कुछ तो लिखो मेरे यार.....

  दीपक बाबा की बक बक 
गटको मयखाना सकल, अकल गुमे श्रीमान ।
सूफी की वह बेखुदी, मेटो गर्व गुमान ।

मेटो गर्व गुमान, बैठ-की-बोर्ड मरोड़ो ।
लिखना हो आसान, बोतलें ख़ाली फोड़ो ।
राम कृष्ण रहमान, मंथरा माया ममता ।
मुजरा, ड्रामा फिल्म, व्यंग बाबा पर जमता ।।


हालत खस्ता हो रही, हुवे मिलावट खोर ।
शुद्ध दूध मिलता नहीं, कंधे हैं कमजोर ।

  कंधे हैं कमजोर, नहीं बाबा जस पोता ।
जंक फूड का टिफिन, कृष्ण घी मक्खन खोता ।

कह रविकर करजोर, बदलिए भारी बस्ता ।
कंधे झुकते जांय, हुई है हालत खस्ता ।।




किन लोगों को नरक में जाना पड़ता है?

NARESH THAKUR at Knowledge Is Power

प्रीति होय न भय बिना, दंड बिना ना नीति ।
शिक्षा मिले न गुरु बिना, सद्गुण बिना प्रतीति ।

सद्गुण बिना प्रतीति, दोस्त को धोखा देना ।
हो दबंग की जीत, स्वार्थ की नैया खेना ।
 
रविकर सबकुछ भूल, चलाता  चप्पू जाए ।
सबको रहा सता, नरक पूरा विसराये ।
  




7 comments:

  1. नए नए आयाम, नक़ल ना फ़िल्मी गाना।
    अति-जोखिम का काम, करे जो वही सयाना ।
    'एडवेंचर गेम' में शरीक किया जाना चाहिए नक़ल को .नक़ल के लिए दबंगई चाहिए .गुंडई लफंगई,मुस्टंडई चाहिए .राजनीतिक साख चाहिए .मरे हुए चूजे की तरह रहता है परीक्षा भवन में सुपर -वाई -ज़र,इनविजिलेटर .परीक्षा संपन्न होने पर कहता है -जान बची और लाखों पाए ,लौट के बुद्धू घर को आये .

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    1. पोलिंग अफसर परीक्षक, दोनों को दुश्वार |
      साँसत आफत में रहे, पड़े दुतरफा मार |

      पड़े दुतरफा मार, इधर जनपद अधिकारी |
      सकल छात्र परिवार, उधर नक्सल हैं भारी |

      फाटे अपन करेज, बदल जाए जो पुल्लिंग |
      बने परीक्षक किन्तु, बनें न अफसर पोलिंग ||

      सादर

      झारखंड से --

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  2. बहुत सुन्दर...रवि जी..

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  3. पत्थर के परिवार में, शंकर जल कोहनूर ।
    तरह-तरह के अयस्क से, हैं पत्थर भरपूर ।
    अभिव्यंजना पर व्यंजना बहुत सुन्दर है .अभिधा और लक्षणा का कमाल भी आप दीखते रहें हैं .आभार इस चौकसी 24x7 के लिए .

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  4. वाह!!!बहुत खूब .....रविकर जी,....

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  5. प्रतिक्रियाओं को भी आप ने गुलदस्ते में सजा लिया उत्तम सोच /...खूबसूरत


    आदरणीय रविकर जी इन सतरंगी रचनाओं (चर्चा मंच पर ) कलियों फूलों के चुनाव में आप ने जो श्रम किया और हिंदी साहित्य को उच्च शिखर पर ले चलने का जो जज्बा और काबिलियत आप में भरी है उसे भ्रमर का सलाम ...
    आप ने मेरे ब्लॉग से भी ---यहीं खिलेंगे फूल - को चुना --मन अभिभूत हुआ आभार
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  6. बहुत सुन्दर रवि जी..आप का जवाब नहीं....आभार

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