स्मृति शिखर से – 15 : वे लोग, भाग – 5
यायावर की यह कथा, मन के बड़े समीप ।
प्रेम लुटाते जा रहे, कर प्रज्वलित प्रदीप ।
कर प्रज्वलित प्रदीप, अश्व यह अश्वमेध सा ।
बाँध सके ना कोय, ठहरना है निषेध सा ।
सिखा गए संगीत, गए सन्मार्ग दिखाकर ।
सादर करूँ प्रणाम, सफ़र कर 'वे' यायावर ।।
तेरा आँचल आवारा बादल
babanpandey at मेरी बात
चाह जहाँ पर है सखे, राह वहीँ दिख जाय ।
स्नेह-सिक्त बौछार से, अग्नि-शिखा बुझ जाय ।।
एक रूपये ने किया, असरदार इक काम ।
कीमत चुकता....
मो सम कौन कुटिल खल ...... ?एक रूपये ने किया, असरदार इक काम ।
ग्राहक पक्का हो गया, ठेले तुझे सलाम ।।
बात पते की कह गए, बालक सब्जी खोर ।
ठंडा पानी पी करो, राजा भैया गौर ।।
पारस तो निर्लिप्त हो, करे काम चुपचाप ।
बढ़ें भाव जिस पिंड के, रास्ता लेवें नाप ।।
चड्ढी बिन खेला किया, आठ साल तक बाल ।
शीतल मंद समीर से, अंग-अंग खुशहाल ।
अंग-अंग खुशहाल, जांघिया फिर जो पा ली।
एक चड्ढी कथा
क्वचिदन्यतोSपि..चड्ढी बिन खेला किया, आठ साल तक बाल ।
शीतल मंद समीर से, अंग-अंग खुशहाल ।
अंग-अंग खुशहाल, जांघिया फिर जो पा ली।
हुवे अधिक जब तंग, लंगोटी ढीली ढाली |
चड्ढी का खटराग, बैठ ना पावे खुड्डी ।
घट जावें इ'स्पर्म, बिगाड़े सेहत चड्ढी ।।
बड़ा मार्मिक कष्ट-प्रद, सारा यह दृष्टांत ।
बेरोजगारी
सिंहावलोकनबड़ा मार्मिक कष्ट-प्रद, सारा यह दृष्टांत ।
असहनीय जब परिस्थित, सहज लगे प्राणांत ।
सहज लगे प्राणांत, प्रशासन की अधमाई ।
या कोई षड्यंत्र, समझ मेरे ना आई ।
पर प्राणान्तक कष्ट, झेल तू प्रियजन खातिर ।
बिन तेरे परिवार, मिटा दे दुनिया शातिर ।
"बदल जमाने के साथ चल"
Sushil Kumar Joshi at "उल्लूक टाईम्स "सारे जैसा सोचते, तू वैसा ही सोच ।
बकरी को कुत्ता कहें, मत कुत्ता को कोंच ।
मत कुत्ता को कोंच, लोच जीवन में आया ।
लुच्चों ने ही आज, सदन में नाम कमाया ।
हरिश्चंद के पूत, घूमते मारे मारे ।
करो वही सब काम, करें जो चालू सारे ।।
"मजहब की दूकानों में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भक्त स्वार्थी हो गए, भूल गए भगवान् ।
बुद्धि गिरवी रख करें, ढोंगी के गुणगान ।।
गोरो के रंगरूट ये, काला तन-मन चाल ।
लूट-पाट कर कुकर्मी, चले ठोंकते ताल ।।
सीधी रेखा और अपारदर्शी झिल्ली
अरुण चन्द्र रॉय at सरोकारसुविधा-भोगी छद्मता, भोगे रेखा-पार।
वंचित भोगे *त्रिशुचता, अलग-थलग संसार ।।
*दैहिक-दैविक भौतिक ताप ।
क्या कहता कबीरा इस पर...
डा. अरुणा कपूर. at मेरी माला,मेरे मोती...
गस्त कबीरा मारता, अक्खड़ ढूंढे खूब ।
कोठे पर पाया पड़ा, रहा सुरा में डूब ।
अपनों को अपशब्द, गालियाँ देकर बहके ।
यह अक्खड़पन व्यर्थ, स्वार्थी सोच बताता ।
फँसा झूठ में जाय, तोड़ के सच्चा नाता ।।
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ReplyDeleteवाह!!!!सुंदर प्रस्तुति,..
ReplyDeleteदेर से समझ में आ रहा है
ReplyDeleteउल्लू क्यों लाया जा रहा है
लक्ष्मी जी का ब्लाग कहाँ
बनवाया जा रहा है?
रविकर भाई, सम्मोहित करती टिप्पणियां।
ReplyDeleteपहली बार आई हूँ आपके ब्लॉग पर ... कुछ हटके है ... शानदार टिप्पणियाँ ...
ReplyDeleteचड्ढी का खटराग, बैठ ना पावे खुड्डी ।
ReplyDeleteघट जावें इ'स्पर्म, बिगाड़े सेहत चड्ढी ।।
मत कुत्ता को कोंच, लोच जीवन में आया ।
लुच्चों ने ही आज, सदन में नाम कमाया ।
.व्यंग्य बाण रविकर के लागे ,सारे चोर मौसेरे जागे .