Saturday, 28 April 2012

आज बड़ों की मस्ती गायब, इसीलिए जीवन भर खरभर

"सबका मन बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


चौबीस घंटे मस्ती कर के , नए रंग दुनिया में भरता ।
मन मैला कैसे हो पाए , प्रेम स्वयं प्रक्षालन करता । 

मस्ती के घंटो से निकले , संस्कार मानवता  के स्वर ।
आज बड़ों की मस्ती गायब, इसीलिए जीवन भर *खरभर ।। 
*शोर-गुल / चिल्ल-पों 
सज्जन खुशियाँ  बांटते, दुर्जन  कष्ट बढ़ाय ।
दुर्जन मरके खुश करे, सज्जन जाय रूलाय ।

फ़ुरसत में ... 100 : अतिथि सत्कार

  मनोज  

सोफा पे पहुना पड़ा, बड़ा लवासी ढीठ ।
अतिथि-यज्ञ से दग्ध मन, पर बोलूं अति मीठ ।


पर बोलूं अति मीठ, पीठ न उसे दिखाऊं ।
रोटी शरबत माछ, बड़े पकवान खिलाऊं ।

रगड़ा चन्दन मुफ्त, चुने खुद से ही तोफा  । 
 गया हिला घर बजट, तोड़ के मेरा सोफा ।


नग्नता पर त्री-गुट ब्लॉगीय चिंतन के बाद.....

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा


आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
 परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।  


4 comments:

  1. इसमें त हमहू हैं।
    सदा की तरह ला जवाब!

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  2. अच्छे लिंक से सजाया
    अच्छा किया आज तूने
    उल्लू की दुकान का
    कूड़ा़ नहीं दिखाया ।

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    1. अच्छे लिंक, लाजवाब!

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  3. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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