वह "काली" हो जाती है
वाणी गीत at गीत मेरे .......
काली-गोरी साँवली, सब का अपना तेज ।
पर दम्भी शैतान दुष्ट, राखे नहीं सहेज ।
राखे नहीं सहेज, प्रेम को करे वासना ।
पति समझे सम्पत्ति, छोड़ता नहीं त्रासना ।
प्रेमी पति का प्रेम, लगे है गन्दी गाली ।
चेत जरा शैतान, नहीं तो प्रगटे काली ।।
लाना चाहो मार्क्स तो, पढ़ना मार्क्स विचार ।
बम-बम से करते घृणा, हरदम बम से प्यार ।
हरदम बम से प्यार, जुल्म की हदें पार की ।
मिटे पुराने केंद्र, बधाई बंग हार की ।
चले अंध सरकार, चीन से जड़ें मिटाना ।
तिब्बत का दे साथ, ख़ुशी दुनिया में लाना ।।
चर्चामंच
धर्म और विज्ञान का, उड़ा रहा उपहास |
चांदी कूटे रात दिन, बन माया का दास |
चांदी कूटे रात दिन, बन माया का दास |
बन माया का दास, धरे निर्मल- शुभ चोला |
अंतर लालच-पाप, ठगे वो रविकर भोला |
धरे ढोंग पाखण्ड, वेश भले इंसान का |
मिलना निश्चित दंड, बुरा अंत शैतान का ||
रविकर जी बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteravikar ji saamayik dohe bahut khoob.
ReplyDeleteप्रेमी पति का प्रेम, लगे है गन्दी गाली ।
ReplyDeleteचेत जरा शैतान, नहीं तो प्रगटे काली ।।
बहुत खूब!!!!रविकर जी
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
ReplyDeleteउल्फ़त का असर देखेंगे!
अच्छा लगा।
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