Thursday, 12 April 2012

चेत जरा शैतान, नहीं तो प्रगटे काली -

वह "काली" हो जाती है

वाणी गीत at गीत मेरे .......

काली-गोरी साँवली, सब का अपना तेज ।
पर दम्भी शैतान दुष्ट, राखे नहीं सहेज ।

राखे नहीं सहेज, प्रेम को करे वासना ।
पति समझे सम्पत्ति, छोड़ता नहीं त्रासना ।

प्रेमी पति का प्रेम, लगे है गन्दी गाली ।
चेत जरा शैतान, नहीं तो प्रगटे काली ।। 

लाना चाहो मार्क्स तो, पढ़ना मार्क्स विचार ।
बम-बम से करते घृणा, हरदम बम से प्यार ।

हरदम बम से प्यार, जुल्म की हदें पार की ।
मिटे पुराने केंद्र,  बधाई बंग हार की ।

चले अंध सरकार, चीन से जड़ें मिटाना ।
तिब्बत का दे साथ, ख़ुशी दुनिया में लाना ।।

चर्चामंच


 धर्म और विज्ञान का,  उड़ा रहा उपहास |
चांदी कूटे रात दिन, बन माया का दास |
 
बन माया का दास, धरे निर्मल- शुभ चोला |
अंतर लालच-पाप, ठगे वो रविकर भोला |
 
 
धरे ढोंग पाखण्ड, वेश भले इंसान का |
मिलना निश्चित दंड, बुरा अंत शैतान का ||

5 comments:

  1. रविकर जी बहुत सुन्दर...

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  2. ravikar ji saamayik dohe bahut khoob.

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  3. प्रेमी पति का प्रेम, लगे है गन्दी गाली ।
    चेत जरा शैतान, नहीं तो प्रगटे काली ।।
    बहुत खूब!!!!रविकर जी

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