मैं देखता रहा :
मालिक तड़पे दर्द से, बाम मलाये हाथ |
नौकर मलता जा रहा, पीठ दर्द के साथ |
पीठ दर्द के साथ, रखे होंठों को भींचे |
अश्रु बहे चुपचाप, आग भट्ठी की सींचे |
रविकर माँ का ख्याल, यहाँ आजादी हड़पे |
सहता जुल्म बवाल, नहीं तो मालिक तड़पे ||
नौकर मलता जा रहा, पीठ दर्द के साथ |
पीठ दर्द के साथ, रखे होंठों को भींचे |
अश्रु बहे चुपचाप, आग भट्ठी की सींचे |
रविकर माँ का ख्याल, यहाँ आजादी हड़पे |
सहता जुल्म बवाल, नहीं तो मालिक तड़पे ||
सूरज को दिया दिखाने की जिद।
सुज्ञ at ॥ भारत-भारती वैभवं ॥
शिल्पा जी आभार है, साधुवाद श्री सुज्ञ |
मीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ |
महा-कुतर्की विज्ञ, कृत्य सब अपने भायें |
करे अनैतिक काम, सही उसको ठहराएं |
जो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
जाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||
बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.कानूनी रूप से अपराध के विरुद्ध उचित कार्यवाही
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
दोनों कुंडलियां लाजवाब हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
ReplyDeleteजाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||
ha haa ha ha सत्य वचन
बहुत सटीक और सार्थक!
ReplyDeleteसुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteजो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
ReplyDeleteजाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||
दिन में माला जपत हैं ,
रात हनत हैं गाय .
बढ़िया prastuti
बढ़िया है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
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