सौम्या सृष्टी सोहिनी, माँ की मंजिल राह ।
सचुतुर, सुखदा, सुघड़ई, दुर्गे मिली अथाह ।
दुर्गे मिली अथाह, बड़ी आभारी माता ।
ताकूँ अपना अक्श, कृपा कर सदा विधाता ।
हसरत हर अरमान, सफल देखूं इस दृष्टी ।
मंगल-मंगल प्यार, लुटाती सौम्या सृष्टी ।।
पोर-पोर में प्यार है, ममता अंश असीम ।
दर्शन तुझमे ही करूँ, अपने राम रहीम ।
अखबारों का छपना देखा
श्यामल सुमन
सुमन सिखाये सच्ची चीज ।
खुश्बू सींचे अन्तर-बीज ।
काँटो को यह रास ना आये -
कुढ़न-कुबत कलही की खीज ।
गीत..........जो लिख न सकी.
उन्माद लिखें अवसाद लिखें ।
कुछ पहले की, कुछ बाद लिखें ।
हर पल का एक हिसाब बने ,
कुछ भूली बिसरी याद लिखें ।।
(केवल उत्कृष्ट कविता के लिए / नथिंग इल्स )
यूपी सरकार का काला सच ....
महेन्द्र श्रीवास्तव at बेसुरम्
चोट्टे चौगोषा लखें, चमचे चुप चुबलांय ।
चौगोषा मिष्ठान भर, चाट-चूट के खांय ।
चाट-चूट के खांय, हरेरी सबके छावे ।
अफसरगन उकताँय, जान जोखिम में पावे।
फिफ्टी-फिफ्टी होय, चलाचल चक दे फ़ट्टे ।
व्यर्थ हुवे बदनाम, आज मौसेरे चोट्टे ।।
आधा सेर चाउर
वटवृक्ष
अरविन्द मिश्रा
खबर आजतक पर चली, गली गली सी लाश ।
नक्सल-गढ़ थाने पड़ी, जिसकी रही तलाश ।।उन्होंने घर बनाए - अज्ञेय
मनोज कुमार at राजभाषा हिंदी
खुद को खुद का ना पता, खुदा बूझता खूब ।
टुकुर टुकुर रविकर लखे, गहरे ग्यानी डूब ।
जयजयकार बिल्लियों की ।
Sushil Kumar Joshi at "उल्लूक टाईम्सइच्छा कर ले नियंत्रित, मत जाना तू लेट ।
चूहों को देते अभय, उल्लू लेत लपेट ।
उल्लू लेत लपेट, आज-कल कम्बल ओढ़े ।
घी से भरते पेट, समझ न गलत निगोड़े ।
मिलते उल्लू ढेर, सोच की करो समीक्षा ।
अंधे हाथ बटेर, नहीं तो करती इच्छा ।।
फिफ्टी-फिफ्टी होय, चलाचल चक दे फ़ट्टे ।
ReplyDeleteव्यर्थ हुवे बदनाम, आज मौसेरे चोट्टे ।।
वाह बहत खूब,लिखा आपने,.....
हर पद लाजवाब!
ReplyDeleteखुद को खुद का ना पता, खुदा बूझता खूब ।
ReplyDeleteटुकुर टुकुर रविकर लखे, गहरे ग्यानी डूब ।
और यही सच्चाई भी है रविकर जी,,, सुन्दर पंक्तियाँ .......
पोर-पोर में प्यार है, ममता अंश असीम ।
ReplyDeleteदर्शन तुझमे ही करूँ, अपने राम रहीम ।
खुद को खुद का ना पता, खुदा बूझता खूब ।
टुकुर टुकुर रविकर लखे, गहरे ग्यानी डूब ।
एक से बढ़के एक अनु -टिपण्णी ,मूल पे सूद भारी .