Saturday, 14 April 2012

कर जीवन-पर्यंत, भाग्य उद्यम से जागे -

मुलाक़ात कर लूँ


बड़ी बेतुकी बात है, प्रियवर कवि-यशवंत ।
क़दमों के पाए निशाँ , क्यूँ चूके श्रीमंत ।

क्यूँ चूके श्रीमंत, बढ़ो चिन्हों पर आगे  ।
कर जीवन-पर्यंत, भाग्य उद्यम से जागे ।

रविकर सच्ची रूह,  ढूंढता हरदम जिसको ।
मुलाक़ात कर जाय, पकड़ ले जल्दी उसको ।।

 ढर्रा बहुत खराब यह, सोच चढ़े परवान ।
छोटी मोटी चोरियां, करें नहीं कल्याण ।

करें नहीं कल्याण, हाथ लंबा कुछ मारो ।
कालेज में कलेज, व्यर्थ ही भैया जारो ।
 
मिला नहीं प्रोजेक्ट, कलेजा कर के कर्रा ।
लेक्चर का अभ्यास, पकड़ बाबा का ढर्रा ।  

6 comments:

  1. वाह: क्या बात है ...?

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    1. आपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
      मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
      अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
      दिनेश पारीक
      http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html

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  2. कविता का तो जवाब नहीं....कमाल की सुंदर रचना ...

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति .

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