मुलाक़ात कर लूँ
बड़ी बेतुकी बात है, प्रियवर कवि-यशवंत ।
क़दमों के पाए निशाँ , क्यूँ चूके श्रीमंत ।
क्यूँ चूके श्रीमंत, बढ़ो चिन्हों पर आगे ।
कर जीवन-पर्यंत, भाग्य उद्यम से जागे ।
रविकर सच्ची रूह, ढूंढता हरदम जिसको ।
मुलाक़ात कर जाय, पकड़ ले जल्दी उसको ।।
ढर्रा बहुत खराब यह, सोच चढ़े परवान ।
छोटी मोटी चोरियां, करें नहीं कल्याण ।
करें नहीं कल्याण, हाथ लंबा कुछ मारो ।
कालेज में कलेज, व्यर्थ ही भैया जारो ।
मिला नहीं प्रोजेक्ट, कलेजा कर के कर्रा ।
लेक्चर का अभ्यास, पकड़ बाबा का ढर्रा ।
वाह: क्या बात है ...?
ReplyDeleteआपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
Deleteमेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
उम्दा टिप्पणी....
ReplyDeleteकविता का तो जवाब नहीं....कमाल की सुंदर रचना ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति .
ReplyDeleteरोचक रचनाएं।
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