दूजे पर निर्णय दे देना, निर्णायक का है सहज कर्म ।
समझा खुद के कुछ सही गलत, या निभा रहा वो मात्र धर्म ।
नायक इंगित कुछ किये बिना, चुपचाप दिखाता राह चला -
आदर्श करे इ'स्थापित वो, अनुसरण करे जग समझ मर्म ।।
यादों का साथ अकेला पा, जीवन को सरस बना लेता ।
कुछ कह लेता कुछ सुन लेता, गम के गाने भी गा लेता -
खुशियाँ भी चुन चुन रखे रहे, मुस्काता है शर्माता है -
जो रहे स्वस्थ खुशहाल सदा, वह सारी नियामत पा लेता ।।
वाह खबा क्या चीज हो, सहता जग परिहास ।
यादों का हसीं कारवाँ....!!!
.ashok saluja . at यादें...
यादों का साथ अकेला पा, जीवन को सरस बना लेता ।
कुछ कह लेता कुछ सुन लेता, गम के गाने भी गा लेता -
खुशियाँ भी चुन चुन रखे रहे, मुस्काता है शर्माता है -
जो रहे स्वस्थ खुशहाल सदा, वह सारी नियामत पा लेता ।।
बवाल-ए-बाल
वाह खबा क्या चीज हो, सहता जग परिहास ।
कितना भी चैतन्य हो, तुम लेते हो फांस ।
तुम लेते हो फांस, शर्त की खाय कचौड़ी ।
नाड़ा देते काट, दूर की लाते कौड़ी ।
जौ-जौ आगर जगत, मिले ना तेरा अब्बा ।
खब्ती-याना दूर, गोल कर दे ना डब्बा ।।
मेरे आस-पास कुछ बिखरा सा.......
my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शनप्यार बूढ़ दिल मोंगरा, अमलताश की आग ।
लड़की को कर के विदा, चला बुझाय चराग ।।
“ सपन संजोते देखा ”
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)सपना अपना चुन लिया, करे नहीं पर यत्न ।
बिन प्रयत्न कैसे मिले, कोई अद्भुत रत्न ।
रिश्ते
shelley at aahuti
रिश्ते रूपी बेल को, डोर प्रेम-विश्वास ।
स्वाभाविक अंदाज में, ले चलती आकाश ।
ले चलती आकाश, ख़ुशी के शबनम झिलमिल ।
मिलते नमी प्रकाश, सामने दिखती मंजिल ।
पर रविकर कुछ दुष्ट, तापते आग जलाकर ।
पाता है आनंद, बेल को जला तपा कर ।।
स्वार्थ सिद्ध तृणमूल का, देश भाड़ में जाय |
देश भाड़ में जाय, खाय ले घर का बच्चा |
एक सूत्र जो पाय, चबाती जाये कच्चा |
देती केंद्र हिलाय, कोप इक क्षण में कमता |
सब नौटंकी आय, चतुर माया से ममता ।।
वीरू भाई की मांग पर-
ममता में अंधी हुई, अपना पूत दिखाय |स्वार्थ सिद्ध तृणमूल का, देश भाड़ में जाय |
देश भाड़ में जाय, खाय ले घर का बच्चा |
एक सूत्र जो पाय, चबाती जाये कच्चा |
देती केंद्र हिलाय, कोप इक क्षण में कमता |
सब नौटंकी आय, चतुर माया से ममता ।।
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका यह अंदाज ब्लॉग जगत में निराला, अनोखा और अद्वितीय है।
ReplyDeleteपर रविकर कुछ दुष्ट, तापते आग जलाकर ।
ReplyDeleteपाता है आनंद, बेल को जला तपा कर ।।
बहुत मार्मिक .
बहुत-बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteममता में अंधी हुई, अपना पूत दिखाय |
ReplyDeleteस्वार्थ सिद्ध तृणमूल का, देश भाड़ में जाय |
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...