Sunday, 15 April 2012

कुछ लोगों को किन्तु, नहीं हम दोनों भाते -

बातें ही बातें

बातें ही बातें यहाँ, धनी बात का होय ।
परहित बातें कर रहा, अपना *आपा खोय ।   

अपना *आपा खोय, हास्य को है अपनाता ।
हँसने का सन्देश,  सभी को सदा सुनाता ।

कुछ लोगों को किन्तु, नहीं हम दोनों भाते ।
ग्यानी उल्लू देख, लोग अक्सर मुँह बाते ।
*विनीत भाव ग्रहण करना 

भूख तो कम हुई ,प्यास बढती गई

babanpandey at मेरी बात

जालिम शेर -कातिल निगाह 

नजरें रख के चित्र पर, दिया शेर पर ध्यान ।

किया कलेजा चाक फिर, लिया दर्द एहसान ।। 


हा! आफरीन...

S.M.HABIB   एहसासात... अनकहे लफ्ज़

जितनी जल्दी हो सके, लो गलतियाँ सुधार ।

बिटिया बिन इस जगत में, छा जाए अंधियार ।। 


भ्रष्ट कौन (लघु कथा)

संगीता तोमर Sangeeta Tomar at नुक्कड़


ग्यानी ध्यानी शिक्षिका, जाने सब गुण-दोष ।
मुखड़ा अपना न लखे,  दर्पण अति-अफ़सोस ।

दर्पण अति-अफ़सोस, दूध में बड़ी कमाई ।
गर परचून दूकान, मिलावट हर घर आई ।

पुलिस भ्रष्टतम किन्तु, गौर कर मूर्ख सयानी ।
गंदे वाणी-कर्म, बनी फिरती है ग्यानी ।।



5 comments:

  1. जितनी जल्दी हो सके, लो गलतियाँ सुधार ।
    बिटिया बिन इस जगत में, छा जाए अंधियार ।।
    बहुत अच्छे रविकर जी,..टिप्पणियाँ पसंद आई.
    अपने बीच में आपकी तरह टिप्पणी देने वाले विजय सिंह जी पधार चुके है,

    ReplyDelete
  2. ग्यानी ध्यानी शिक्षिका, जाने सब गुण-दोष ।
    मुखड़ा अपना न लखे, दर्पण अति-अफ़सोस
    अनु- टिप्पणियों का ज़वाब नहीं .
    नजरें रख के चित्र पर, दिया शेर पर ध्यान ।

    किया कलेजा चाक फिर, लिया दर्द एहसान ।।

    ReplyDelete
  3. ़़़़़
    कहाँ कहाँ है ले जाते
    हम देख भी नहीं पाते
    चलो कुछ लोगों को
    मिलकर घूस हैं दे आते ।

    ReplyDelete