यात्रानामा: समय की धार में सब बह गया
satish sharma 'yashomad' at यात्रानामा -
फुर्सत जीवन में कहाँ, बहते रहे अबाध |
बहने से ज्यादा मिला, ईश्वर भक्ति अगाध |
बहने से ज्यादा मिला, ईश्वर भक्ति अगाध |
ईश्वर भक्ति अगाध, रास्ते ढेर दिखाते ।
उड़कर आऊं पास, छेकते रिश्ते नाते ।
स्वार्थ सिद्धि का योग, पूर कर उनकी हसरत ।
टिप्पण पाऊं ढेर, मिले न हमको फुर्सत ।।
सब्ज़ियों के प्रकार और पोषक तत्व
कुमार राधारमण at स्वास्थ्य-सबके लिए
सब्जी के संसार पर, डाली राधा दृष्टि ।
पौष्टिक व स्वादिस्ट है, चखते कृष्णा सृष्टि ।।
भाई मेरे ! मरो नहीं !
Dr.J.P.Tiwari at pragyan-vigyan
मरने से ज्यादा कठिन, जीना इस संसार ।
करे पलायन लोक से, होगा न उद्धार ।
होगा न उद्धार, जरा पर-हित तो साधो ।
बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों ।
फैले सत्य "प्रकाश", स्वयं पर "जय" करने से ।
होय लोक-कल्याण, बुराई के मरने से ।
कविता : विज्ञान के विद्यार्थी की प्रेम कविता
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ के कल्पनालोक में आपका स्वागत है -
परखनली में दीखता, तात्विक प्रेम प्रसाद ।
दहन-गहन लौ कीजिये, सरस द्रव्य के बाद ।
सरस द्रव्य के बाद, देखते रहो रिएक्शन ।
धुवाँ जलाये आँख, दूर कर दीजै तत्क्षण ।
और अगर स्वादिष्ट, मिष्ट सी आये ख़ुश्बू ।
फील्ड वर्क प्रोजेक्ट, गाड़ दे तम्बू-बम्बू ।।
आय-हाय इस दर्द को, काहे रहे उभार ।
आशिक शायर बन गया, पड़ी वक्त की मार ।
पड़ी वक्त की मार, बदलता जीवन पाला ।
और वह मरने कि हद तक जिन्दा रहा!!
PD at मेरी छोटी सी दुनिया
आय-हाय इस दर्द को, काहे रहे उभार ।
आशिक शायर बन गया, पड़ी वक्त की मार ।
पड़ी वक्त की मार, बदलता जीवन पाला ।
मरने की हद उफ्फ़, लगा किस्मत पर ताला ।
ढोता पल-पल स्वयं, आज तक लाश सर्द को ।
पट्टा कर दे बेंच, दफ़न कर सकूँ दर्द को ।।
कविता होती तब शुरू, जब शंकित भवितव्य ।
पाठक कवि के बीच में, सब कुछ हो शंकितव्य ।।
(२)
चार लाख अंडाणु को, रखती इक नवजात ।
पहले से ही देह में, कविता आश्रय पात ।।
वेरा पावलोवा की नोटबुक से
पढ़ते-पढ़ते -
(१)कविता होती तब शुरू, जब शंकित भवितव्य ।
पाठक कवि के बीच में, सब कुछ हो शंकितव्य ।।
(२)
चार लाख अंडाणु को, रखती इक नवजात ।
पहले से ही देह में, कविता आश्रय पात ।।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसब्जी के संसार पर, डाली राधा दृष्टि ।
ReplyDeleteपौष्टिक व स्वादिस्ट है, चखते कृष्णा सृष्टि ।
विज्ञान के शोध के झरोखे से आती अद्यतन जानकारी पर आद्यतन टिपण्णी कर रहें हैं रविकर भाई सहज सरल बोध .