Thursday, 5 April 2012

बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों -

यात्रानामा: समय की धार में सब बह गया

satish sharma 'yashomad' at यात्रानामा -


फुर्सत जीवन में कहाँ, बहते रहे अबाध |
बहने से ज्यादा मिला,  ईश्वर भक्ति अगाध |

ईश्वर भक्ति अगाध, रास्ते ढेर दिखाते ।
उड़कर आऊं पास, छेकते रिश्ते नाते ।

स्वार्थ सिद्धि का योग, पूर कर उनकी हसरत ।
टिप्पण पाऊं ढेर, मिले न हमको फुर्सत ।।

सब्ज़ियों के प्रकार और पोषक तत्व

कुमार राधारमण at स्वास्थ्य-सबके लिए

सब्जी के संसार पर, डाली राधा दृष्टि ।
पौष्टिक व स्वादिस्ट है, चखते कृष्णा सृष्टि ।। 

भाई मेरे ! मरो नहीं !

Dr.J.P.Tiwari at pragyan-vigyan

मरने से ज्यादा कठिन, जीना इस संसार ।
करे पलायन लोक से, होगा न उद्धार ।  

होगा न उद्धार, जरा पर-हित तो साधो ।
 बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों ।

फैले सत्य "प्रकाश", स्वयं पर "जय" करने से । 
होय लोक-कल्याण, बुराई के मरने से ।   
परखनली में दीखता, तात्विक प्रेम प्रसाद ।
दहन-गहन लौ कीजिये, सरस द्रव्य के बाद ।

 सरस द्रव्य के बाद, देखते रहो रिएक्शन ।
धुवाँ जलाये आँख, दूर कर दीजै तत्क्षण ।

और अगर स्वादिष्ट, मिष्ट सी आये ख़ुश्बू ।
फील्ड वर्क प्रोजेक्ट, गाड़ दे तम्बू-बम्बू ।।


और वह मरने कि हद तक जिन्दा रहा!!

PD at मेरी छोटी सी दुनिया


आय-हाय इस दर्द को, काहे रहे उभार ।
आशिक शायर बन गया, पड़ी वक्त की मार ।

पड़ी वक्त की मार, बदलता जीवन पाला ।
मरने की हद उफ्फ़, लगा किस्मत पर ताला ।
ढोता पल-पल स्वयं, आज तक लाश सर्द को ।
पट्टा कर दे बेंच,  दफ़न कर सकूँ दर्द को ।।   



वेरा पावलोवा की नोटबुक से

  पढ़ते-पढ़ते -

(१)
कविता होती तब शुरू, जब शंकित भवितव्य । 
पाठक कवि के बीच में,  सब कुछ हो शंकितव्य ।।
 (२)
चार लाख अंडाणु को, रखती इक नवजात ।
पहले से ही देह में,  कविता आश्रय पात ।। 


2 comments:

  1. सब्जी के संसार पर, डाली राधा दृष्टि ।
    पौष्टिक व स्वादिस्ट है, चखते कृष्णा सृष्टि ।
    विज्ञान के शोध के झरोखे से आती अद्यतन जानकारी पर आद्यतन टिपण्णी कर रहें हैं रविकर भाई सहज सरल बोध .

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