Saturday, 21 April 2012

चिंतामय परिवेश, खोल ले मन की खिड़की-

"आज छुट्टी है"


अलीगढ़ी ताला लगे, चाहे चुनो दिवार ।
रविकर के परवेश हित, काफी  एक दरार ।

काफी एक दरार, लगा खिड़की दरवाजा ।
काले परदे साज, सुनेगा गाना बाजा ।

माना है रविवार, मगर ना करो बवाला ।
हम है पक्के यार, तोड़कर आयें ताला ।।

प्रेरक प्रसंग-33 : बरबादी की वेदना

  राजभाषा हिंदी
गांधी जी की वेदना, साहब का सत्कार ।
आधी आबादी जहाँ, है भूखी लाचार ।

है भूखी लाचार, करे बर्बादी कितना ।
भूखे खांय हजार, फेंक देते हैं जितना ।

प्रासंगिक यह लेख, बढ़ी है पुरकस व्याधी ।
बर्बादी ले  रोक, समझ जो बोले गांधी ।।
मन को रोमांचित करें, ये दृष्टांत तमाम ।

ये दृष्टांत तमाम, राग-अनुराग भरे हैं ।
सिनसिनाटी दर्शन, लगे प्रत्यक्ष करे है ।  

बढे सनातन धर्म, विश्व में महिमा-मंडित ।
पर्वों का सन्देश, सुनाएँ  ज्ञानी  पंडित ।।

अमरीकियों की बनिस्पत कमज़ोर हैं भारतीयों के दिल

  कबीरा खडा़ बाज़ार में 
अपने प्रिय खातिर यहाँ, रखे करेज निकाल ।
प्रियतम के इ'स्पर्श से, बांसों मिले उछाल ।  

बांसों मिले उछाल, कलेजे सांप लोटता ।
पत्थर सरिस करेज, कभी सौ टूक टूटता ।

रविकर पाक करेज, कलेजा ठंढा करना
देशी दिल कमजोर, मगर जाने ना डरना ।।    


"नदी के रेत पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



रेत नदी की है रखे, पुरखों के पद चिन्ह ।
नव-चिन्हों से वे मगर, लगते इकदम भिन्न ।
 
लगते इकदम भिन्न, यहाँ श्रद्धा ना दीखे ।
खुदगर्जी संलिप्त, युवा मस्ती में चीखे ।

उनको नहीं मलाल, समस्या इसी सदी की ।
पर्यावरण बिगाड़, बिगाड़े रेत नदी की ।।



 

7 comments:

  1. ़़़़़़
    ब्लागर रविकर मुझको पता चला
    कभी जादूगर भी हो जाता है
    रविवार को उल्लू क्या लिखेगा
    शनिवार को ही पता लगाता है।

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  2. >>>>
    हम तो सोचे थे आप हमें भी सिखायेंगे
    22 की पोस्ट 21 को कैसे चिपकायेंगे
    बैथे थे इंतजार में तरीका आप बतायेंगे
    किसे पता था आभार कह खिसक जायेंगे ।

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    1. गधा तनिक वैशाख में , जाय यार मुटाय |
      घडी घडी बिगड़े घडी, पूरा दिन खा जाय ||

      घडी का दोष है कम्पू की ||

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  3. बहुत सुंदर अंदाज़.

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  4. रचना से ज्यादा रोचक उनकी टिप्पणियां होती हैं।

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  5. बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति !

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

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