काव्यांश :वो कौन है ?
veerubhai at ram ram bhai
अधिकारों के प्रति रहे,
मुखरित और सचेत |
पिता, पुत्र पति में बही
व्यर्थ समय की रेत |
व्यर्थ समय की रेत
बराबर हक़ पायी है |
आजादी के गीत,
जोर से अब गायी है |
चाल-ढाल ड्रेस वाद,
थोपिए अब न इनपर |
माँ क्या जाने आज,
नारियां चलती तनकर ||
परीक्षानुरागी
udaya veer singh at उन्नयन (UNNAYANA)
विद्यार्थी गुणवान है, घालमेल में सिद्ध ।
व्यवहारिक विज्ञान पर, नजर जमी ज्यों गिद्ध ।
नजर जमी ज्यों गिद्ध, चिट्ठियाँ लिखना आता ।
लेन-देन में निपुण, ढंग से है धमकाता ।
साम दाम सह दंड, जानता परम स्वार्थी ।
कोड़ा ने सरकार चलाई, निर्दल होकर ।
काटी खाई खूब मलाई, गल-गल होकर ।
संसद के बन्दों का रखना ख्याल उचित--
तख्ता पलटे, नहीं भलाई, पैदल होकर ।।
अब्द गरज बरसन लगे, बे-मौसम नव-अब्द ।
बे-मौसम नव अब्द, भिगोये अक्षर बाकी ।
कर फिर से प्रारब्ध, रखो सिम्पल टुक-टाकी ।
मौलिकता है प्रेम, लगे बाकी सब मिटटी ।
एकाकार स्वरूप, छोड़कर आ जा चिट्ठी ।।
अमृत वाणी बाँचते, नागर जी सिरमौर ।
गरम खून सह जोश पर, तरुणों कर लो गौर ।
तरुणों कर लो गौर, पते की बात बताई ।
व्यभिचारी लोलुप, बिलासी पन अधिकाई ।
यही अवस्था पाय, नाम कुछ रोशन करते ।
देशभक्त ये तरुण, देश हित जीते मरते ।।
नकल का सिद्धांत
न दैन्यं न पलायनम्
बचपन से करता नक़ल, मातु-पिता की बाल ।
चाल-ढाल घर बोल से, चले मिला के ताल ।
चले मिला के ताल, बड़े हीरो पर मरते ।
जैसा हो परिदृश्य, मिमिक्री करते करते ।
असली आदत पड़त,नक़ल करता लाता है ।
नक्काली नकलेल, तुड़ा फिर ना पाता है ।।
नक्काली नकलेल, तुड़ा फिर ना पाता है ।।
.काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
चिट्ठी बढ़िया है बनी, भारी भरकम शब्द ।
अब्द गरज बरसन लगे, बे-मौसम नव-अब्द ।
बे-मौसम नव अब्द, भिगोये अक्षर बाकी ।
कर फिर से प्रारब्ध, रखो सिम्पल टुक-टाकी ।
मौलिकता है प्रेम, लगे बाकी सब मिटटी ।
एकाकार स्वरूप, छोड़कर आ जा चिट्ठी ।।
संसार में पाप की परिभाषा एक न हो सकी: भगवती चरण वर्मा
अमृत वाणी बाँचते, नागर जी सिरमौर ।
गरम खून सह जोश पर, तरुणों कर लो गौर ।
तरुणों कर लो गौर, पते की बात बताई ।
व्यभिचारी लोलुप, बिलासी पन अधिकाई ।
यही अवस्था पाय, नाम कुछ रोशन करते ।
देशभक्त ये तरुण, देश हित जीते मरते ।।
छलावा क्या है?
नथुनी संग सुनार के, करती नित गुणगान ।
सुन्दर काया जो दिया, भूली वो नादान ।
भूली वो नादान, नाक नथुनी का अन्तर ।
लागे भला सुनार, याद न करती ईश्वर ।
अगर कटे यह नाक, करेगी क्या तू बाला ।
प्रकट करो आभार, प्रभू जो नाक सम्भाला ।।
माँ क्या जाने आज,
ReplyDeleteनारियां चलती तनकर ||
सुन्दर अनुकृति .असल से इक्कीस .
आभार वीरू भाई |
ReplyDeleteअसल दरअसल है असल, असल मूल में सोच |
वीरू-भाई की असल, नकली रविकर पोच ||
आपके द्वारा प्रतिपादित किसी भी विषय पर मेरी उँगलियाँ बड़ी तेजी से नि:संकोच
की बोर्ड पर थिरकती हैं |
अन्य ब्लॉग पर कुछ भी लिखते समय बहुत सजग रहना पड़ता है , पता नहीं क्या बुरा लग जाये उनको |
आपका स्नेह मिलता रहे |
सादर |
थोड व्यस्त हुआ हूँ --
परदेशी पुत्र १ माह के लिए स्वदेश आये हैं ४ अप्रैल को |
सादर |
यह सिर्फ़ टिप्पणी नहीं है, एक सम्पूर्ण काव्य है।
ReplyDeleteवाह!!!!!!बहुत सुंदर लिंक्स अच्छी प्रस्तुति........
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
विद्यार्थी गुणवान है, घालमेल में सिद्ध ।
ReplyDeleteव्यवहारिक विज्ञान पर, नजर जमी ज्यों गिद्ध ।
प्रवासी पुत्र के संसर्ग का सुख लीजे ,जो कुछ पल्ले ज्ञान कोष, सब उसको दीजे ,
दो-तीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! एक मित्र के घर जाकर मेल चेक किये और एक-दो पुरानी रचनाओं को पोस्ट कर दिया। लेकिन मंगलवार को फिर देहरादून जाना है। इसलिए अभी सभी के यहाँ जाकर कमेंट करना सम्भव नहीं होगा। आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteनथुनी संग सुनार के, करती नित गुणगान ।
ReplyDeleteसुन्दर काया जो दिया, भूली वो नादान ।
भूली वो नादान, नाक नथुनी का अन्तर ।
लागे भला सुनार, याद न करती ईश्वर ।
सब एक से बढ़कर एक...वाह!
ReplyDeleteबहुत खूब!
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