चलो इसे घर ले चलें
satish sharma 'yashomad' at यात्रानामा
जंगल की लकड़ी ख़तम, बढ़ते ईंधन दाम ।
बिजली बिल आये बहुत, ले चल सूरज थाम ।।
जीवन में ठहराव से, ठहरी हवा -किरण ।
कुरुक्षेत्र-मन बिकल है, चलिए प्रभू शरण ।।
हम पहले ही मारे जा चुके हैं....
Anita at मन पाए विश्राम जहाँ -
दर्शन रूप विराट के, मिली दिव्यतम दृष्ट ।मरे हुए हम भी दिखे, सृजित करें नव सृष्ट ।।
आस का एक धागा ....
सदा at SADA
सदा दीखती दृष्टि-नवल, धवल प्रेम संवाद ।
संग जुड़ें शक्ति मिले, प्रेम सूत्र नाबाद ।। dineshkidillagi.blogspot.in
जंगल की लकड़ी ख़तम, बढ़ते ईंधन दाम ।
ReplyDeleteबिजली बिल आये बहुत, ले चल सूरज थाम ।।
.पर्यावरण सचेत दृष्टि -ये तेजाबी बारिशे ,बिजली घर की राख ,
एक दिन होगा भूपटल वारणावर्त की लाख .
महानगर ने फैंक दी मौसम की संदूक ,
पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक .
बहुत बढ़िया. लाजवाब..रविकर जी..
ReplyDeleteवाह!!!!बहुत उम्दा प्रस्तुति,.....
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