कविता
हिम्मत से रहिये डटे, घटे नहीं उत्साह |
कोशिश चढ़ने की सतत, चाहे दुर्गम राह |
कोशिश चढ़ने की सतत, चाहे दुर्गम राह |
चाहे दुर्गम राह, चाह से मिले सफलता |
करो नहीं परवाह, दिया तूफां में जलता |
चढ़ते रहो पहाड़, सदा जय माँ जी कहिये |
दीजै झंडे गाड़, डटे हिम्मत से रहिये ||
मैंने तो मन की लिख डाली ( भूमिका मेरे गीत की )
दीदी जैसा मुखड़ा मेरा, माथा तेरे जैसा ।
थोड़ी सी झुर्री भी डालो, दो चिंता की रेखा ।
पैरों में चक्कर थे मेरे, आँचल भीगा भीगा -
असमय तुझको छोड़ी बौआ, था किस्मत का लेखा ।
माएं तो सब एक सरीखी, बच्चों को तुम देखो-
उठा कूचिका चित्र बना लो, जो आँखों में देखा ।।
कविता को ऐसा छुआ, बनी कहानी आप ।
बिखरी थी लय बद्ध्ता, तेरा स्नेह-प्रताप ।।
उठा कूचिका चित्र बना लो, जो आँखों में देखा ।।
इन दिनों ....
Dr (Miss) Sharad Singh at Sharad Singhकविता को ऐसा छुआ, बनी कहानी आप ।
बिखरी थी लय बद्ध्ता, तेरा स्नेह-प्रताप ।।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था "प्यार" तुमने ।
प्रेम सरोवरसरल शब्द में बंध रहा, प्रेम-सरोवर-चाँद ।
खुले विचारों वाला जीवन, चाहत उनकी थोड़ी ।
मुक्त गगन उन्मुक्त उड़ाने, गाये गीत निगोड़ी ।
चौबिस घंटे परबस रविकर, मुट्ठी भर ले दाने-
चाहे जीवन-सार सीखना, पर चिड़िया ना माने ।।
‘‘मेरी पसन्द के सात दोहे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
उच्चारणरोटी कपडा से हुआ, पहले आज मकान ।
खाय विटामिन गोलियां, मानव फिर नंगान ।।
नारी के प्रति सोच को, न बदले नादान ।
देखेगी दुनिया सकल, खुद अपना अवसान ।।
bahut sundar.....
ReplyDeleteवाह...आपकी टिप्पणी पाकर लोग धन्य हो जाते हैं!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
वाह ...बहुत बढिया।
ReplyDeletebahut badhiya tippani -------
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