अतिथि देवो भव :
Sushil Kumar Joshi at "उल्लूक टाईम्स " -
घर में बासी चाव से, चाबेगा इन्सान ।
बिना दूध की चाय भी, पीता अमृत जान ।
पीता अमृत जान, नारियल वाली खटिया ।
सोता चद्दर तान, मगर बाहर गिट-पिटिया ।
बन जाता भगवान्, पहुँच जाता जो काशी ।
लेना कम एक्जाम, चाहता बढ़िया राशी ।।
महामूर्ख मेला
देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्माविद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
तोता और कौवा !
संतोष त्रिवेदी at बैसवारी baiswari
सुन्दर से ये चिन्ह दो, खींच गए इक चित्र ।
रंगबाज की जीत है, नहीं राम जी मित्र ।
पिंजरे में ही काट, वक्त ये हर-पल गिन गिन ।
कौआ सत्ताधीश, रखे अति-हिंसक अंतर ।
रटे राम का नाम, रहेगा तोता सुन्दर ।।
अति सुन्दर...बहुत खूब...
ReplyDeletevery nice ...thanks
ReplyDeleteसदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
ReplyDeleteमीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
आत्म श्लाघा सब करें ,खुद पे हँसे न कोय ,(आप इसे पूरा करें रविकर जी ...प्लीज़ )
आत्मश्लाघा सब करें, खुद पर हँसते नाय ।
Deleteजो खुद पर हँस सके तो, काया कष्ट भुलाय ।
काया कष्ट भुलाय, बड़ी औषधि प्राकृतिक ।
सकारात्मक पक्ष, फैलता जाय चतुर्दिक ।
लेती जिसे लपेट, मुश्किलें वो झट लांघा ।
हंसिये हो निर्द्वन्द, करे क्यूँ रविकर श्लाघा ।
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Deleteप्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:09 PM
विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
@ विद्वानों की लिस्ट बताओ, मैं भी उनसे दूर रहूँगा.
जो ना बात समझ में आये, वमन शौच सब करवा दूँगा.
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प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:09 PM
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
@ जो भी काम करोगे भैया, पदवी वही जायेगी मिल
आशु कवित्व-द्वार पर लिख लो, पंडित गुप्ता झिलमिल-झिलमिल.
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प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:10 PM
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
@ मूर्खों के सत्संग मध्य में, मंडित होना नहीं सरल है.
चने झाड़ पर ना चढ़ पाते, जो बकने में सीताफल हैं.
...... [बकने = वक्तृत्व] [सीताफल मतलब भारी]
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प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:10 PM
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
@ इन्हीं गुणों पर रीझे सारे, इसीलिए प्यारा रविकर है.
सबको तोले एक तुला में, ऐसा बनिया ही हितकर है.
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प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:11 PM
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
@ श्रेष्ठ कला है 'खुद के द्वारा' कड़वी-से-कड़वी कठिनाई.
सुलझा देना बिना हिचक के, रविकर जैसा नहीं है भाई.
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बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढिया।
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