Monday, 2 April 2012

अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई-

अतिथि देवो भव :


घर में बासी चाव से, चाबेगा इन्सान ।
बिना दूध की चाय भी, पीता अमृत जान ।

पीता अमृत जान, नारियल वाली खटिया ।
सोता चद्दर तान, मगर बाहर गिट-पिटिया ।

बन जाता भगवान्, पहुँच जाता जो काशी ।
 लेना कम एक्जाम,  चाहता बढ़िया राशी ।।

महामूर्ख मेला

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा
विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।

 अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।

सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर  
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।

प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।। 

तोता और कौवा !

संतोष त्रिवेदी at बैसवारी baiswari 

सुन्दर से ये चिन्ह दो, खींच गए इक चित्र ।
रंगबाज की जीत है, नहीं राम जी मित्र ।

नहीं राम जी मित्र, रटत यह जिभ्या हर-दिन ।
पिंजरे में ही काट, वक्त ये  हर-पल गिन गिन ।

कौआ सत्ताधीश,  रखे अति-हिंसक अंतर ।
रटे राम का नाम,  रहेगा तोता सुन्दर ।।




7 comments:

  1. अति सुन्दर...बहुत खूब...

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  2. सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
    मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।

    प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
    अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
    आत्म श्लाघा सब करें ,खुद पे हँसे न कोय ,(आप इसे पूरा करें रविकर जी ...प्लीज़ )

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    1. आत्मश्लाघा सब करें, खुद पर हँसते नाय ।

      जो खुद पर हँस सके तो, काया कष्ट भुलाय ।
      काया कष्ट भुलाय, बड़ी औषधि प्राकृतिक ।

      सकारात्मक पक्ष, फैलता जाय चतुर्दिक ।

      लेती जिसे लपेट, मुश्किलें वो झट लांघा ।

      हंसिये हो निर्द्वन्द, करे क्यूँ रविकर श्लाघा ।

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    2. #
      प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:09 PM

      विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
      @ विद्वानों की लिस्ट बताओ, मैं भी उनसे दूर रहूँगा.
      जो ना बात समझ में आये, वमन शौच सब करवा दूँगा.
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      #
      प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:09 PM

      आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
      @ जो भी काम करोगे भैया, पदवी वही जायेगी मिल
      आशु कवित्व-द्वार पर लिख लो, पंडित गुप्ता झिलमिल-झिलमिल.
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      #
      प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:10 PM

      अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
      नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
      @ मूर्खों के सत्संग मध्य में, मंडित होना नहीं सरल है.
      चने झाड़ पर ना चढ़ पाते, जो बकने में सीताफल हैं.

      ...... [बकने = वक्तृत्व] [सीताफल मतलब भारी]
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      #
      प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:10 PM

      सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
      मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
      @ इन्हीं गुणों पर रीझे सारे, इसीलिए प्यारा रविकर है.
      सबको तोले एक तुला में, ऐसा बनिया ही हितकर है.
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      प्रतुल वशिष्ठApr 2, 2012 11:11 PM

      प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
      अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
      @ श्रेष्ठ कला है 'खुद के द्वारा' कड़वी-से-कड़वी कठिनाई.
      सुलझा देना बिना हिचक के, रविकर जैसा नहीं है भाई.
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  3. बहुत बढ़िया ...

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  4. वाह ...बहुत बढिया।

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