Tuesday 10 April 2012

सुख-शान्ति सौहार्द, ग़मों ने गप-गप गटका

कार्यरत इंजन की आवाज



इंजन की यह साम्यता, जीवन की इंजील ।
कोलाहल अनुनाद की, सुनती देह अपील ।

सुनती देह अपील, तेज चलने की सोचे ।
घर्षण बाढ़े कील, ढील हो लगे खरोंचे ।

गति रहती सामान्य, बजे सरगम मन-रंजन ।
करते यही प्रवीण, सुनों जो कहता इंजन ।।


कर्तव्य लौह के अरे ! अधिकार काँच के



निगम लगे गमगीन से, हर्ष करे संघर्ष ।
हुआ विषादी जब दबंग, हो कैसे उत्कर्ष । 

हो कैसे उत्कर्ष, अरुण क्यूँ  मारे चक्कर ।
मेघों का आतंक, तड़ित की जालिम टक्कर ।

टूट-फूट मन-कन्च, पञ्च तत्वों को झटका ।
सुख-शान्ति सौहार्द, ग़मों ने गप-गप गटका ।। 


विचार जो रिश्तेदारी निभाते हैं !

  बैसवारी baiswari
कुविचारी के शब्द भी, बदल-बदल दें अर्थ ।
पूर्वाग्राही है अगर, समझाना है व्यर्थ ।

समझाना है व्यर्थ, बना सौदागर बेंचे ।
सुविधा-भोगी दुष्ट, स्वयं ना रेखा खैंचे ।

चोरी के ले शब्द, तोड़ मर्यादा सारी ।
द्वंदर अपरस गिद्ध, बड़ा भारी कुविचारी ।। 

प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ? -सतीश सक्सेना

  मेरे गीत !

उस सत्ता सर्वोच्च की, करते विनय सतीश ।
लौकिकता के भजन से, होते खुश जगदीश ।

होते खुश जगदीश , यहाँ जब मरा मरा से ।
पवन धरा जल चाँद, वृक्ष  इस परम्परा से ।

करे मोक्ष को प्राप्त, हिले प्रभु-मर्जी पत्ता ।
अंतर-मन भी वास, करे वह ऊंची सत्ता ।।
साला निर्मल न सुने, इन्दर का उपदेश ।
चले चार सौ बीस का, इस साले पर केस ।

 इस साले पर केस , नामधारी सब माने ।
टूटेगा विश्वास,  हुवे जो भक्त दिवाने ।

खंडित होते आस, बदल लेंगे वे पाला ।
 पर पत्नी हड़काय , जेल  काटे क्यूँ साला ।


याद रखना चाहतें हैं देखे गए सपने को ?

  ram ram bhai

टपने की कोशिश कई, सपने में बेकार |
बाधित करती रास्ता, हुई हार पर हार |

हुई हार पर हार, राह में कांटे ठोकर |
टूट हार का सूत्र, बोलती सजनी जोकर |

 छट-पट करती देह, भीग सपने में अपने |
फोड़ी मटकी लात, मिला तब भी ना टपने ||

क्या केवल मानव ही धरना दे सकता है ?

शिखा कौशिक at (विचारों का चबूतरा


धरना बोलो या कहो,  करे अवज्ञा जीव ।
हो समर्थ की नीति जब, वंचित करे अतीव ।

वंचित करे अतीव, सांढ़ या जोंटी बाबू ।
खुद को देकर कष्ट,  करे मालिक को काबू ।

गर्मी से हो तंग, आप ए सी  में सोयें ।
सबसे वह अधिकार, बैठ  के आँख भिगोये ।। 


" झपट लपक ले पकड़ "

  "उल्लूक टाईम्स "
 पाँच साल से पैक है, इक नौ लखा मशीन ।
नई योजना ली बना, हो प्रोजेक्ट विहीन ।


हो प्रोजेक्ट विहीन, मिलेंगे पुन: करोड़ों ।
सात पुश्त के लिए, सम्पदा जम के जोड़ो ।

ड्राइवर माली धाय, खफा हैं चाल-ढाल से ।
पत्नी पुत्री-पुत्र, बिगड़ते पाँच साल से ।।

6 comments:

  1. वाह: रविकर जी बहुत खूब..सभी बहुत सुन्दर हैं......

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  2. वाह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

    लाजवाब...

    सादर.

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  3. वाह ...बहुत ही बढि़या।

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  4. सुंदर, अति सुंदर।

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  5. पकड़ के रख लिया उल्लू !
    उड़ाओ उड़ाओ!

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