कार्यरत इंजन की आवाज
इंजन की यह साम्यता, जीवन की इंजील ।
कोलाहल अनुनाद की, सुनती देह अपील ।
सुनती देह अपील, तेज चलने की सोचे ।
घर्षण बाढ़े कील, ढील हो लगे खरोंचे ।
गति रहती सामान्य, बजे सरगम मन-रंजन ।
करते यही प्रवीण, सुनों जो कहता इंजन ।।
कर्तव्य लौह के अरे ! अधिकार काँच के
निगम लगे गमगीन से, हर्ष करे संघर्ष ।
हुआ विषादी जब दबंग, हो कैसे उत्कर्ष ।
हो कैसे उत्कर्ष, अरुण क्यूँ मारे चक्कर ।
मेघों का आतंक, तड़ित की जालिम टक्कर ।
टूट-फूट मन-कन्च, पञ्च तत्वों को झटका ।
सुख-शान्ति सौहार्द, ग़मों ने गप-गप गटका ।।
कुविचारी के शब्द भी, बदल-बदल दें अर्थ ।
पूर्वाग्राही है अगर, समझाना है व्यर्थ ।
समझाना है व्यर्थ, बना सौदागर बेंचे ।
विचार जो रिश्तेदारी निभाते हैं !
बैसवारी baiswariकुविचारी के शब्द भी, बदल-बदल दें अर्थ ।
पूर्वाग्राही है अगर, समझाना है व्यर्थ ।
समझाना है व्यर्थ, बना सौदागर बेंचे ।
सुविधा-भोगी दुष्ट, स्वयं ना रेखा खैंचे ।
चोरी के ले शब्द, तोड़ मर्यादा सारी ।
द्वंदर अपरस गिद्ध, बड़ा भारी कुविचारी ।।
उस सत्ता सर्वोच्च की, करते विनय सतीश ।
लौकिकता के भजन से, होते खुश जगदीश ।
होते खुश जगदीश , यहाँ जब मरा मरा से ।
प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ? -सतीश सक्सेना
मेरे गीत !उस सत्ता सर्वोच्च की, करते विनय सतीश ।
लौकिकता के भजन से, होते खुश जगदीश ।
होते खुश जगदीश , यहाँ जब मरा मरा से ।
पवन धरा जल चाँद, वृक्ष इस परम्परा से ।
करे मोक्ष को प्राप्त, हिले प्रभु-मर्जी पत्ता ।
अंतर-मन भी वास, करे वह ऊंची सत्ता ।।
साला निर्मल न सुने, इन्दर का उपदेश ।
चले चार सौ बीस का, इस साले पर केस ।
इस साले पर केस , नामधारी सब माने ।
टूटेगा विश्वास, हुवे जो भक्त दिवाने ।
खंडित होते आस, बदल लेंगे वे पाला ।
पर पत्नी हड़काय , जेल काटे क्यूँ साला ।
टपने की कोशिश कई, सपने में बेकार |
बाधित करती रास्ता, हुई हार पर हार |
हुई हार पर हार, राह में कांटे ठोकर |
टूट हार का सूत्र, बोलती सजनी जोकर |
छट-पट करती देह, भीग सपने में अपने |
फोड़ी मटकी लात, मिला तब भी ना टपने ||
याद रखना चाहतें हैं देखे गए सपने को ?
ram ram bhaiटपने की कोशिश कई, सपने में बेकार |
बाधित करती रास्ता, हुई हार पर हार |
हुई हार पर हार, राह में कांटे ठोकर |
टूट हार का सूत्र, बोलती सजनी जोकर |
छट-पट करती देह, भीग सपने में अपने |
फोड़ी मटकी लात, मिला तब भी ना टपने ||
क्या केवल मानव ही धरना दे सकता है ?
शिखा कौशिक at (विचारों का चबूतरा
धरना बोलो या कहो, करे अवज्ञा जीव ।
हो समर्थ की नीति जब, वंचित करे अतीव ।
वंचित करे अतीव, सांढ़ या जोंटी बाबू ।
खुद को देकर कष्ट, करे मालिक को काबू ।
गर्मी से हो तंग, आप ए सी में सोयें ।
सबसे वह अधिकार, बैठ के आँख भिगोये ।। " झपट लपक ले पकड़ "
"उल्लूक टाईम्स "
पाँच साल से पैक है, इक नौ लखा मशीन ।
नई योजना ली बना, हो प्रोजेक्ट विहीन ।
हो प्रोजेक्ट विहीन, मिलेंगे पुन: करोड़ों ।
सात पुश्त के लिए, सम्पदा जम के जोड़ो ।
ड्राइवर माली धाय, खफा हैं चाल-ढाल से ।
पत्नी पुत्री-पुत्र, बिगड़ते पाँच साल से ।।
नई योजना ली बना, हो प्रोजेक्ट विहीन ।
हो प्रोजेक्ट विहीन, मिलेंगे पुन: करोड़ों ।
सात पुश्त के लिए, सम्पदा जम के जोड़ो ।
ड्राइवर माली धाय, खफा हैं चाल-ढाल से ।
पत्नी पुत्री-पुत्र, बिगड़ते पाँच साल से ।।
वाह: रविकर जी बहुत खूब..सभी बहुत सुन्दर हैं......
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुति,.... सभी लिंक्स अच्छे लगे,....
ReplyDeleteRECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
वाह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteलाजवाब...
सादर.
वाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteसुंदर, अति सुंदर।
ReplyDeleteपकड़ के रख लिया उल्लू !
ReplyDeleteउड़ाओ उड़ाओ!