प्रेरक प्रसंग-31 : साधारण दिखने वाले व्यक्ति
मनोज कुमार at राजभाषा हिंदी
मिटे आम के जटिल कष्ट, हुआ आम संतुष्ट ।
आज ख़ास कोशिश करें, किन्तु होंय खुद पुष्ट ।
किन्तु होंय खुद पुष्ट, बने हैं गांधी वादी ।
कृपलानी के शिष्य, ताकिये है आजादी ।
पवन हंस पर बैठ, आज के गांधी आवें ।
कोड़ खेत मैदान, काट के पेड़ सतावें ।।
उल्टा-पुल्टा है शुरू, मौत साल दर साल ।
जीवन को दफना चुकी, खूब बजावे गाल ।
खूब बजावे गाल, धूप में दाल गलावे ।
समय-पौध जंजाल, माल-मदिरा उपजावे ।
रविकर कैसी लाश, मामला समझे सुल्टा ।
पट्टा को दुहराय, मौत को ढोती उल्टा ।।
शायर की यह इल्तिजा, दुनिया लेव बचाय।
शोषण लालच दुष्टता, कहीं बेच ना खाय ।
कहीं बेच ना खाय, बचे भोलापन बच्चे ।
खिलने को तरसती हैं.............
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
उल्टा-पुल्टा है शुरू, मौत साल दर साल ।
जीवन को दफना चुकी, खूब बजावे गाल ।
खूब बजावे गाल, धूप में दाल गलावे ।
समय-पौध जंजाल, माल-मदिरा उपजावे ।
रविकर कैसी लाश, मामला समझे सुल्टा ।
पट्टा को दुहराय, मौत को ढोती उल्टा ।।
बची है बंच्चो की हंसी…कवि विलोम
डा. मेराज अहमद at समय-सृजन (samay-srijan)
शायर की यह इल्तिजा, दुनिया लेव बचाय।
शोषण लालच दुष्टता, कहीं बेच ना खाय ।
कहीं बेच ना खाय, बचे भोलापन बच्चे ।
कविता सह उस्ताद, बचे हैं आशिक सच्चे ।
कह जनाब मेराज, याचिका इक दायर की ।
बाँचो देकर ध्यान, इल्तिजा इस शायर की ।।
होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।
रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
होरी खेलि रही सरकार
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN -
होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।
रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा ।
यहाँ भ्रमर का दर्द, हदें हर एक पार की ।
अहंकार ही पतन का, कारण दिखता मूल |
रावण दुर्योधन सरिस, आखिर फांके धूल ||
वाह!!!!!!बहुत सुंदर,अच्छी प्रस्तुति........
ReplyDeleteअच्छा चयन,
ReplyDeleteसुंदर संकलन।
वाह: बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteहोरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
ReplyDeleteहाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।
badhiya links par sundar tippaniyan .badhai
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बढ़िया अपडेट .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
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