Saturday, 7 April 2012

पट्टा को दुहराय, मौत को ढोती उल्टा-

प्रेरक प्रसंग-31 : साधारण दिखने वाले व्यक्ति

मनोज कुमार at राजभाषा हिंदी  

मिटे आम के जटिल कष्ट,  हुआ आम संतुष्ट ।
आज ख़ास कोशिश करें,  किन्तु होंय खुद पुष्ट  ।

किन्तु होंय खुद पुष्ट, बने हैं गांधी वादी ।
कृपलानी के शिष्य, ताकिये है आजादी ।

पवन हंस पर बैठ, आज के गांधी आवें ।
कोड़ खेत मैदान, काट के पेड़ सतावें ।।

खिलने को तरसती हैं.............

अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) 


उल्टा-पुल्टा है शुरू, मौत साल दर साल ।
जीवन को दफना चुकी, खूब बजावे गाल ।

खूब बजावे गाल, धूप में दाल गलावे ।
 समय-पौध जंजाल, माल-मदिरा उपजावे ।

रविकर कैसी लाश, मामला समझे सुल्टा ।
पट्टा को दुहराय, मौत को ढोती उल्टा ।।    


बची है बंच्चो की हंसी…कवि विलोम

डा. मेराज अहमद at समय-सृजन (samay-srijan) 


शायर की यह इल्तिजा, दुनिया लेव बचाय।
 शोषण लालच दुष्टता, कहीं बेच ना खाय ।

कहीं बेच ना खाय, बचे भोलापन बच्चे ।
कविता सह उस्ताद, बचे हैं आशिक सच्चे ।

कह जनाब मेराज, याचिका इक दायर की ।
बाँचो देकर ध्यान, इल्तिजा इस शायर की ।।   


होरी खेलि रही सरकार

  BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN -


होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।

रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा ।

यहाँ भ्रमर का दर्द, हदें हर एक पार की ।
उड़े व्यवस्था उधर,  होरिहार सरकार की ।। 

आज के विचार

G.N.SHAW at BALAJI

अहंकार ही पतन का, कारण दिखता मूल |
रावण दुर्योधन सरिस, आखिर फांके धूल ||
 

7 comments:

  1. वाह!!!!!!बहुत सुंदर,अच्छी प्रस्तुति........

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  2. अच्छा चयन,
    सुंदर संकलन।

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  3. वाह: बहुत सुन्दर.....

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  4. होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
    हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।

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  5. बढ़िया अपडेट .

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  6. बहुत सुन्दर.....

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