"महँगाई-छः दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुंह की और मसूर की, लाल लाल सी दाल |
डाल-डाल पर बैठकर, खाते रहे दलाल |
खाते रहे दलाल, खाल खिंचवाया करते |
निर्धन श्रमिक किसान, मौत दूजे की मरते |
"उच्चारण" पर हाय, पड़े गर्दन पर फंदा |
सिसक सिसक मर जाय, आज का सच्चा बंदा ||
तभी पढ़ें जब आपके पास प्रमाण-पत्र हो !
चना अकेला चल पड़ा, खड़ा बीच बाजार |
ताल ठोकता गर्व से, जो फोड़ा सौ भार |
जो फोड़ा सौ भार, लगे यह लेकिन सच ना |
किन्तु रहे हुशियार, जरा घूँघट से बचना |
केवल मुंह को ढांप, निपटती प्रात: बेला |
सरे-शाम मैदान, सौंचता चना अकेला ||
घूँघट बुर्का डाल के, बैठ चौक पर जाय |
टिकट ख़रीदे क्लास जो, वो ही दर्शन पाय |
वो ही दर्शन पाय, आपकी मेहरबानी |
रविकर सा नाचीज, ढूँढिये बेहतर जानी |
सज्जन का क्या काम, निमंत्रित कर ले मुंह-फट |
दो सौ डालर डाल, उठा देंगे वे घूँघट ||
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन सुंदर प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
पूरा धमाका कर दिया है !!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletehttp://www.blogger.com/blogin.g?blogspotURL=http://mypoeticresponse.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html
ReplyDeleteकहाँ मिलता है निडरता का प्रमाणपत्र ??
मिस निडर-
दोनों लिंक मस्त है और आपका योगदान तो खैर महामस्त है ही :)
ReplyDeleteपढ़कर आनन्द आया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteपोस्ट साझा करने के लिए आभार!
सभी छंद सार्थक हैं!
अति सुंदर!
ReplyDeleteसुंदर टिप्पणियाँ पढ़ी, घूमा देखा लिंक।
ReplyDeleteअदा निराली आपकी, देखा, होता सिंक॥
सादर...
मुंह की और मसूर की, लाल लाल सी दाल |
ReplyDeleteडाल-डाल पर बैठकर, खाते रहे दलाल |
मुंह की और मसूर की, लाल लाल सी दाल |
डाल-डाल पर बैठकर, खाते रहे दलाल |
सज्जन का क्या काम ,यहाँ रहते सब दुर्जन..बधाई प्रस्तुति . यहाँ भी पधारें -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
उतनी ही खतरनाक होती हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 31 मई 2012
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/