आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना
Virendra Kumar Sharma
क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह | पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा | होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा | भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा | बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || |
माहिरों की राय : आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द को प्राप्त होना आखिर क्यों ?
Virendra Kumar Sharma
गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द |
गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द |
पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता |
करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता |
बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी |
होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||
*छुपा कर रखने में सक्षम
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे
काम्बली की ओर से- खा के झटका मित्र से, दिल का दौरा झेल |
जिस भी कारण से हुई, हुई दोस्ती फेल |
हुई दोस्ती फेल, कलेजा फिर से काँपे |
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे |
हुई दोस्त से भूल, माफ़ करदे अब आ के |
लागे व्यर्थ कलंक, अकेले पार्टी खा के ||
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लेकिन बंद कपाट, दनुजता बाहर आई-
खोजा-खाजी खुन्नसी, खड़ी खुद-ब-खुद खाट |
रेशम के पैबंद से, बहुत सुधारा टाट |
बहुत सुधारा टाट, ठाठ से करे कमाई |
लेकिन बंद कपाट, दनुजता बाहर आई |
कर के नोच-खसोट, बने जब खुद से काजी |
सम्मुख आये खोट, शुरू फिर खोजा-खाजी ||
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सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले
सुशील कुमार जोशी
छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत | धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत | द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया | कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया | होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा | पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा || |
अच्छा है यह फैसला, टाला सदन त्रिशंकु |
आप छोड़ते आप को, पैर पड़े नहीं पंकु |
पैर पड़े नहीं पंकु, हाथ का साथ निभाया |
दो बैलों का जोड़, लौट के घर को आया |
टाल खरीद फरोख्त, करो दिल्ली की रच्छा |
पाये बहुमत पूर्ण, यही तो सबसे अच्छा ||