सचिन! एक चिट्ठी तुम्हारे लिये....
Ankur Jain
चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक |
रहा जमाना ताक, टेस्ट दो सौ कर पूरे |
कर दे ऊँची नाक, बहा ना अश्रु जमूरे |
चला मदारी श्रेष्ठ, दिखाके करतब नाना |
ले लेता संन्यास, उम्र का करे बहाना |।
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घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ -
(1)
सतत धमाके में मरे, माँ के सच्चे पूत |
वह रैली देकर गई, पक्के कई सबूत |
पक्के कई सबूत, देश पर दाग बदनुमा |
घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ |
माँ को देते बेंच, पाक से पैसा पाके |
पॉलिटिक्स के पेंच, कराएं सतत धमाके ||
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होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
असत्यमेव लभते सदा, यदा कदा हो चूक |
यदा कदा हो चूक, मूक रह कर के लूटो |
कह रविकर दो टूक, लूट के झटपट फूटो |
बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती |
व्यवहारिक यह कथ्य, सदा जय इससे होती ||
(2)
कहे कुटुंबी कहकहे, अपना ही जनतंत्र |
पितामहे मातामहे, लूटामहे सुमंत्र | लूटामहे सुमंत्र, राज का तंत्र अनोखा | खुद को छप्पनभोग, आम पब्लिक को चोखा | चुन लेते सर नेम, लिस्ट यह काफी लम्बी | यही लूट का गेम, आज फिर कहे कुटुम्बी || |
प्रशस्ति-गान...
Amrita Tanmay
व्यापारिक वह धूर्तता, इधर मूर्खता शुद्ध | महिमामंडित होय जग, जीत-जीत हर युद्ध | जीत-जीत हर युद्ध , अहिंसा पूज बुद्ध की | हुवे टिकट कुल ब्लैक, फैंस को बोर्ड क्रुद्ध की | सचिन बहुत आभार, लगे रविकर अपनापा | कृपा ईश की पाय, आज कण कण में व्यापा | |
ना ही शिक्षक हूँ अमे, ना ही कोई चोर | बड़ा समीक्षक समझ ले, लाया बुक्स बटोर | लाया बुक्स बटोर, नए पैदा कवि लेखक | नई पौध का जोर, कहाँ तक चखता बक बक | देते पुस्तक भेज, दक्षिणा नहिं मनचाही | इनसे रहा वसूल, कहाँ है बोल मनाहीं - |
विचारों का बहुत ही सुन्दर संकलन
ReplyDeleteघात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ -
ReplyDelete(1)
सतत धमाके में मरे, माँ के सच्चे पूत |
वह रैली देकर गई, पक्के कई सबूत |
पक्के कई सबूत, देश पर दाग बदनुमा |
घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ |
माँ को देते बेंच, पाक से पैसा पाके |
रजस और तमस संसिक्त लोग हर चीज़ में दाग ही देखते हैं चाहे वह सचिन भाई का किरदार हो या जगद्गुरु ऐसे पत्रकार हमारे बीच प्रगटित हुए हैं जिन्हें सिर्फ दाग ही दिखता है एक चैनलिया जगद्गुरु के बारे में कह रहा था अपने न्यूज़ चैनल पर -विवादों से उनका पुराना नाता था ,मर गए वो अब। ऐसे ही राजनीति में लोग साम्प्रदायिकता की बात करते हैं सोनिया (सोइया )हो या कोई और इन्हें यह नहीं पता भारत में सम्प्रदाय थे भारत कभी भी साम्प्रादायिक नहीं रहा ये सिलसिला तो मुसलमानों के आने के बाद शुरू हुआ। यहाँ तो जितने सनातनी थे उतने ही देव थे। कोई शैव और कोई वैष्णव सम्प्रदाय को भजता था।
सम्प्रदाय का अर्थ है वह जो समाज को कुछ देता है सोइया जी को भी कोई समझा दे तो भारत के बारे में उनके ज्ञान चक्षु खुलें जो साम्प्रदायिकता की बात करतीं हैं। कोई है इन्हें बतलाये सम्प्रदाय का मर्म और अर्थ। हिन्दू बोले तो भारत धर्मी समाज कैसे साम्प्रादायिक हो गया भले कांग्रेसियों। भली आदमिन सोइया जी।
सुंदर सूत्रो को सुंदर टिप्पणियों से करता सरोबार
ReplyDeleteलिखा कितना भी हो पूरा कर देता रविकर का सार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार को (18-11-2013) कार्तिक महीने की आखिरी गुज़ारिश : चर्चामंच 1433 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय बहुत बढ़िया प्रस्तुति , धन्यवाद
ReplyDelete" जै श्री हरि: "