विवाह एक 'घर' और 'परिवार' बनाता है जबकि लिव-इन केवल एक फौरी समझौता,जो कभी भी टूट सकता है !
सात जन्म के चक्र से, रक्षा भी हो जाय |
रक्षा भी हो जाय, नहीं क़ानूनी अड़चन |
छोड़-छाड़ हट जाय, अगर भर जाए तन-मन |
सोमवार व्रत छोड़, हुई कैलासी गौरी |
मची यहाँ भी होड़, शुरू समझौता फौरी ||
बच गई 'तलवार' की जान : दैनिक हिंदी मिलाप 29 नवम्बर 2013 अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित
नुक्कड़
वार करे तलवार जब, सोच-विचार बगैर |
अपनों का काटे गला, तब उसकी नहिं खैर |
तब उसकी नहिं खैर, बैर जीवन से कर ले |
पाये देर-सवेर, मौत पर हर दिन मर ले |
घटना से हैरान, अनोखे इसमें कारक |
बने मसला फ़िल्म, कहाँ है कोई *वारक-
*निषेध करने वाला
|
खुलासा : सोशल मीडिया का असली चेहरा !
महेन्द्र श्रीवास्तव
(1) पैठ पठारे ले बना, लगा निहायत धूर्त |
नाजायज तरकीब से, करे समस्या पूर्त |
करे समस्या पूर्त, वायरस लाय तबाही |
यह काला व्यापार, चीज देता मनचाही |
साधुवाद हे मित्र, तथ्य रखते जो सारे |
काम करे कानून, ख़तम कर पैठ पठारे ||
(2)
बन्दा पैसा पाय के, रहा आत्मा बेंच |
रन्दा घोर चलाय के, ठोक रहा खुर-पेंच |
ठोक रहा खुर-पेंच, सुपारी-पान चबाता |
करता काम तमाम, सामने जो भी आता |
चमक उठा व्यवसाय, रहा जो पहले मन्दा |
देता चरित बनाय, करे अच्छा भी गन्दा ||
कार्टून :- अडवानी जी की सुनी आपने ?छींके टूटे भाग्य से, टँगा यहाँ भी एक | किन्तु नहीं टूटा कभी, छींके हुई अनेक | छींके हुई अनेक, किन्तु उम्मीदें बाकी | आने दो परिणाम, पिला देना तब साकी | सड़े नहीं अंगूर, हुवे ना खट्टे फीके | होवे पहले जीत, अभी ना कोई छीके || |
आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना
Virendra Kumar Sharma
क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |
पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह |
सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |
भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा ||
डैडी के जन्मदिवस पर शुभकामना दोहावली
प्यारा हीरक वर्ष यह, घर भर में उत्साह |
ऐसे ही देते रहें, सादर हमें सलाह |
सादर हमें सलाह, राह दिखलाया हमको |
देते खुशियां बाँट, पिए हम सब के गम को |
रहें स्वस्थ सानंद, नेह की सरिता धारा |
रविकर करे प्रणाम, आपका अपना प्यारा ||
|
रहे हजारों वर्ष, सचिन पीपल सा दीखे-
(भावानुवाद )
दीखे पीपल पात सा, भारत रत्न महान |
त्याग-तपस्या ध्यान से, करे लोक कल्याण |
करे लोक कल्याण, निभाना हरदम होता |
विज्ञापन-व्यवसाय, मगर मर्यादा खोता |
थापित कर आदर्श, सकल जन गण मन सीखे |
रहे हजारों वर्ष, सचिन पीपल सा दीखे ||
|
सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले
सुशील कुमार जोशी
छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत |
धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत |
द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया |
कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया |
होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा |
पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा ||
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर-
करमहीन नर हैं सुखी, कर्मनिष्ठ दुःख पाय |
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद लेता खुजलाय |
खुद लेता खुजलाय, स्वयं पर रखें नियंत्रण |
दे कोई उकसाय, चले ठुकराय निमंत्रण |
टाले सकल बवाल, रहे मुर्गी से बचकर |
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर ||
|
धन्यवाद रविकर जी. आप तो रचना को और अधिक परिभाषित कर देते हैं :-)
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स
ReplyDeleteमुझे भी स्थान देने के लिए आभार
सुन्दर भावांतरण परस्पर पोषक सहजीवन का
ReplyDeleteफौरी समझौता सही, किन्तु सटीक उपाय |
सात जन्म के चक्र से, रक्षा भी हो जाय |
रक्षा भी हो जाय, नहीं क़ानूनी अड़चन |
छोड़-छाड़ हट जाय, अगर भर जाए तन-मन |
सोमवार व्रत छोड़, हुई कैलासी गौरी |
मची यहाँ भी होड़, शुरू समझौता फौरी ||
वाह बहुत खूब सुंदर चर्चा !
ReplyDeleteइस सुंदर चर्चा में उल्लूक का ताबूत अपनी सुंदर टिप्प्णी से सजा कर देने के लिये आभार रविकर जी
ReplyDeleteवाह । आभार
ReplyDelete