काजल कुमार Kajal Kumar
आ जा आरा दें चला, काटें यह आराम |
चर्बी हम पर भी चढ़े, बचे राम का नाम |
बचे राम का नाम, दाम भी चलो बचाएं |
दूर कुपोषण होय, आप काया ढो पाएं |
इक सा हम हो जाँय, अन्यथा बाजे बाजा |
दोनों ना चल पाँय, घुटाले वापस आ जा ||
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इक ठो काना पाय, बना दें राजा, अंधे-
अंधे बाँटे रेवड़ी, लगती हाथ बटेर |
अन्न-सुरक्षा काम भी, मनरेगा का फेर |
मनरेगा का फेर, काम बिन मिले कमीशन |
नगरी में अंधेर, किन्तु मन भावे शासन |
पाई अंधी अक्ल, बंद कर 'रविकर' धंधे |
इक ठो काना पाय, बना दें राजा, अंधे ||
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फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है
सुशील कुमार जोशी
बोये बिन उगते रहे, घास-पात लत झाड़ |
शब्द झाड़-झंकाड़ भी, उगे कलेजा फाड़ |
उगे कलेजा फाड़, दहाड़े सिंह सरीखा |
यह टाइम्स उल्लूक, उजाले में भी चीखा |
साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये |
हँसे भाव नितराम, बीज मस्ती के बोये ||
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सी वी आई मामला, दे ऊपर अब भेज |
अब तक सत्ता ने रखा, हरदम जिसे सहेज |
हरदम जिसे सहेज, हमेशा डंडा थामे |
शत्रु दिखा जो तेज, केस कर उसके नामे |
कह रविकर कविराय, निराशा चहुँदिश छाई ||
भोथर होती धार, करे क्या सी बी आई ||
अब तक सत्ता ने रखा, हरदम जिसे सहेज |
हरदम जिसे सहेज, हमेशा डंडा थामे |
शत्रु दिखा जो तेज, केस कर उसके नामे |
कह रविकर कविराय, निराशा चहुँदिश छाई ||
भोथर होती धार, करे क्या सी बी आई ||
सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान -
मंशा मनसूबे सही, लेकिन गलत बयान |
सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान |
खुलती पाक दुकान, सजा दे मंदिर मस्जिद |
लेती माल खरीद, कई सरकारें संविद |
नीर क्षीर अविवेक, बने जब कौआ हंसा |
रहे गधे अब रेक, जगाना इनकी मंशा ||
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बहुत सुंदर
ReplyDeleteलेकिन बार बार
क्यों दिखा रहे हो
वही बंदर :) !
सुंदर अभिव्यक्ति..!
ReplyDeleteRECENT POST -: कामयाबी.
सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह बेहद खूबसूरत टिप्पणियां और कतरे :)
ReplyDeleteलिंख लिखाड़ पर दिनानुदिन निखार है
ReplyDeleteमोदी सा खुमार है।