Sunday, 17 November 2013

शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण-

और शीला को कहना पड़ा '10 मिनट राहुल गांधी को सुनकर जाइए'

chandan bhati 

भाषण सुनकर जाइये, पूरी करिये साध |
एक घरी आधी घरी, आधी की भी आध |

आधी की भी आध, विराजे हैं शहजादे |
करिये वाद-विवाद, किन्तु सुनिये ये वादे |

शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण |
जाने को सरकार, फर्क डाले क्या भाषण || 


पति प्रेमी पितु-मातु, करा सकते जासूसी-

रविकर 

छोरे ताकें छोरियां, वक्त करे आगाह |
मर्यादा मत भूलना, दुनिया रखे निगाह |

दुनिया रखे निगाह, शुरू है कानाफूसी |
पति प्रेमी पितु-मातु, करा सकते जासूसी |

फिर महिला आयोग, सूत्र यह सकल बटोरे |
दृष्टि-दोष कर दूर, बिगाड़े खेल छिछोरे ||


सृंगी जन्मकथा : भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन


 सर्ग-२ 

भाग-4 
सृंगी जन्मकथा

 रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।

विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।
तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।


सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा-

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स्वार्थ हमारा ले रहा, पिच दर पिच आनंद |
प्रतिपल के उन्माद में, तथ्य भूलते चन्द |

तथ्य भूलते चन्द, महामानव है बन्दा |
रेफलेक्सेज नहिं मंद, गगन छू चुका परिंदा |

किन्तु घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा |
बच्चों का अधिकार, छीनता स्वार्थ हमारा ||


घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ -

(1)
सतत धमाके में मरे, माँ के सच्चे पूत |
वह रैली देकर गई, पक्के कई सबूत |

पक्के कई सबूत, देश पर दाग बदनुमा |
घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ |

माँ को देते बेंच, पाक से पैसा पाके |
पॉलिटिक्स के पेंच, कराएं सतत धमाके || 




9 comments:

  1. जुदा अंदाजे बयाँ .. मस्त चर्चा ...

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति
    आभार

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  3. भाषण सुनकर जाइये, पूरी करिये साध |
    एक घरी आधी घरी, आधी की भी आध |

    आधी की भी आध, विराजे हैं शहजादे |
    करिये वाद-विवाद, किन्तु सुनिये ये वादे |

    शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण |
    जाने को सरकार, फर्क डाले क्या भाषण ||

    सुन्दर कह दी बात आपने .सीधी सच्ची बात खरी खरी .

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  4. आदरणीय सर , बहुत बढ़िया व पठनीय सूत्र वो भी सुन्दर प्रस्तुति के साथ , धन्यवाद
    " जै श्री हरि: "

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  5. विविध - भारती की तरह ,पचरंगी अंदाज
    कहीं खिलाते फूल तो कहीं गिराते गाज
    कहीं गिराते गाज, आज पर गढ़ कुण्डलिया
    भाँति -भाँति के रंग,दिखाते हैं बन छलिया
    कभी महकती साँझ , कभी है प्रात-आरती
    पचरंगी प्रोग्राम , लग रहे विविध-भारती ||

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