और शीला को कहना पड़ा '10 मिनट राहुल गांधी को सुनकर जाइए'
chandan bhati
भाषण सुनकर जाइये, पूरी करिये साध |
एक घरी आधी घरी, आधी की भी आध |
आधी की भी आध, विराजे हैं शहजादे |
करिये वाद-विवाद, किन्तु सुनिये ये वादे |
शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण |
जाने को सरकार, फर्क डाले क्या भाषण ||
|
पति प्रेमी पितु-मातु, करा सकते जासूसी-
रविकर
छोरे ताकें छोरियां, वक्त करे आगाह | मर्यादा मत भूलना, दुनिया रखे निगाह | दुनिया रखे निगाह, शुरू है कानाफूसी | पति प्रेमी पितु-मातु, करा सकते जासूसी | फिर महिला आयोग, सूत्र यह सकल बटोरे | दृष्टि-दोष कर दूर, बिगाड़े खेल छिछोरे || |
सृंगी जन्मकथा : भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन
सर्ग-२
भाग-4
सृंगी जन्मकथा
रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।
विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।
तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।
|
सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा-
Photo 1 of 13
स्वार्थ हमारा ले रहा, पिच दर पिच आनंद |
प्रतिपल के उन्माद में, तथ्य भूलते चन्द |
तथ्य भूलते चन्द, महामानव है बन्दा |
रेफलेक्सेज नहिं मंद, गगन छू चुका परिंदा |
किन्तु घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा |
बच्चों का अधिकार, छीनता स्वार्थ हमारा ||
|
घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ -
(1)
सतत धमाके में मरे, माँ के सच्चे पूत |
वह रैली देकर गई, पक्के कई सबूत |
पक्के कई सबूत, देश पर दाग बदनुमा |
घात लगाए धूर्त, धराये हिन्दु-मुसलमाँ |
माँ को देते बेंच, पाक से पैसा पाके |
पॉलिटिक्स के पेंच, कराएं सतत धमाके ||
|
जुदा अंदाजे बयाँ .. मस्त चर्चा ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
बहुत ख़ूब! वाह!
ReplyDeleteभाषण सुनकर जाइये, पूरी करिये साध |
ReplyDeleteएक घरी आधी घरी, आधी की भी आध |
आधी की भी आध, विराजे हैं शहजादे |
करिये वाद-विवाद, किन्तु सुनिये ये वादे |
शीला कहे पुकार, जानती यद्यपि कारण |
जाने को सरकार, फर्क डाले क्या भाषण ||
सुन्दर कह दी बात आपने .सीधी सच्ची बात खरी खरी .
badhiya
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा !
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा.
ReplyDeleteआदरणीय सर , बहुत बढ़िया व पठनीय सूत्र वो भी सुन्दर प्रस्तुति के साथ , धन्यवाद
ReplyDelete" जै श्री हरि: "
विविध - भारती की तरह ,पचरंगी अंदाज
ReplyDeleteकहीं खिलाते फूल तो कहीं गिराते गाज
कहीं गिराते गाज, आज पर गढ़ कुण्डलिया
भाँति -भाँति के रंग,दिखाते हैं बन छलिया
कभी महकती साँझ , कभी है प्रात-आरती
पचरंगी प्रोग्राम , लग रहे विविध-भारती ||