खता लता की बता के, जता रहे हैं रोष |
सावरकर-नाटक खले, दल्ले खोते होश |
दल्ले खोते होश, बड़े झंडे के तल्ले |
मांगे सत्ता कोष, अकेले सतत निठल्ले |
जो भी करे विरोध, मजा वो ही तो चखता |
भोंके जीभ कटार, पास वो हरदम रखता ||
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छड पी एम दा ख़्वाब, अरे हलवाई हरिया-
जरिया रोटी का अगर, होवे चाय दुकान |
सदा बेचिए चाय ही, कर देना मत-दान |
कर देना मत-दान, नहीं नेता बन सकता |
बैठ जलेबी छान, कहाँ तू अलबल बकता |
छड पी एम दा ख़्वाब, अरे हलवाई हरिया ||
यस पी नेता तंग, कहे है तंग नजरिया |
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बाल दिवस : एक आयोजन !!
सुन्दर क्षणिकाएं रची, रची बसी हरमेल |
बाल दिवस कैसे मना, मना कर दिया खेल |
मना कर दिया खेल, बाल की खाल निकाले |
किटी पार्टी जाय, कार को साफ़ धुला ले |
नहीं बाल कानून, बाल बांका कर पाये |
चाचा चाची मस्त, रची सुन्दर क्षणिकाएं ||
मर्यादा का हो गया, सह-सत्ता के लोप | लगे डॉक्टर हर्ष पर, फिर झूठा आरोप | फिर झूठा आरोप, नहीं सह पाये दिल्ली | लिए सहारा झूठ, उड़ाने निकली खिल्ली | यद्यपि पिछली बार, उठा ना सके फायदा | लिया थूक के चाट, भूलते फिर मर्यादा || |
चुका रहा वो लोन, बाप का खर्च भेज के-
बिन दहेज़ के व्याहता, पत्नी बी टेक पास |
ली थी शैक्षिक लोन पर, नहीं जॉब की आस |
नहीं जॉब की आस, पटा ली मूरख बच्चा |
होवे सफल प्रयास, मिल गया प्रेमी सच्चा |
चुका रहा वो लोन, बाप का खर्च भेज के |
गौण हुई सुख-शान्ति, शादियां बिन दहेज़ के ||
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'खीझ का रिश्ता'...(संस्मरण )
स्वप्न मञ्जूषा
बड़ा मार्मिक दृश्य यह, अंतर गया कचोट | चोट व्यवस्था पर लगे, धत दहेज़ का खोट | धत दहेज़ का खोट, बाप बेटी हित हारे | करे भिखारी भेंट, मुहल्ले अपने सारे | यह दहेज़ का दैत्य, होय दिन प्रति दिन तगड़ा | जाय लील सुख चैन, बड़ा फैलाये जबड़ा | |
सभी सार्थक, सटीक लगी रचनाएं !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteहैप्पी चिल्ड्रंस डे !
मांगे सत्ता कोष, अकेले सतत निठल्ले |
ReplyDeleteजो भी करे विरोध, मजा वो ही तो चखता |
भोंके जीभ कटार, पास वो हरदम रखता ||
सुन्दर
जरिया रोटी का अगर, होवे चाय दुकान |
ReplyDeleteसदा बेचिए चाय ही, कर देना मत-दान |
कर देना मत-दान, नहीं नेता बन सकता |
बैठ जलेबी छान, कहाँ तू अलबल बकता |
छड पी एम दा ख़्वाब, अरे हलवाई हरिया ||
यस पी नेता तंग, कहे है तंग नजरिया |
क्या बात है जमीन से उड़के ही रॉकेट आसमान में पहुंचता है .
ड़ा मार्मिक दृश्य यह, अंतर गया कचोट |
ReplyDeleteचोट व्यवस्था पर लगे, धत दहेज़ का खोट |
धत दहेज़ का खोट, बाप बेटी हित हारे |
करे भिखारी भेंट, मुहल्ले अपने सारे |
यह दहेज़ का दैत्य, होय दिन प्रति दिन तगड़ा |
जाय लील सुख चैन, बड़ा फैलाये जबड़ा |
बहुत सुन्दर रविकर जी मार्मिक प्रसंग में मानवीय रंग भरे हैं
बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स। आपकी कुंडलियां हमेशा की तरह सटीक।
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