चुल्लू में उल्लू बना, सुध बुध देता खोय |
रोना धोना चुल्लुओं, पाँच साल फिर होय |
पाँच साल फिर होय, खिला के टॉफ़ी-कम्पट |
चढ़ जाती फिर भाँग, मौज करते कुल-लम्पट |
कैबिनेट -सेट होय, बने फिर पी एम् गुल्लू |
रविकर कर अफ़सोस, भरे पानी इक चुल्लू ||
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तू भी कर मत दान, सामने पा इक कपटी-
रविकर
इक कप टी बिस्कुट सहित, सकता हमें खरीद | फूड-सिक्युरिटी जब दिया, क्यूँ ना होवे ईद | क्यूँ ना होवे ईद, हुआ मन रेगा अपना | मिट्टी करे पलीद, विपक्षी सत्ता सपना | हम तो सत्ता भक्त, खाय रेवड़ियां बटती | तू भी कर मत दान, सामने पा इक कपटी | |
"हो गया इन्सान बौना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता-
रविकर
खलियाना खलता नहीं, चमड़ी धरो उतार |मँहगाई की मार से, बेहतर तेरी मार |
बेहतर तेरी मार, बना के पहनो जूता |
अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता |
जीना हुआ मुहाल, भला है बूचड़-खाना -
झटका अते हलाल, शुरू कर तू खलियाना ||
सृंगी जन्मकथा : भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन
सर्ग-२
भाग-4
सृंगी जन्मकथा
रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।
विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।
तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।
शोध कार्य हित हो रही, स्वयं उर्वशी पेश ।
ऋषि-पत्नी रखने लगी, उसका ध्यान विशेष ।
इस अतीव सौन्दर्य पर, होते ऋषि आसक्त ।
औषधि प्रजनन शोध पर, अधिक दे रहे वक्त ।
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआपका आभार रविकर जी।
बहुत सुन्दर आभार आदरणीय..
ReplyDeleteसुंदर चर्चा !
ReplyDeleteसुन्दर भावों को सजोये लिंक ,सादर
ReplyDeleteबढ़िया लिंक के साथ सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteसुन्दर भावों की संकलन ,
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