Friday, 8 November 2013

साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये-



फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है

सुशील कुमार जोशी 

 बोये बिन उगते रहे, घास-पात लत झाड़ |
शब्द झाड़-झंकाड़ भी, उगे कलेजा फाड़ |

उगे कलेजा फाड़, दहाड़े सिंह सरीखा |
यह टाइम्स उल्लूक, उजाले में भी चीखा |

साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये |
हँसे भाव नितराम, बीज मस्ती के बोये ||


" नाज़ायज़ घोषित C.B.I." किसका षड़यंत्र और क्यों ?????

PITAMBER DUTT SHARMA 







सी वी आई मामला, दे ऊपर अब भेज |
अब तक सत्ता ने रखा, हरदम जिसे सहेज |

हरदम जिसे सहेज, हमेशा  डंडा थामे  |
शत्रु दिखा जो तेज, केस कर उसके नामे |

कह रविकर कविराय, निराशा चहुँदिश छाई ||
भोथर होती धार, करे क्या सी बी आई ||


सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान -

मंशा मनसूबे सही, लेकिन गलत बयान |
सूबे में दंगे थमे, खुलती पाक दुकान |

खुलती पाक दुकान, सजा दे मंदिर मस्जिद |
लेती माल खरीद, कई सरकारें संविद |

नीर क्षीर अविवेक, बने जब कौआ हंसा |
रहे गधे अब रेक, जगाना इनकी मंशा ||






मंशा पर करते खड़े, क्यूँ आयोग सवाल । 
भल-मन-साहत देखिये, देख लीजिये चाल । 

देख लीजिये चाल, मिले शाबाशी पुत्तर । 
होता मुन्ना पास,चार पन्ने का उत्तर । 

पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा ।
उधर इरादा पाक, इधर इनकी जो मंशा ॥ 



चट्टे बट्टे एक, दाँव दे जाते झूठे-


झूठे *दो दो चोंच हों, दिखे चोंचलेबाज |
बाज कबूतर से लड़े, फिर भी नखरे नाज |
*कहासुनी 
फिर भी नखरे नाज, नहीं पंजे को अखरे |
जन का बहता रक्त, देख कर हँसे मसखरे |

है चुनाव कि रीति, दीखते रूठे रूठे |

चट्टे बट्टे एक, दाँव दे जाते झूठे ||


लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये-

खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |
पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |

पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |

बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||


लाल -आँखें 

आँखों से आंसू बहे, जाँय किनारे सूज |
उतरे लाली लाल के, दृष्टि होय फिर फ्यूज |

दृष्टि होय फिर फ्यूज, एलर्जी धूप रसायन |
पक्का छुतहा रोग, छोड़ सामूहिक गायन |

रविकर चश्मा पहन, नहीं रह दवा भरोसे |
नहीं लड़ाना आँख, बंधुवर इन आँखों से ||

सम-गोत्रीय विवाह: भगवती शांता : मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन

 सर्ग-२ 
भाग-2
सम गोत्रीय विवाह

फटा कलेजा भूप का, सुना शब्द विकलांग |
सुता हमारी स्वस्थ हो, जो चाहे सो मांग ||

भूपति की चिंता बढ़ी, छठी दिवस से बोझ |
तनया की विकृति भला, कैसे होगी सोझ ||

रात-रात भर देखते, उसकी दुखती टांग |
सपने में भी आ जमे, नटनी करती स्वांग ||

गुरु वशिष्ठ ने एक दिन, भेजा भूप बुलाय |
सह सुमंत आश्रम गए, बैठे शीश नवाय ||

6 comments:

  1. बहुत सुंदर सूत्र संयोजन !
    उल्लूक की अधूरी कविता पर
    रविकर टिप्पणी देता है
    जैसे कोईएक अधूरी को
    यूं ही पूरी कर देता है

    फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है

    को स्थान दिया आभार !

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  2. एक से एक लिंक और कुंडलियाँ |

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  3. सुन्दर संयोजन

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  4. बहुत खूब...रचनायें...

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  5. बहुत खूब...रचनायें...

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