Sunday, 24 November 2013

महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल-




काजल जल से भीग कब, देता अश्रु भिगोय |
चेहरे पे कालिख लगे, जाती गरिमा खोय |

जाती गरिमा खोय, सफलता सर चढ़ बैठी |
बने स्वयंभू ईश, चाल चल ऐंठी ऐंठी |

करता हलका कार्य, तहलका का यह छल बल |
महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल || 

सुस्‍त मौसम में बहती बदलाव की आन्‍धी

Vikesh Badola 

 सुस्ती सिरहाने खड़ी, रही सिहरती देह । 
चलो  चले उस की तरफ, जिससे जिसको स्नेह । 

जिससे जिसको नेह, उन्हें काया परकाया । 
लूट कोयला कोय, कोय सी डी बनवाया । 

है चुनाव की बेर, देख रविकर यह कुश्ती । 
उठापटक अंदाज, भगाए रविकर सुस्ती ॥ 

रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य

कुंडलियां 

(१)

मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
 रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य । 

पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर । 
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।

रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव । 
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥ 

शान्ता के चरण ; मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन

सर्ग-३ 
  भाग-1 

शांता चलती घुटुरवन, चहल पहल उत्साह |
दास-दासियाँ रख रहे, चौकस सदा निगाह ||

सबसे प्रिय लगती उसे, अपनी माँ की गोद |
माँ बोले जब तोतली, होवे परम-विनोद ||

कौला-दालिम जोहते, बैठे अपनी बाट |
कौला पैरों को मले, हलके-फुल्के डांट ||

दालिम टहलाये उसे, करवाए अभ्यास |
अपने पैरों पर चले, गुजरे बारह मास ||


प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर-


शुभ बुद्धि विवेक मिले जब से, सब से खुद को मनु श्रेष्ठ कहे  ।

पर यौनि अनेक बसे धरती, शुभ-नीति सदा मजबूत गहे । 

कुछ जीव दिखे अति श्रेष्ठ हमें, अनुशासन में नित बीस रहे । 

जिनकी अति उच्च समाजिकता, पर मानव के उतपात सहे ॥  



कुंडलियां 

(१)

मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
 रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य । 

पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर । 
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।

रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव । 
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥ 


(२)

बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर  । 
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर । 

शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा । 
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा । 

कर्म-योगिनी श्रेष्ठ,  नीतिगत बंधन तगड़ा । 
रखें चीटियां धैर्य,  व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥ 


जमाली चाय दे स्वर्गिक आनंद का अहसास Best Herbal Tea

DR. ANWER JAMAL 









माली हालत देश की, होती जाय खराब |
आधी आबादी दुखी, आधी पिए शराब |

आधी पिए शराब, भुला दुःख अद्धा देता |
चारित्रिक अघ-पतन, गला अपनों का रेता |

रविकर कम्बल ओढ़, पिए नित घी की प्याली |
सुरा चाय पय छोड़, छोड़ता चाय जमाली || 




8 comments:

  1. धन्‍यवाद रवि‍का जी इतनी सुंदर लाइनें कहने के लि‍ए भी.

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  2. भारत एवं भारतीय समाज की छवि को जितना चल चित्र एवं राजनीति ने विकृत कर धूमिल किया है, उतना कदाचित ही किसी ने किया हो.....

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  3. काजल जल से भीग कब, देता अश्रु भिगोय |
    चेहरे पे कालिख लगे, जाती गरिमा खोय |

    जाती गरिमा खोय, सफलता सर चढ़ बैठी |
    बने स्वयंभू ईश, चाल चल ऐंठी ऐंठी |

    करता हलका कार्य, तहलका का यह छल बल |
    महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल ||

    बहुत खूब .

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  4. सुन्दर प्रस्तुति व सूत्र , आदरणीय धन्यवाद

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।

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  6. सुन्दर लिंक्स और कुण्डलिया तो अद्भुत

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