काजल जल से भीग कब, देता अश्रु भिगोय |
चेहरे पे कालिख लगे, जाती गरिमा खोय |
जाती गरिमा खोय, सफलता सर चढ़ बैठी |
बने स्वयंभू ईश, चाल चल ऐंठी ऐंठी |
करता हलका कार्य, तहलका का यह छल बल |
महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल ||
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सुस्त मौसम में बहती बदलाव की आन्धी
Vikesh Badola
सुस्ती सिरहाने खड़ी, रही सिहरती देह ।
चलो चले उस की तरफ, जिससे जिसको स्नेह ।
जिससे जिसको नेह, उन्हें काया परकाया ।
लूट कोयला कोय, कोय सी डी बनवाया ।
है चुनाव की बेर, देख रविकर यह कुश्ती ।
उठापटक अंदाज, भगाए रविकर सुस्ती ॥
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रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य
कुंडलियां
(१)
मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।
पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।
रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥
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शान्ता के चरण ; मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन
सर्ग-३
भाग-1
शांता चलती घुटुरवन, चहल पहल उत्साह |
दास-दासियाँ रख रहे, चौकस सदा निगाह ||
सबसे प्रिय लगती उसे, अपनी माँ की गोद |
माँ बोले जब तोतली, होवे परम-विनोद ||
कौला-दालिम जोहते, बैठे अपनी बाट |
कौला पैरों को मले, हलके-फुल्के डांट ||
दालिम टहलाये उसे, करवाए अभ्यास |
अपने पैरों पर चले, गुजरे बारह मास ||
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प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर-
शुभ बुद्धि विवेक मिले जब से, सब से खुद को मनु श्रेष्ठ कहे ।
पर यौनि अनेक बसे धरती, शुभ-नीति सदा मजबूत गहे ।
कुछ जीव दिखे अति श्रेष्ठ हमें, अनुशासन में नित बीस रहे ।
जिनकी अति उच्च समाजिकता, पर मानव के उतपात सहे ॥
कुंडलियां
(१)
मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।
पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।
रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥
(२)
बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर ।
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर ।
शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा ।
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा ।
कर्म-योगिनी श्रेष्ठ, नीतिगत बंधन तगड़ा ।
रखें चीटियां धैर्य, व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥
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जमाली चाय दे स्वर्गिक आनंद का अहसास Best Herbal Tea
DR. ANWER JAMAL
माली हालत देश की, होती जाय खराब |
आधी आबादी दुखी, आधी पिए शराब |
आधी पिए शराब, भुला दुःख अद्धा देता |
चारित्रिक अघ-पतन, गला अपनों का रेता |
रविकर कम्बल ओढ़, पिए नित घी की प्याली |
सुरा चाय पय छोड़, छोड़ता चाय जमाली ||
धन्यवाद रविका जी इतनी सुंदर लाइनें कहने के लिए भी.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया। सुन्दर।
ReplyDeleteभारत एवं भारतीय समाज की छवि को जितना चल चित्र एवं राजनीति ने विकृत कर धूमिल किया है, उतना कदाचित ही किसी ने किया हो.....
ReplyDeleteवाह बहुत खूब !
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ReplyDeleteकाजल जल से भीग कब, देता अश्रु भिगोय |
चेहरे पे कालिख लगे, जाती गरिमा खोय |
जाती गरिमा खोय, सफलता सर चढ़ बैठी |
बने स्वयंभू ईश, चाल चल ऐंठी ऐंठी |
करता हलका कार्य, तहलका का यह छल बल |
महाचोर बदनाम, चुरा नैनों का काजल ||
बहुत खूब .
सुन्दर प्रस्तुति व सूत्र , आदरणीय धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स और कुण्डलिया तो अद्भुत
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