"तेजपाल का तेज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
मिटटी करे पलीद अब, यही तरुण का तेज |
गलत ख्याल वो पाल के, छोड़े अपनी मेज |
छोड़े अपनी मेज, झुकाई कीर्ति पताका |
करता नहीं गुरेज, बना फिरता है आका |
करती महिला केस, हुई गुम सिट्टी पिट्टी |
सोमा ज्यादा तेज, दोष पर डाले मिटटी ||
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विचारों की कब्र पर मूर्तियों की होड़
Akhileshwar Pandey
चाकर चोर असंत ठग, दंद-फंद आबाद |
सदविचार दफना दिए, फिर भी मिलती दाद |
फिर भी मिलती दाद, यही उस्ताद अनोखे |
हर्रे ना फिटकरी, रंग लाते है चोखे |
जमा कई सरदार, देख घबराये रविकर |
इक सज्जन ले ढूँढ , देश जो रखे बचाकर ||
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रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य
कुंडलियां
(१)
मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।
पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।
रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥
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दो मंत्रालय दो बना, रेप और आतंक |
दो मंत्रालय दो बना, रेप और आतंक |
निबट सके जो ठीक से, राजा हो या रंक |
राजा हो या रंक, बढ़ी कितनी घटनाएं-
जब तब मारे डंक, इन्हें जल्दी निबटाएं |
तंतु तंतु में *तोड़, बड़े संकट में तन्त्रा |
कैसे रक्षण होय, देव कुछ दे दो मन्त्रा -
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प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर-
शुभ बुद्धि विवेक मिले जब से, सब से खुद को मनु श्रेष्ठ कहे ।
पर यौनि अनेक बसे धरती, शुभ-नीति सदा मजबूत गहे ।
कुछ जीव दिखे अति श्रेष्ठ हमें, अनुशासन में नित बीस रहे ।
जिनकी अति उच्च समाजिकता, पर मानव के उतपात सहे ॥
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sundar link sanyojan...............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट तुम
आदरणीय , पाठन योग्य सूत्र व सुन्दर प्रस्तुति , धन्यवाद
ReplyDelete॥ जै श्री हरि: ॥