Saturday, 23 November 2013

सरकार रही सरकाय समा, जन नायक मस्त स्वमेव रमा -

विचारों की कब्र पर मूर्तियों की होड़

Akhileshwar Pandey 
चाकर चोर असंत ठग, दंद-फंद आबाद |
सदविचार दफना दिए, फिर भी मिलती दाद |

फिर भी मिलती दाद, यही उस्ताद अनोखे |
हर्रे ना फिटकरी, रंग लाते है चोखे |

जमा कई सरदार, देख घबराये रविकर |
इक सज्जन ले ढूँढ , देश जो रखे बचाकर ||

 दो मंत्रालय दो बना, रेप और आतंक |
निबट सके जो ठीक से, राजा हो या रंक |

राजा हो या रंक, बढ़ी कितनी घटनाएं-
जब तब मारे डंक, इन्हें जल्दी निबटाएं |


तंतु तंतु में *तोड़, बड़े संकट में तन्त्रा |

कैसे रक्षण होय, देव कुछ दे दो मन्त्रा -

रानि निगाह रखे उन पे जिनके हित काम करावत है -




मदिरा सवैया (  भगण  X 7 + S )

पञ्च पिपीलक पिप्पल पेड़ पहाड़ समान उठावत है । 

जीत लिया जब भूमि नई, तरु से दुइ दीप मिलावत हैं । 

दुर्गम मार्ग रहा बरसों कल सों शुभ राह बनावत है। 

रानि निगाह रखे उन पे जिनके हित काम करावत है । 


दुर्मिळ सवैया (सगण x 8)

इस ओर गरीब-फ़क़ीर बसे, उस ओर अमीर-रईस जमा। 

जनतंतर जंतर-मंतर से, कुछ अंतर भेद न छेद कमा । 

सरकार रही सरकाय समा, जन नायक मस्त स्वमेव रमा । 

इन चींटिन सा सदुपाय करो, करिये इनको मत आज क्षमा | 


दिनभर बैठ निकालते, ये नरेश गर बाल-

दिनभर बैठ निकालते, ये नरेश गर बाल |
बनत बाल की खाल से, कम से कम इक नाल |

कम से कम इक नाल, लगा घोड़े को देते |
यू पी दुर्गति-काल, प्रगति पथ पर ले लेते |

व्यापारी पर व्यंग, मिलावट करता जमकर |
रहा चाय को कोस, बैठ बन्दा यह दिनभर || 


"तेजपाल का तेज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 





मिटटी करे पलीद अब, यही तरुण का तेज |
गलत ख्याल वो पाल के, छोड़े अपनी मेज |

छोड़े अपनी मेज, झुकाई कीर्ति पताका |
करता नहीं गुरेज, बना फिरता है आका |

करती महिला केस, हुई गुम सिट्टी पिट्टी |
सोमा ज्यादा तेज,  दोष पर डाले मिटटी ||

यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं?

DR. ANWER JAMAL 






(1)
आगे मुश्किल समय है, भाग सके तो भाग |
नहीं कोठरी में रखें, साथ फूस के आग |

साथ फूस के आग, जागते रहना बन्दे |
हुई अगर जो चूक, झेल क़ानूनी फंदे |

जिनका किया शिकार, आज वे सारे जागे |
मिला जिन्हें था लाभ, नहीं वे आयें आगे ||

बंगारू कि आत्मा, होती आज प्रसन्न |
सन्न तहलका दीखता, झटका करे विपन्न |

झटका करे विपन्न, सताया है कितनों को |
लगी उन्हीं कि हाय, हाय अब माथा ठोको |

गोया गोवा तेज, चढ़ी थी जालिम दारू |
रंग दे डर्टी पेज, देखते हैं बंगारू ||
यौनोत्पीड़न के लिए, कुर्सी छोड़े आप |

कुर्सी छोड़े आप, मात्र छह महिना काहे |
सहकर्मी चुपचाप, बॉस जो उसका चाहे |

लेता आज संभाल, देख लेता कल कल का |
तरुण तेज ले पाल, सेक्स से मचे तहलका ||



नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे-


मुआवजा नहि वेवजह, पीछे घातक सोच |
खैरख्वाह इक वर्ग के, नीति-नियम में लोच |

नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे |
इन्हें नहीं संकोच, दूसरा वर्ग नकारे |

जो जो खाया चोट, इन्हें दे रहा बद्दुआ |
कह इमाद रहमान, होय या लीडर रमुआ ||
  

2 comments:

  1. वाह-वाह।
    बहुत सुन्दर और काव्यमयी त्वरित टिप्पणियाँ दी हैं आपने।
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    आभार।

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  2. बहुत बढिया रविकर जी। चित्र भी बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण।

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